الطور

 

At-Tur

 

The Mount

1 - At-Tur (The Mount) - 001

وَٱلطُّورِ
क़सम है तूर[1] (पर्वत) की!
1. यह उस पर्वत का नाम है जिसपर मूसा (अलैहिस्सलाम) ने अल्लाह से वार्तालाप की थी।

2 - At-Tur (The Mount) - 002

وَكِتَٰبٖ مَّسۡطُورٖ
और एक पुस्तक{2] की जो लिखी हुई है!
2. इससे अभिप्राय क़ुरआन है।

3 - At-Tur (The Mount) - 003

فِي رَقّٖ مَّنشُورٖ
ऐसे पन्ने में जो खुला हुआ है।

4 - At-Tur (The Mount) - 004

وَٱلۡبَيۡتِ ٱلۡمَعۡمُورِ
तथा बैतुल-मा'मूर (आबाद घर)[3] की!
3. यह आकाश में एक घर है जिसकी फ़रिश्ते सदैव परिक्रमा करते रहते हैं। कुछ व्याख्याकारों ने इसका अर्थ काबा लिया है, जो उपासकों से प्रत्येक समय आबाद रहता है। क्योंकि मा'मूर का अर्थ "आबाद" है।

5 - At-Tur (The Mount) - 005

وَٱلسَّقۡفِ ٱلۡمَرۡفُوعِ
तथा ऊँची उठाई हुई छत (आकाश) की!

6 - At-Tur (The Mount) - 006

وَٱلۡبَحۡرِ ٱلۡمَسۡجُورِ
और लबालब भरे हुए समुद्र [4] की!
4. (देखिए : सूरत तकवीर, आयत : 6)

7 - At-Tur (The Mount) - 007

إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ لَوَٰقِعٞ
कि निश्चय आपके पालनहार की यातना अवश्चय घटित होने वाली है।

8 - At-Tur (The Mount) - 008

مَّا لَهُۥ مِن دَافِعٖ
उसे कोई टालने वाला नहीं।

9 - At-Tur (The Mount) - 009

يَوۡمَ تَمُورُ ٱلسَّمَآءُ مَوۡرٗا
जिस दिन आकाश बुरी तरह डगमगाएगा।

10 - At-Tur (The Mount) - 010

وَتَسِيرُ ٱلۡجِبَالُ سَيۡرٗا
तथा पर्वत बहुत तेज़ी से चलेंगे।

11 - At-Tur (The Mount) - 011

فَوَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ
तो उस दिन झुठलाने वालों के लिए बड़ी तबाही है।

12 - At-Tur (The Mount) - 012

ٱلَّذِينَ هُمۡ فِي خَوۡضٖ يَلۡعَبُونَ
जो व्यर्थ बातों में पड़े खेल रहे हैं।

13 - At-Tur (The Mount) - 013

يَوۡمَ يُدَعُّونَ إِلَىٰ نَارِ جَهَنَّمَ دَعًّا
जिस दिन उन्हें ज़ोर से धक्का देकर जहन्नम की आग में धकेला जाएगा।

14 - At-Tur (The Mount) - 014

هَٰذِهِ ٱلنَّارُ ٱلَّتِي كُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ
यही है वह आग, जिसे तुम झुठलाते थे।

15 - At-Tur (The Mount) - 015

أَفَسِحۡرٌ هَٰذَآ أَمۡ أَنتُمۡ لَا تُبۡصِرُونَ
तो क्या यह जादू है, या तुम नहीं देख रहे?

16 - At-Tur (The Mount) - 016

ٱصۡلَوۡهَا فَٱصۡبِرُوٓاْ أَوۡ لَا تَصۡبِرُواْ سَوَآءٌ عَلَيۡكُمۡۖ إِنَّمَا تُجۡزَوۡنَ مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ
इसमें प्रवेश कर जाओ। फिर सब्र करो या सब्र न करो, तुम्हारे लिए बराबर है। तुम्हें केवल उसी का बदला दिया जाएगा, जो तुम किया करते थे।

17 - At-Tur (The Mount) - 017

إِنَّ ٱلۡمُتَّقِينَ فِي جَنَّـٰتٖ وَنَعِيمٖ
निःसंदेह डरने वाले लोग बागों और बड़ी नेमत में हैं।

