المطففين

 

Al-Mutaffifin

 

The Defrauding

1 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 001

وَيۡلٞ لِّلۡمُطَفِّفِينَ
विनाश है नाप-तौल में कमी करने वालों के लिए।

2 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 002

ٱلَّذِينَ إِذَا ٱكۡتَالُواْ عَلَى ٱلنَّاسِ يَسۡتَوۡفُونَ
वे लोग कि जब लोगों से नापकर लेते हैं, तो पूरा लेते हैं।

3 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 003

وَإِذَا كَالُوهُمۡ أَو وَّزَنُوهُمۡ يُخۡسِرُونَ
और जब उन्हें नापकर या तौलकर देते हैं, तो कम देते हैं।

4 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 004

أَلَا يَظُنُّ أُوْلَـٰٓئِكَ أَنَّهُم مَّبۡعُوثُونَ
क्या वे लोग विश्वास नहीं रखते कि वे (मरने के बाद) उठाए जाने वाले हैं?

5 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 005

لِيَوۡمٍ عَظِيمٖ
एक बहुत बड़े दिन के लिए।

6 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 006

يَوۡمَ يَقُومُ ٱلنَّاسُ لِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ
जिस दिन लोग सर्व संसार के पालनहार के सामने खड़े होंगे।[1]
1. (1-6) इस सूरत की प्रथम छह आयतों में इसी व्यवसायिक विश्वास घात पर पकड़ की गई है कि न्याय तो यह है कि अपने लिए अन्याय नहीं चाहते, तो दूसरों के साथ न्याय करो। और इस रोग का निवारण अल्लाह के भय तथा परलोक पर विश्वास ही से हो सकता है। क्योंकि इस स्थिति में अमानतदारी एक नीति ही नहीं, बल्कि धार्मिक कर्तव्य होगा औ इस पर स्थित रहना लाभ तथा हानि पर निर्भर नहीं रहेगा।

7 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 007

كَلَّآ إِنَّ كِتَٰبَ ٱلۡفُجَّارِ لَفِي سِجِّينٖ
हरगिज़ नहीं, निःसंदेह दुराचारियों का कर्म-पत्र "सिज्जीन" में है।

8 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 008

وَمَآ أَدۡرَىٰكَ مَا سِجِّينٞ
और तुम क्या जानो कि 'सिज्जीन' क्या है?

9 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 009

كِتَٰبٞ مَّرۡقُومٞ
वह एक लिखित पुस्तक है।

10 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 010

وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ
उस दिन झुठलाने वालों के लिए विनाश है।

11 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 011

ٱلَّذِينَ يُكَذِّبُونَ بِيَوۡمِ ٱلدِّينِ
जो बदले के दिन को झुठलाते हैं।

12 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 012

وَمَا يُكَذِّبُ بِهِۦٓ إِلَّا كُلُّ مُعۡتَدٍ أَثِيمٍ
तथा उसे केवल वही झुठलाता है, जो सीमा का उल्लंघन करने वाला, बड़ा पापी है।

13 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 013

إِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِ ءَايَٰتُنَا قَالَ أَسَٰطِيرُ ٱلۡأَوَّلِينَ
जब उसके सामने हमारी आयतों को पढ़ा जाता है, तो कहता है : यह पहले लोगों की कहानियाँ हैं।

14 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 014

كَلَّاۖ بَلۡۜ رَانَ عَلَىٰ قُلُوبِهِم مَّا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ
हरगिज़ नहीं, बल्कि जो कुछ वे कमाते थे, वह ज़ंग बनकर उनके दिलों पर छा गया है।

15 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 015

كَلَّآ إِنَّهُمۡ عَن رَّبِّهِمۡ يَوۡمَئِذٖ لَّمَحۡجُوبُونَ
हरगिज़ नहीं, निश्चय वे उस दिन अपने पालनहार (के दर्शन) से रोक दिए जाएँगे।

16 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 016

ثُمَّ إِنَّهُمۡ لَصَالُواْ ٱلۡجَحِيمِ
फिर निःसंदेह वे अवश्य जहन्नम में प्रवेश करने वाले हैं।

17 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 017

ثُمَّ يُقَالُ هَٰذَا ٱلَّذِي كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ
फिर कहा जाएगा : यही है, जिसे तुम झुठलाया करते थे।[2]
2. (7-17) इन आयतों में कुकर्मियों के दुष्परिणाम का विवरण दिया गया है। तथा यह बताया गया है कि उनके कुकर्म पहले ही से अपराध पत्रों में अंकित किए जा रहे हैं। तथा वे परलोक में कड़ी यातना का सामना करेंगे। और नरक में झोंक दिए जाएँगे। "सिज्जीन" से अभिप्राय, एक जगह है जहाँ पर काफ़िरों, अत्याचारियों और मुश्रिकों के कुकर्म पत्र तथा प्राण एकत्र किए जाते हैं। दिलों का लोहमल, पापों की कालिमा को कहा गया है। पाप अंतरात्मा को अंधकार बना देते हैं, तो सत्य को स्वीकार करने की स्वभाविक योग्यता खो देते हैं।

18 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 018

كَلَّآ إِنَّ كِتَٰبَ ٱلۡأَبۡرَارِ لَفِي عِلِّيِّينَ
हरगिज़ नहीं, निःसंदेह नेक लोगों का कर्म-पत्र निश्चय "इल्लिय्यीन" में है।

19 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 019

وَمَآ أَدۡرَىٰكَ مَا عِلِّيُّونَ
और तुम क्या जानो कि 'इल्लिय्यीन' क्या है?

