العلق

 

Al-'Alaq

 

The Clot

1 - Al-'Alaq (The Clot) - 001

ٱقۡرَأۡ بِٱسۡمِ رَبِّكَ ٱلَّذِي خَلَقَ
अपने पालनहार के नाम से पढ़, जिसने पैदा किया।

2 - Al-'Alaq (The Clot) - 002

خَلَقَ ٱلۡإِنسَٰنَ مِنۡ عَلَقٍ
जिसने मनुष्य को रक्त के लोथड़े से पैदा किया।

3 - Al-'Alaq (The Clot) - 003

ٱقۡرَأۡ وَرَبُّكَ ٱلۡأَكۡرَمُ
पढ़ और तेरा पालनहार बड़े करम (उदारता) वाला है।

4 - Al-'Alaq (The Clot) - 004

ٱلَّذِي عَلَّمَ بِٱلۡقَلَمِ
जिसने क़लम के द्वारा सिखाया।

5 - Al-'Alaq (The Clot) - 005

عَلَّمَ ٱلۡإِنسَٰنَ مَا لَمۡ يَعۡلَمۡ
उसने इनसान को वह सिखाया, जो वह नहीं जानता था।[1]
1. (1-5) इन आयतों में प्रथम वह़्य (प्रकाशना) का वर्णन है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मक्का से कुछ दूर "जबल नूर" (ज्योति पर्वत) की एक गुफा में जिसका नाम "ह़िरा" है जाकर एकांत में अल्लाह को याद किया करते थे। और वहीं कई दिन तक रह जाते थे। एक दिन आप इसी गुफा में थे कि अकस्मात आपपर प्रथम वह़्य (प्रकाशना) लेकर फ़रिश्ता उतरा। और आपसे कहा : "पढ़ो"। आपने कहा : मैं पढ़ना नहीं जानता। इसपर फ़रिश्ते ने आपको अपने सीने से लगाकर दबाया। इसी प्रकार तीन बार किया और आपको पाँच आयतें सुनाईं। यह प्रथम प्रकाशना थी। अब आप मुह़म्मद पुत्र अब्दुल्लाह से मुह़म्मद रसूलुल्लाह होकर डरते-काँपते घर आए। इस समय आपकी आयु 40 वर्ष थी। घर आकर कहा कि मुझे चादर उढ़ा दो। जब कुछ शांत हुए तो अपनी पत्नी ख़दीजा (रज़ियल्लाहु अन्हा) को पूरी बात सुनाई। उन्होंने आपको सांत्वना दी और अपने चाचा के पुत्र "वरक़ा बिन नौफ़ल" के पास ले गईं जो ईसाई विद्वान थे। उन्होंने आपकी बात सुनकर कहा : यह वही फ़रिश्ता है जो मूसा (अलैहिस्सलाम) पर उतारा गया था। काश मैं तुम्हारी नुबुव्वत (दूतत्व) के समय शक्तिशाली युवक होता और उस समय तक जीवित रहता जब तुम्हारी जाति तुम्हें मक्का से निकाल देगी! आपने कहा : क्या लोग मुझे निकाल देंगे? वरक़ा ने कहा : कभी ऐसा नहीं हुआ कि जो आप लाए हैं, उससे शत्रुता न की गई हो। यदि मैंने आपका वह समय पाया, तो आपकी भरपूर सहायता करूँगा। परंतु कुछ ही समय गुज़रा था कि वरक़ा का देहाँत हो गया। और वह समय आया जब आपको 13 वर्ष बाद मक्का से निकाल दिया गया। और आप मदीना की ओर हिजरत (प्रस्थान) कर गए। (देखिए : इब्ने कसीर) आयत संख्या 1 से 5 तक निर्देश दिया गया है कि अपने पालनहार के नाम से उसके आदेश क़ुरआन का अध्ययन करो जिसने इनसान को रक्त के लोथड़े से बनाया। तो जिसने अपनी शक्ति और दक्षता से जीता जागता इनसान बना दिया, वह उसे पुनः जीवित कर देने की भी शक्ति रखता है। फिर ज्ञान अर्थात क़ुरआन प्रदान किए जाने की शुभ सूचना दी गई है।

