البلد
Al-Balad
The City
1 - Al-Balad (The City) - 001
لَآ أُقۡسِمُ بِهَٰذَا ٱلۡبَلَدِ
मैं इस नगर (मक्का) की क़सम खाता हूँ!
2 - Al-Balad (The City) - 002
وَأَنتَ حِلُّۢ بِهَٰذَا ٱلۡبَلَدِ
तथा तुम्हारे लिए इस नगर में लड़ाई हलाल होने वाली है।
3 - Al-Balad (The City) - 003
وَوَالِدٖ وَمَا وَلَدَ
तथा क़सम है पिता तथा उसकी संतान की!
4 - Al-Balad (The City) - 004
لَقَدۡ خَلَقۡنَا ٱلۡإِنسَٰنَ فِي كَبَدٍ
निःसंदेह हमने मनुष्य को बड़ी कठिनाई में पैदा किया है।
5 - Al-Balad (The City) - 005
أَيَحۡسَبُ أَن لَّن يَقۡدِرَ عَلَيۡهِ أَحَدٞ
क्या वह समझता है कि उसपर कभी किसी का वश नहीं चलेगा?[1]
1. (1-5) इन आयतों में सर्व प्रथम मक्का नगर में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर जो घटनाएँ घट रही थीं, और आप तथा आपके अनुयायियों को सताया जा रहा था, उसको साक्षी के रूप में प्रस्तुत किया गया है कि इनसान की पैदाइश (रचना) संसार का स्वाद लेने के लिए नहीं हुई है। संसार परिश्रम तथा पीड़ाएँ झेलने का स्थान है। कोई इनसान इस स्थिति से गुज़रे बिना नहीं रह सकता। "पिता" से अभिप्राय आदम अलैहिस्सलमा और "संतान" से अभिप्राय समस्त मानवजाति (इनसान) हैं। फिर इनसान के इस भ्रम को दूर किया है कि उसके ऊपर कोई शक्ति नहीं है, जो उसके कर्मों को देख रही है, और समय आने पर उसकी पकड़ करेगी।
6 - Al-Balad (The City) - 006
يَقُولُ أَهۡلَكۡتُ مَالٗا لُّبَدًا
वह कहता है कि मैंने ढेर सारा धन ख़र्च कर दिया।
7 - Al-Balad (The City) - 007
أَيَحۡسَبُ أَن لَّمۡ يَرَهُۥٓ أَحَدٌ
क्या वह समझता है कि उसे किसी ने नहीं देखा?[2]
2. (1-5) इनमें यह बताया गया है कि संसार में बड़ाई तथा प्रधानता के ग़लत पैमाने बना लिए गए हैं, और जो दिखावे के लिए धन व्यय (ख़र्च) करता है उसकी प्रशंसा की जाती है, जबकि उसके ऊपर एक शक्ति है जो यह देख रही है कि उसने किन राहों में और किस लिए धन ख़र्च किया है।
8 - Al-Balad (The City) - 008
أَلَمۡ نَجۡعَل لَّهُۥ عَيۡنَيۡنِ
क्या हमने उसके लिए दो आँखें नहीं बनाईं?
9 - Al-Balad (The City) - 009
وَلِسَانٗا وَشَفَتَيۡنِ
तथा एक ज़बान और दो होंठ (नहीं बनाए)?
10 - Al-Balad (The City) - 010
وَهَدَيۡنَٰهُ ٱلنَّجۡدَيۡنِ
और हमने उसे दोनों मार्ग दिखा दिए?!
11 - Al-Balad (The City) - 011
فَلَا ٱقۡتَحَمَ ٱلۡعَقَبَةَ
परंतु उसने दुर्लभ घाटी में प्रवेश ही नहीं किया।
12 - Al-Balad (The City) - 012
وَمَآ أَدۡرَىٰكَ مَا ٱلۡعَقَبَةُ
और तुम्हें किस चीज़ ने ज्ञात कराया कि वह दुर्लभ 'घाटी' क्या है?
13 - Al-Balad (The City) - 013
فَكُّ رَقَبَةٍ
(वह) गर्दन छुड़ाना है।
14 - Al-Balad (The City) - 014
أَوۡ إِطۡعَٰمٞ فِي يَوۡمٖ ذِي مَسۡغَبَةٖ
या किसी भूख वाले दिन में खाना खिलाना है।
15 - Al-Balad (The City) - 015
يَتِيمٗا ذَا مَقۡرَبَةٍ
किसी रिश्तेदार अनाथ को।
16 - Al-Balad (The City) - 016
أَوۡ مِسۡكِينٗا ذَا مَتۡرَبَةٖ
या मिट्टी में लथड़े हुए निर्धन को।[3]
3. (8-16) इन आयतों में फरमाया गया है कि इनसान को ज्ञान और चिंतन के साधन और योग्यताएँ देकर हमने उसके सामने भलाई तथा बुराई के दोनों मार्ग खोल दिए हैं, एक नैतिक पतन की ओर ले जाता है और उसमें मन को अति स्वाद मिलता है। दूसरा नैतिक ऊँचाईयों की राह जिस में कठिनाईयाँ हैं। और उसी को घाटी कहा गया है। जिसमें प्रवेश करने वालों के कर्तव्य में है कि दासों को मुक्त करें, निर्धनों को भोजन कराएँ इत्यादि, वही लोग स्वर्गवासी हैं। और वे जिन्होंने अल्लाह की आयतों का इनकार किया, वे नरकवासी हैं। आयत संख्या 17 का अर्थ यह है कि सत्य विश्वास (ईमान) के बिना कोई सत्कर्म मान्य नहीं है। इसमें सुखी समाज की विशेषता भी बताई गई है कि दूसरे को सहनशीलता तथा दया का उपदेश दिया जाए और अल्लाह पर सत्य विश्वास रखा जाए।
17 - Al-Balad (The City) - 017
ثُمَّ كَانَ مِنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَتَوَاصَوۡاْ بِٱلصَّبۡرِ وَتَوَاصَوۡاْ بِٱلۡمَرۡحَمَةِ
फिर वह उन लोगों में से हो, जो ईमान लाए और एक-दूसरे को धैर्य रखने की सलाह दी और एक-दूसरे को दया करने की सलाह दी।
18 - Al-Balad (The City) - 018
أُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلۡمَيۡمَنَةِ
यही लोग दाहिने हाथ वाले (सौभाग्यशाली) हैं।
19 - Al-Balad (The City) - 019
وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِنَا هُمۡ أَصۡحَٰبُ ٱلۡمَشۡـَٔمَةِ
और जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, वही लोग बाएँ हाथ वाले (दुर्भाग्यशाली) हैं।
20 - Al-Balad (The City) - 020