20 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 020

كِتَٰبٞ مَّرۡقُومٞ
वह एक लिखित पुस्तक है।

21 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 021

يَشۡهَدُهُ ٱلۡمُقَرَّبُونَ
जिसके पास समीपवर्ती (फरिश्ते) उपस्थित रहते हैं।

22 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 022

إِنَّ ٱلۡأَبۡرَارَ لَفِي نَعِيمٍ
निःसंदेह नेक लोग बड़ी नेमत (आनंद) में होंगे।

23 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 023

عَلَى ٱلۡأَرَآئِكِ يَنظُرُونَ
तख़्तों पर (बैठे) देख रहे होंगे।

24 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 024

تَعۡرِفُ فِي وُجُوهِهِمۡ نَضۡرَةَ ٱلنَّعِيمِ
तुम उनके चेहरों पर नेमत की ताज़गी का आभास करोगे।

25 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 025

يُسۡقَوۡنَ مِن رَّحِيقٖ مَّخۡتُومٍ
उन्हें मुहर लगी शुद्ध शराब पिलाई जाएगी।

26 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 026

خِتَٰمُهُۥ مِسۡكٞۚ وَفِي ذَٰلِكَ فَلۡيَتَنَافَسِ ٱلۡمُتَنَٰفِسُونَ
उसकी मुहर कस्तूरी की होगी। अतः प्रतिस्पर्धा करने वालों को इसी (की प्राप्ति) के लिए प्रतिस्पर्धा करना चाहिए।

27 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 027

وَمِزَاجُهُۥ مِن تَسۡنِيمٍ
उसमें 'तसनीम' की मिलावट होगी।

28 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 028

عَيۡنٗا يَشۡرَبُ بِهَا ٱلۡمُقَرَّبُونَ
वह एक स्रोत है, जिससे समीपवर्ती लोग पिएँगे।[3]
3. (18-28) इन आयतों में बताया गया है कि सदाचारियों के कर्म ऊँचे पत्रों में अंकित किए जा रहे हैं जो फ़रिश्तों के पास सुरक्षित हैं। और वे स्वर्ग में सुख के साथ रहेंगे। "इल्लिय्यीन" से अभिप्राय, जन्नत में एक जगह है। जहाँ पर नेक लोगों के कर्म पत्र तथा प्राण एकत्र किए जाते हैं। वहाँ पर समीपवर्ती फ़रिश्ते उपस्थित रहते हैं।

29 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 029

إِنَّ ٱلَّذِينَ أَجۡرَمُواْ كَانُواْ مِنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ يَضۡحَكُونَ
निःसंदेह जो लोग अपराधी हैं, वे (दुनिया में) ईमान लाने वालों पर हँसा करते थे।

30 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 030

وَإِذَا مَرُّواْ بِهِمۡ يَتَغَامَزُونَ
और जब वे उनके पास से गुज़रते, तो आपस में आँखों से इशारे किया करते थे।

31 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 031

وَإِذَا ٱنقَلَبُوٓاْ إِلَىٰٓ أَهۡلِهِمُ ٱنقَلَبُواْ فَكِهِينَ
और जब अपने घर वालों की ओर लौटते, तो (मोमिनों के परिहास का) आनंद लेते हुए लौटते थे।

32 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 032

وَإِذَا رَأَوۡهُمۡ قَالُوٓاْ إِنَّ هَـٰٓؤُلَآءِ لَضَآلُّونَ
और जब वे उन (मोमिनों) को देखते, तो कहते थे : निःसंदेह ये लोग निश्चय भटके हुए हैं।

33 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 033

وَمَآ أُرۡسِلُواْ عَلَيۡهِمۡ حَٰفِظِينَ
हालाँकि वे उनपर निरीक्षक बनाकर नहीं भेजे गए थे।

34 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 034

فَٱلۡيَوۡمَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مِنَ ٱلۡكُفَّارِ يَضۡحَكُونَ
तो आज वे लोग जो ईमान लाए, काफ़िरों पर हँस रहे हैं।

35 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 035

عَلَى ٱلۡأَرَآئِكِ يَنظُرُونَ
तख़्तों पर बैठे देख रहे हैं।

36 - Al-Mutaffifin (The Defrauding) - 036

هَلۡ ثُوِّبَ ٱلۡكُفَّارُ مَا كَانُواْ يَفۡعَلُونَ
क्या काफ़िरों को उसका बदला मिल गया, जो वे किया करते थे?[4]
4. (29-36) इन आयतों में बताया गया है कि परलोक में कर्मों का फल दिया जाएगा, तो सांसारिक परिस्थितियाँ बदल जाएँगी। संसार में तो सब के लिए अल्लाह की दया है, परंतु न्याय के दिन जो अपने सुख सुविधा पर गर्व करते थे और जिन निर्धन मुसलमानों को देखकर आँखें मारते थे, वहाँ पर वही उनके दुष्परिणाम को देख कर प्रसन्न होंगे। अंतिम आयत में विश्वासहीनों के दुष्परिणाम को उनका कर्म कहा गया है। जिसमें यह संकेत है कि अच्छा फल और कुफल स्वयं इमसान के अपने कर्मों का स्वभाविक प्रभाव होगा।

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