हम ईस्वी नव वर्ष का उत्सव क्यों नहीं मनाते?
الشيخ هيثم سرحان, [15/02/2023 04:50] الأصل في الأعياد على اختلاف مسمياتها أنها من شعائر الاديان. त्योहारों के संबंध में चाहे उसका जो भी नाम रख दिया जाये मूल बात यह है कि यह धार्मिक प्रतीक एवं अनुष्ठान है। فهي سمة من السمات التي تتميز بها كل...
हम ईस्वी नव वर्ष का उत्सव क्यों नहीं मनाते?
الشيخ هيثم سرحان, [15/02/2023 04:50]
الأصل في الأعياد على اختلاف مسمياتها أنها من شعائر الاديان.
त्योहारों के संबंध में चाहे उसका जो भी नाम रख दिया जाये मूल बात यह है कि यह धार्मिक प्रतीक एवं अनुष्ठान है।
فهي سمة من السمات التي تتميز بها كل ملة وأتباعها عن غيرهم.
यह उन प्रतीकों तथा विशेषताओं में से एक है जो प्रत्येक धर्म और उसके अनुयायियों को दूसरों से अलग करती है।
وقد تواترت النصوص الشرعية بحصر أعياد المسلمين في عيدين كل عام. هما الفطر والأضحى
मुतवातिर शरई नुस़ूस़ अर्थात बहुतेरी धार्मिक तर्कों ने पूरे वर्ष में मुसलमानों के त्योहारों को केवल दो ईदों तक सीमित किया है जोकि ईदुल फ़ित्र एवं ईदुल अज़्हा हैं।
وعيد كل أسبوع هو يوم الجمعة.
तथा सप्ताह का ईद जुमा का दिन है।
قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: إن لكل قوم عيدا، وهذا عيدنا.
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “प्रत्येक समुदाय के लिये त्योहार का दिन होता है तथा यह हमारे त्योहार का दिन है”।
وما سوى ذلك من أعياد كالكريسماس ورأس السنة الميلادية وغيرها، فهي لأهل الكتاب.
इसके अलावा अन्य उत्सव, जैसे क्रिसमस एवं नव वर्ष का उत्सव इत्यादि तो यह यहूदी एवं नस़ारा का त्योहार है।
ولا يجوز للمسلم اعتبارها ولا الاحتفال بها.
किसी मुसलमान के लिए इस को महत्व देना अथवा इसे मनाना जायज़ नहीं है।
ولا التهنئة بها أو المشاركة فيها.
न ही इसकी बधाई देना अथवा इसमें भाग लेना (जायज़ है)।
ويدخل في ذلك: إهداؤهم ما هو من لوازمها،
इसी में शामिल हैः उन्हें ऐसी चीज़ उपहार स्वरूप देना जो वह त्योहार मनाने के लिए आवश्यक हो,
أو بيعهم هذه المستلزمات من أنوار وأشجار. ومأكولات معينة.
अथवा उन्हें इस त्योहार के लिए आवश्यक वस्तुएं बेचना, जैसेः क्रिसमस लाइट्स, क्रिसमस ट्री एवं विशेष खाद्य पदार्थ इत्यादि।
فإن هذا منهي عنه لسببين:
यह दो कारणों से वर्जित है:
الأول: إن في ذلك تشبها بهم، وإقرارا لهم على كفرهم، وقد حرم الإسلام التشبه بالكافرين فيما هو من خصائصهم.
प्रथम: यह उनकी नकल करना एवं उनके कुफ्र का समर्थन करना है, और इस्लाम ने ऐसी चीज़ों में काफिरों की नकल करने से मना किया है जो उनके धर्म की विशेषताओं में से हो।
الثاني: إن في هذه الأعياد ابتداعا وإحداثا في دين الله تعالى.
द्वितीय: वास्तव में, इन त्योहारों में सर्वशक्तिमान अल्लाह के धर्म में बिद्अत एवं नवाचारों को अंजाम दिया जाता है।
قال ابن القيم رحمه الله: وأما التهنئة بشعائر الكفر المختصة به فحرام بالاتفاق.
