الذاريات

 

Adh-Dhariyat

 

The Winnowing Winds

1 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 001

وَٱلذَّـٰرِيَٰتِ ذَرۡوٗا
क़सम है उन (हवाओं) की जो (धूल आदि) उड़ाने वाली हैं!

2 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 002

فَٱلۡحَٰمِلَٰتِ وِقۡرٗا
फिर पानी का बड़ा भारी बोझ उठाने वाले बादलों की!

3 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 003

فَٱلۡجَٰرِيَٰتِ يُسۡرٗا
फिर आसानी से चलने वाली नावों की!

4 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 004

فَٱلۡمُقَسِّمَٰتِ أَمۡرًا
फिर (अल्लाह का) आदेश बाँटने वाले (फ़रिश्तों की)!

5 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 005

إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَصَادِقٞ
निःसंदेह जो तुमसे वादा किया जाता है, निश्चय वह सत्य है।[1]
1. इन आयतों में हवाओं की शपथ ली गई है कि हवा (वायु) तथा वर्षा की यह व्यवस्था गवाह है कि प्रलय तथा परलोक का वचन सत्य तथा न्याय का होना आवश्यक है।

6 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 006

وَإِنَّ ٱلدِّينَ لَوَٰقِعٞ
तथा निःसंदेह हिसाब अनिवार्य रूप से घटित होने वाला है।

7 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 007

وَٱلسَّمَآءِ ذَاتِ ٱلۡحُبُكِ
क़सम है रास्तों वाले आकाश की!

8 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 008

إِنَّكُمۡ لَفِي قَوۡلٖ مُّخۡتَلِفٖ
निःसंदेह तुम निश्चय एक विवादास्पद बात[2] में पड़े हो।
2. अर्थात क़ुरआन तथा प्रलय के विषय में विभिन्न बातें कर रहे हैं।

9 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 009

يُؤۡفَكُ عَنۡهُ مَنۡ أُفِكَ
उससे वही फेरा जाता है, जो (अल्लाह के ज्ञान में) फेर दिया गया है।

10 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 010

قُتِلَ ٱلۡخَرَّـٰصُونَ
अटकल लगाने वाले मारे गए।

11 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 011

ٱلَّذِينَ هُمۡ فِي غَمۡرَةٖ سَاهُونَ
जो बड़ी ग़फ़लत में भूले हुए हैं।

12 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 012

يَسۡـَٔلُونَ أَيَّانَ يَوۡمُ ٱلدِّينِ
वे पूछते[3] हैं कि बदले का दिन कब है?
3. अर्थात उपहास स्वरूप पूछते हैं।

13 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 013

يَوۡمَ هُمۡ عَلَى ٱلنَّارِ يُفۡتَنُونَ
जिस दिन वे आग पर तपाए जाएँगे।

14 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 014

ذُوقُواْ فِتۡنَتَكُمۡ هَٰذَا ٱلَّذِي كُنتُم بِهِۦ تَسۡتَعۡجِلُونَ
अपने फ़ितने (यातना) का मज़ा चखो, यही है जिसके लिए तुम जल्दी मचा रहे थे।

15 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 015

إِنَّ ٱلۡمُتَّقِينَ فِي جَنَّـٰتٖ وَعُيُونٍ
निःसंदेह परहेज़गार लोग बाग़ों और जल स्रोतों में होंगे।

16 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 016

ءَاخِذِينَ مَآ ءَاتَىٰهُمۡ رَبُّهُمۡۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَبۡلَ ذَٰلِكَ مُحۡسِنِينَ
जो कुछ उनका रब उन्हें देगा, उसे वे लेने वाले होंगे। निश्चय ही वे इससे पहले नेकी करने वाले थे।

17 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 017

كَانُواْ قَلِيلٗا مِّنَ ٱلَّيۡلِ مَا يَهۡجَعُونَ
वे रात के बहुत थोड़े भाग में सोते थे।[4]
4. अर्थात अपना अधिक समय अल्लाह के स्मरण में लगाते थे। जैसे तहज्जुद की नमाज़ और तस्बीह़ आदि।