18 - At-Tur (The Mount) - 018

فَٰكِهِينَ بِمَآ ءَاتَىٰهُمۡ رَبُّهُمۡ وَوَقَىٰهُمۡ رَبُّهُمۡ عَذَابَ ٱلۡجَحِيمِ
उसका आनंद लेने वाले हैं जो उनके रब ने उन्हें दिया और उनके रब ने उन्हें दहकती हुई आग की यातना से बचा लिया।

19 - At-Tur (The Mount) - 019

كُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ هَنِيٓـَٔۢا بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ
मज़े से खाओ और पियो, उसके बदले जो तुम किया करते थे।

20 - At-Tur (The Mount) - 020

مُتَّكِـِٔينَ عَلَىٰ سُرُرٖ مَّصۡفُوفَةٖۖ وَزَوَّجۡنَٰهُم بِحُورٍ عِينٖ
पंक्तिबद्ध तख़्तों पर तकिया लगाए हुए होंगे और हमने उनका विवाह गोरे बदन, काली आँखों वाली औरतों से कर दिया, जो बड़ी-बड़ी आँखों वाली हैं।

21 - At-Tur (The Mount) - 021

وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَٱتَّبَعَتۡهُمۡ ذُرِّيَّتُهُم بِإِيمَٰنٍ أَلۡحَقۡنَا بِهِمۡ ذُرِّيَّتَهُمۡ وَمَآ أَلَتۡنَٰهُم مِّنۡ عَمَلِهِم مِّن شَيۡءٖۚ كُلُّ ٱمۡرِيِٕۭ بِمَا كَسَبَ رَهِينٞ
और जो लोग ईमान लाए और उनकी संतान ने ईमान के साथ उनका अनुसरण किया, हम उनकी संतान को उनके साथ मिला देंगे तथा उनके कर्मों में उनसे कुछ भी कम न करेंगे। प्रत्येक व्यक्ति उसके बदले में जो उसने कमाया, गिरवी[5] रखा हुआ है।
5. अर्थात जो जैसा करेगा, वैसा भोगेगा।

22 - At-Tur (The Mount) - 022

وَأَمۡدَدۡنَٰهُم بِفَٰكِهَةٖ وَلَحۡمٖ مِّمَّا يَشۡتَهُونَ
तथा हम उन्हें और अधिक फल और मांस देंगे उसमें से जो वे चाहेंगे।

23 - At-Tur (The Mount) - 023

يَتَنَٰزَعُونَ فِيهَا كَأۡسٗا لَّا لَغۡوٞ فِيهَا وَلَا تَأۡثِيمٞ
वे उसमें एक-दूसरे से मदिरा का प्याला लेंगे, जिसमें न कोई व्यर्थ बात होगी और न गुनाह में डालना।

24 - At-Tur (The Mount) - 024

۞وَيَطُوفُ عَلَيۡهِمۡ غِلۡمَانٞ لَّهُمۡ كَأَنَّهُمۡ لُؤۡلُؤٞ مَّكۡنُونٞ
तथा उनके आस-पास चक्कर लगाते रहेंगे उन्हीं के बच्चे, जैसे वे छुपाए हुए मोती हों।

25 - At-Tur (The Mount) - 025

وَأَقۡبَلَ بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ يَتَسَآءَلُونَ
और वे एक-दूसरे की ओर मुतवज्जह होकर आपस में सवाल करेंगे।

26 - At-Tur (The Mount) - 026

قَالُوٓاْ إِنَّا كُنَّا قَبۡلُ فِيٓ أَهۡلِنَا مُشۡفِقِينَ
वे कहेंगे : निःसंदेह हम इससे पहले[6] अपने घरवालों में डरने वाले थे।
6. अर्थात संसार में अल्लाह की यातना से।

27 - At-Tur (The Mount) - 027

فَمَنَّ ٱللَّهُ عَلَيۡنَا وَوَقَىٰنَا عَذَابَ ٱلسَّمُومِ
तो अल्लाह ने हमपर उपकार किया और हमें विषैली लू की यातना से बचा लिया।

28 - At-Tur (The Mount) - 028

إِنَّا كُنَّا مِن قَبۡلُ نَدۡعُوهُۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡبَرُّ ٱلرَّحِيمُ
निःसंदेह हम इससे पहले[7] ही उसे पुकारा करते थे। निश्चय वही तो अति परोपकारी, अत्यंत दयावान् है।
7. अर्थात संसार में।