6 - Al-'Alaq (The Clot) - 006

كَلَّآ إِنَّ ٱلۡإِنسَٰنَ لَيَطۡغَىٰٓ
कदापि नहीं, निःसंदेह मनुष्य सीमा पार कर जाता है।

7 - Al-'Alaq (The Clot) - 007

أَن رَّءَاهُ ٱسۡتَغۡنَىٰٓ
इसलिए कि वह स्वयं को बेनियाज़ (धनवान्) देखता है।

8 - Al-'Alaq (The Clot) - 008

إِنَّ إِلَىٰ رَبِّكَ ٱلرُّجۡعَىٰٓ
निःसंदेह, तेरे पालनहार ही की ओर वापस लौटना है।[2]
2. (6-8) इन आयतों में उनको धिक्कारा है जो धन के अभिमान में अल्लाह की अवज्ञा करते हैं और इस बात से निश्चिन्त हैं कि एक दिन उन्हें अपने कर्मों का जवाब देने के लिए अल्लाह के पास जाना भी है।

9 - Al-'Alaq (The Clot) - 009

أَرَءَيۡتَ ٱلَّذِي يَنۡهَىٰ
क्या आपने उस व्यक्ति को देखा, जो रोकता है।

10 - Al-'Alaq (The Clot) - 010

عَبۡدًا إِذَا صَلَّىٰٓ
एक बंदे को, जब वह नमाज़ अदा करता है।

11 - Al-'Alaq (The Clot) - 011

أَرَءَيۡتَ إِن كَانَ عَلَى ٱلۡهُدَىٰٓ
क्या आपने देखा यदि वह सीधे मार्ग पर हो।

12 - Al-'Alaq (The Clot) - 012

أَوۡ أَمَرَ بِٱلتَّقۡوَىٰٓ
या अल्लाह से डरने का आदेश देता हो?

13 - Al-'Alaq (The Clot) - 013

أَرَءَيۡتَ إِن كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰٓ
क्या आपने देखा यदि उसने झुठलाया तथा मुँह फेरा?[3]
3. (9-13) इन आयतों में उनपर धिक्कार है जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के विरोध पर तुल गए। और इस्लाम और मुसलमानों की राह में रुकावट डालते और नमाज़ से रोकते हैं।

14 - Al-'Alaq (The Clot) - 014

أَلَمۡ يَعۡلَم بِأَنَّ ٱللَّهَ يَرَىٰ
क्या उसने नहीं जाना कि अल्लाह देख रहा है?

15 - Al-'Alaq (The Clot) - 015

كَلَّا لَئِن لَّمۡ يَنتَهِ لَنَسۡفَعَۢا بِٱلنَّاصِيَةِ
कदापि नहीं, निश्चय यदि वह नहीं माना, तो हम अवश्य उसे माथे की लट पकड़कर घसीटेंगे।

16 - Al-'Alaq (The Clot) - 016

نَاصِيَةٖ كَٰذِبَةٍ خَاطِئَةٖ
ऐसे माथे की लट जो झूठा और पापी है।

17 - Al-'Alaq (The Clot) - 017

فَلۡيَدۡعُ نَادِيَهُۥ
तो वह अपनी सभा को बुला ले।

18 - Al-'Alaq (The Clot) - 018

سَنَدۡعُ ٱلزَّبَانِيَةَ
हम भी जहन्नम के फ़रिश्तों को बुला लेंगे।[4]
4. (14-18) इन आयतों में सत्य के विरोधी को दुष्परिणाम की चेतावनी है।

19 - Al-'Alaq (The Clot) - 019

كَلَّا لَا تُطِعۡهُ وَٱسۡجُدۡۤ وَٱقۡتَرِب۩
कदापि नहीं, आप उसकी बात न मानें, (बल्कि) सजदा करें और (अल्लाह के) निकट हो जाएँ।[5]
5. (19) इस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके माध्यम से साधारण मुसलमानों को निर्देश दिया गया है कि सहनशीलता के साथ किसी धमकी पर ध्यान न देते हुए नमाज़ अदा करते रहो ताकि इसके द्वारा तुम अल्लाह के समीप हो जाओ।

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