18 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 018

وَبِٱلۡأَسۡحَارِ هُمۡ يَسۡتَغۡفِرُونَ
तथा रात्रि की अंतिम घड़ियों[5] में वे क्षमा याचना करते थे।
5. ह़दीस में है कि अल्लाह प्रत्येक रात में जब तिहाई रात रह जाए, तो संसार के आकाश की ओर उतरता है। और कहता है : है कोई जो मुझे पुकारे, तो मैं उसकी पुकार सुनूँ? है कोई जो माँगे, तो मैं उसे दूँ? है कोई जो मुझ से क्षमा माँगे, तो मैं उसे क्षमा कर दूँ? ( बुख़ारी : 1145, मुस्लिम : 758)

19 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 019

وَفِيٓ أَمۡوَٰلِهِمۡ حَقّٞ لِّلسَّآئِلِ وَٱلۡمَحۡرُومِ
और उनके धनों में माँगने वाले तथा वंचित[6] के लिए एक हक़ (हिस्सा) था।
6. अर्थात जो निर्धन होते हुए भी नहीं माँगता था, इसलिए उसे नहीं मिलता था।

20 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 020

وَفِي ٱلۡأَرۡضِ ءَايَٰتٞ لِّلۡمُوقِنِينَ
तथा धरती में विश्वास करने वालों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं।

21 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 021

وَفِيٓ أَنفُسِكُمۡۚ أَفَلَا تُبۡصِرُونَ
तथा स्वयं तुम्हारे भीतर (भी)। तो क्या तुम नहीं देखते?

22 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 022

وَفِي ٱلسَّمَآءِ رِزۡقُكُمۡ وَمَا تُوعَدُونَ
और आकाश ही में तुम्हारी रोज़ी[7] है तथा वह भी जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है।
7. अर्थात आकाश की वर्षा तुम्हारी जीविका का साधन बनती है। तथा स्वर्ग आकाश में है।

23 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 023

فَوَرَبِّ ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِ إِنَّهُۥ لَحَقّٞ مِّثۡلَ مَآ أَنَّكُمۡ تَنطِقُونَ
सो क़सम है आकाश एवं धरती के पालनहार की! निःसंदेह यह बात निश्चित रूप से सत्य है, इस बात की तरह कि निःसंदेह तुम बोलते हो।[8]
8. अर्थात अपने बोलने का विश्वास है।

24 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 024

هَلۡ أَتَىٰكَ حَدِيثُ ضَيۡفِ إِبۡرَٰهِيمَ ٱلۡمُكۡرَمِينَ
क्या आपके पास इबराहीम के सम्मानित अतिथियों की सूचना आई है?

25 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 025

إِذۡ دَخَلُواْ عَلَيۡهِ فَقَالُواْ سَلَٰمٗاۖ قَالَ سَلَٰمٞ قَوۡمٞ مُّنكَرُونَ
जब वे उसके पास आए, तो उन्होंने सलाम कहा। उसने कहा : सलाम हो। कुछ अपरिचित लोग हैं।

26 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 026

فَرَاغَ إِلَىٰٓ أَهۡلِهِۦ فَجَآءَ بِعِجۡلٖ سَمِينٖ
फिर वह चुपके से अपने घरवालों के पास गया। फिर एक मोटा-ताज़ा (भुना हुआ) बछड़ा ले आया।

27 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 027

فَقَرَّبَهُۥٓ إِلَيۡهِمۡ قَالَ أَلَا تَأۡكُلُونَ
फिर उसे उनके सामने रख दिया। कहा : क्या तुम नहीं खाते?

28 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 028

فَأَوۡجَسَ مِنۡهُمۡ خِيفَةٗۖ قَالُواْ لَا تَخَفۡۖ وَبَشَّرُوهُ بِغُلَٰمٍ عَلِيمٖ
तो उसने उनसे दिल में डर महसूस किया। उन्होंने कहा : डरो नहीं। और उन्होंने उसे एक बहुत ही ज्ञानी पुत्र की शुभ-सूचना दी।

29 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 029

فَأَقۡبَلَتِ ٱمۡرَأَتُهُۥ فِي صَرَّةٖ فَصَكَّتۡ وَجۡهَهَا وَقَالَتۡ عَجُوزٌ عَقِيمٞ
यह सुनकर उसकी पत्नी चिल्लाती हुई आगे आई, तो उसने अपना चेहरा पीट लिया और बोली : बूढ़ी बाँझ!