29 - At-Tur (The Mount) - 029

فَذَكِّرۡ فَمَآ أَنتَ بِنِعۡمَتِ رَبِّكَ بِكَاهِنٖ وَلَا مَجۡنُونٍ
अतः आप नसीहत करें। क्योंकि अपने पालनहार के अनुग्रह से आप न तो काहिन हैं और न ही पागल।[8]
8. जैसाकि वे आपपर यह आरोप लगा कर हताश करना चाहते हैं।

30 - At-Tur (The Mount) - 030

أَمۡ يَقُولُونَ شَاعِرٞ نَّتَرَبَّصُ بِهِۦ رَيۡبَ ٱلۡمَنُونِ
या वे कहते है कि यह एक कवि है जिसपर हम ज़माने की घटनाओं का इंतज़ार करते हैं?[9]
9. अर्थात क़ुरैश इस प्रतीक्षा में हैं कि संभवतः आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को मौत आ जाए, तो हमें चैन मिल जाए।

31 - At-Tur (The Mount) - 031

قُلۡ تَرَبَّصُواْ فَإِنِّي مَعَكُم مِّنَ ٱلۡمُتَرَبِّصِينَ
आप कह दें कि तुम प्रतीक्षा करते रहो, मैं (भी) तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करने वालों में से हूँ।

32 - At-Tur (The Mount) - 032

أَمۡ تَأۡمُرُهُمۡ أَحۡلَٰمُهُم بِهَٰذَآۚ أَمۡ هُمۡ قَوۡمٞ طَاغُونَ
क्या उन्हें उनकी बुद्धियाँ इस बात का आदेश देती हैं, ये वे स्वयं ही सरकश लोग हैं?

33 - At-Tur (The Mount) - 033

أَمۡ يَقُولُونَ تَقَوَّلَهُۥۚ بَل لَّا يُؤۡمِنُونَ
या वे कहते हैं कि उसने इसे स्वयं गढ़ लिया है? बल्कि वे ईमान नहीं लाते।

34 - At-Tur (The Mount) - 034

فَلۡيَأۡتُواْ بِحَدِيثٖ مِّثۡلِهِۦٓ إِن كَانُواْ صَٰدِقِينَ
तो फिर वे इस (क़ुरआन) के समान एक ही बात बनाकर ले आएँ, यदि वे सच्चे हैं।

35 - At-Tur (The Mount) - 035

أَمۡ خُلِقُواْ مِنۡ غَيۡرِ شَيۡءٍ أَمۡ هُمُ ٱلۡخَٰلِقُونَ
या वे बिना किसी चीज़ के[10] पैदा हो गए हैं, या वे (स्वयं) पैदा करने वाले हैं?
10. जुबैर बिन मुतइम कहते हैं कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मग़्रिब की नमाज़ में सूरतुत्- तूर पढ़ रहे थे। जब इन आयतों पर पहुँचे तो मेरे दिल की दशा यह हुई कि वह उड़ जाएगा। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4854)

36 - At-Tur (The Mount) - 036

أَمۡ خَلَقُواْ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَۚ بَل لَّا يُوقِنُونَ
या उन्होंने आकाशों और धरती को पैदा किया है? बल्कि वे विश्वास ही नहीं करते।

37 - At-Tur (The Mount) - 037

أَمۡ عِندَهُمۡ خَزَآئِنُ رَبِّكَ أَمۡ هُمُ ٱلۡمُصَۜيۡطِرُونَ
या उनके पास आपके पालनहार के ख़ज़ाने हैं, या वही अधिकार चलाने वाले हैं?

38 - At-Tur (The Mount) - 038

أَمۡ لَهُمۡ سُلَّمٞ يَسۡتَمِعُونَ فِيهِۖ فَلۡيَأۡتِ مُسۡتَمِعُهُم بِسُلۡطَٰنٖ مُّبِينٍ
या उनके पास कोई सीढ़ी है, जिसपर वे अच्छी तरह सुन[11] लेते हैं? तो उनके सुनने वाले को चाहिए कि वह कोई स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करे।
11. अर्थात आकाश की बातें। और जब उनके पास आकाश की बातें जानने का कोई साधन नहीं, तो ये लोग अल्लाह, फ़रिश्ते और धर्म की बातें किस आधार पर करते हैं?

39 - At-Tur (The Mount) - 039

أَمۡ لَهُ ٱلۡبَنَٰتُ وَلَكُمُ ٱلۡبَنُونَ
या उस (अल्लाह) के लिए तो बेटियाँ है और तुम्हारे लिए बेटे?