इब्नुल क़य्यिम -अल्लाह उन पर दया करे- कहते हैं: ऐसे त्योहार जो विशिष्ट रूप से केवल काफिरों के लिए ही हैं उनकी बधाई देना विद्वानों की सर्व सहमति से वर्जित एवं हराम है।
كأن يهنئهم بأعيادهم. فيقول: عيد مبارك عليك. أو تهنأ بهذا العيد أو نحوه.
जैसे उन्हें उनके त्योहार की बधाई देते हुए कहेः आप के लिए यह त्योहार शुभ हो, अथवा इस त्योहार का आनंद लें, या इसी प्रकार का वाक्य (जैसे हैप्पी क्रिस्मस इत्यादि) कहे।
فهذا إن سَلم قائله من الكفر، فهو من المحرمات.
ऐसा कहना यदि कुफ्र नहीं भी है तो ह़राम अर्थात वर्जित तो अवश्य है।
ولا يعني هذا إساءة المعاملة، ولا الاعتداء.
और इसका अर्थ उसके संग दुर्व्यवहार करना अथवा उन्हें आतंकित करना कदापि नहीं है।
فإن رفض المشاركة ليس اعتداء، وإنما هو تميز المسلم واستقلاله في معتقداته وشعائره عن غيره.
क्योंकि उनके त्योहार में भाग लेने से इंकार करना आतंकवाद नहीं है, यह सिर्फ एक संकेत है जो दर्शाता है कि एक मुसलमान उन चीज़ों से दूर रहता है जो उसकी आस्था, धर्म एवं प्रतीकों के विरूद्ध हो।
ولهذا جاز قبول الهدية منهم.
इसलिए उनकी ओर से दिया गया उपहार स्वीकार करना जायज़ है।
ولا يعد ذلك مشاركة ولا إقرارا للاحتفال.
तथा इसे उनके समारोह में उनके साथ भागीदारी करने या समारोह की वैधता की पुष्टि करने के रूप में नहीं गिना जायेगा।
بل تؤخذ على سبيل البر وقصد التأليف والدعوة إلى الإسلام.
बल्कि उपहार को उनके साथ शिष्टाचार निभाने, उनका दिल रखने एवं उन्हें इस्लाम की ओर आकर्षित करने के उद्देश्य से स्वीकार किया जायेगा।
ما لم يكن مما ذبحوه لأجل العيد.
बशर्ते कि यह उनके द्वारा उत्सव मनाने के लिए बलि चढ़ाए गए मांस के रूप में न हो।
قال شيخ الاسلام ابن تيمية رحمه الله: وأما قبول الهدية منهم يوم عيدهم، فقد قدمنا عن علي بن أبي طالب رضي الله عنه أنه أُتي بهدية النيروز فقبلها.
शैख़ुल इस्लाम इब्ने-तैमिय्यह, -अल्लाह उन पर दया करे- कहते हैं: जहाँ तक ईद के दिन उनके उपहारों को स्वीकार करने की बात है, तो इसके विषय में पूर्व में हम अली बिन अबू त़ालिब रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में नक़ल कर चुके हैं कि उनके पास नौरोज़ का उपहार लाया गया तो उन्होंने उसे स्वीकार किया।
وعن أبي برزة أنه كان له سكان مجوس فكانوا يهدون له في النيروز والمهرجان. فكان يقول لأهله ما كان من فاكهة، فكلوه.
وما كان من غير ذلك، فردوه.
तथा अबू बरज़ह से वर्णित है कि उनका एक मजूसी अर्थात पारसी पड़ोसी था जो उन्हें नौरोज़ एवं मेहरेगान के दिन उपहार दिया करता था तो वह अपने परिवार वालों से कहते कि जो फल इत्यादि है उसे खा लो एवं फल के अलावा वस्तुओं को लौटा दो।
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