40 - At-Tur (The Mount) - 040

أَمۡ تَسۡـَٔلُهُمۡ أَجۡرٗا فَهُم مِّن مَّغۡرَمٖ مُّثۡقَلُونَ
या आप उनसे कोई पारिश्रमिक[12] माँगते हैं? तो वे उस तावान के बोझ से दबे जा रहे हैं।
12. अर्थात सत्धर्म के प्रचार पर।

41 - At-Tur (The Mount) - 041

أَمۡ عِندَهُمُ ٱلۡغَيۡبُ فَهُمۡ يَكۡتُبُونَ
या उनके पास परोक्ष (का ज्ञान) है? तो वे उसे लिखते[13] रहते हैं।
13. इसीलिए इस वह़्य (क़ुरआन) को नहीं मानते हैं।

42 - At-Tur (The Mount) - 042

أَمۡ يُرِيدُونَ كَيۡدٗاۖ فَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ هُمُ ٱلۡمَكِيدُونَ
या वे कोई चाल चलना चाहते हैं? तो जिन लोगों ने इनकार किया, वही चाल में आने वाले हैं।

43 - At-Tur (The Mount) - 043

أَمۡ لَهُمۡ إِلَٰهٌ غَيۡرُ ٱللَّهِۚ سُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا يُشۡرِكُونَ
या उनका अल्लाह के सिवा कोई पूज्य है? पवित्र है अल्लाह उससे जो वे साझी ठहराते हैं।

44 - At-Tur (The Mount) - 044

وَإِن يَرَوۡاْ كِسۡفٗا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ سَاقِطٗا يَقُولُواْ سَحَابٞ مَّرۡكُومٞ
और यदि वे आकाश से कोई टुकड़ा गिरता हुआ देख लें, तो कह देंगे कि यह परत दर परत बादल है।[14]
14. अर्थात तब भी अपने कुफ़्र से नहीं रुकेंगे जब तक कि उनपर यातना न आ जाए।

45 - At-Tur (The Mount) - 045

فَذَرۡهُمۡ حَتَّىٰ يُلَٰقُواْ يَوۡمَهُمُ ٱلَّذِي فِيهِ يُصۡعَقُونَ
अतः आप उन्हें छोड़ दें, यहाँ तक कि वे अपने उस दिन को जा मिलें, जिसमें[15] वे बेहोश किए जाएँगे।
15. अर्थात प्रलय के दिन।

46 - At-Tur (The Mount) - 046

يَوۡمَ لَا يُغۡنِي عَنۡهُمۡ كَيۡدُهُمۡ شَيۡـٔٗا وَلَا هُمۡ يُنصَرُونَ
जिस दिन न तो उनकी चाल काम आएगी और न उनकी सहायता की जाएगी।

47 - At-Tur (The Mount) - 047

وَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُواْ عَذَابٗا دُونَ ذَٰلِكَ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ
तथा निश्चय उन लोगों के लिए जिन्होंने अत्याचार किया, उस (आख़िरत) से पहले भी एक यातना[16] है। परंतु उनमें से अक्सर लोग नहीं जानते।
16. इससे संकेत सांसारिक यातनाओं की ओर है। (देखिए : सूरतुस-सजदा, आयत : 21)

48 - At-Tur (The Mount) - 048

وَٱصۡبِرۡ لِحُكۡمِ رَبِّكَ فَإِنَّكَ بِأَعۡيُنِنَاۖ وَسَبِّحۡ بِحَمۡدِ رَبِّكَ حِينَ تَقُومُ
और (ऐ नबी!) आप अपने पालनहार का आदेश आने तक धैर्य रखें। निःसंदेह आप हमारी आँखों के सामने हैं। तथा जब आप उठें, तो अपने रब की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता बयान करें।

49 - At-Tur (The Mount) - 049

وَمِنَ ٱلَّيۡلِ فَسَبِّحۡهُ وَإِدۡبَٰرَ ٱلنُّجُومِ
तथा रात के कुछ भाग में फिर उसकी पवित्रता का वर्णन करें और सितारों के चले जाने के बाद भी।[17]
17. रात्रि में तथा तारों के डूबने के बाद से संकेत मग़्रिब तथा इशा और फ़ज्र की नमाज़ की ओर है जिनमें ये सब नमाजें पढ़ी जाती हैं।

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