30 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 030

قَالُواْ كَذَٰلِكِ قَالَ رَبُّكِۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡحَكِيمُ ٱلۡعَلِيمُ
उन्होंने कहा : तेरे पालनहार ने ऐसे ही फरमाया है। निश्चय वही पूर्ण हिकमत वाला, अत्यंत ज्ञानी है।

31 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 031

۞قَالَ فَمَا خَطۡبُكُمۡ أَيُّهَا ٱلۡمُرۡسَلُونَ
उसने कहा : ऐ भेजे हुए (दूतो!) तुम्हारा अभियान क्या है?

32 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 032

قَالُوٓاْ إِنَّآ أُرۡسِلۡنَآ إِلَىٰ قَوۡمٖ مُّجۡرِمِينَ
उन्होंने कहा : निःसंदेह हम कुछ अपराधी लोगों की ओर भेजे गए हैं।

33 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 033

لِنُرۡسِلَ عَلَيۡهِمۡ حِجَارَةٗ مِّن طِينٖ
ताकि हम उनपर मिट्टी के पत्थर बरसाएँ।

34 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 034

مُّسَوَّمَةً عِندَ رَبِّكَ لِلۡمُسۡرِفِينَ
जो तुम्हारे पालनहार के पास से सीमा से आगे बढ़ने वालों के लिए चिह्नित[9] हैं।
9. अर्थात प्रत्येक पत्थर पर पापी का नाम है।

35 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 035

فَأَخۡرَجۡنَا مَن كَانَ فِيهَا مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ
फिर हमने उस (बस्ती) में जो भी ईमानवाले थे उन्हें निकाल लिया।

36 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 036

فَمَا وَجَدۡنَا فِيهَا غَيۡرَ بَيۡتٖ مِّنَ ٱلۡمُسۡلِمِينَ
तो हमने उसमें मुसलमानों के एक घर[10] के सिवा कोई और नहीं पाया।
10. जो आदरणीय लूत (अलैहिस्सलाम) का घर था।

37 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 037

وَتَرَكۡنَا فِيهَآ ءَايَةٗ لِّلَّذِينَ يَخَافُونَ ٱلۡعَذَابَ ٱلۡأَلِيمَ
तथा हमने उसमें उन लोगों के लिए एक निशानी छोड़ दी, जो दुःखदायी यातना से डरते हैं।

38 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 038

وَفِي مُوسَىٰٓ إِذۡ أَرۡسَلۡنَٰهُ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ بِسُلۡطَٰنٖ مُّبِينٖ
तथा मूसा (की कहानी) में (भी एक निशानी है), जब हमने उसे फ़िरऔन की ओर एक स्पष्ट प्रमाण देकर भेजा।

39 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 039

فَتَوَلَّىٰ بِرُكۡنِهِۦ وَقَالَ سَٰحِرٌ أَوۡ مَجۡنُونٞ
तो उसने अपनी शक्ति के कारण मुँह फेर लिया और उसने कहा : यह जादूगर है, या पागल।

40 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 040

فَأَخَذۡنَٰهُ وَجُنُودَهُۥ فَنَبَذۡنَٰهُمۡ فِي ٱلۡيَمِّ وَهُوَ مُلِيمٞ
अंततः हमने उसे और उसकी सेनाओं को पकड़ लिया, फिर उन्हें समुद्र में फेंक दिया, जबकि वह एक निंदनीय काम करने वाला था।

41 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 041

وَفِي عَادٍ إِذۡ أَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمُ ٱلرِّيحَ ٱلۡعَقِيمَ
तथा आद में, जब हमने उनपर बाँझ[11] हवा भेजी दी।
11. अर्थात अशुभ। (देखिए : सूरतुल-ह़ाक़्क़ा, आयत : 7)

42 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 042

مَا تَذَرُ مِن شَيۡءٍ أَتَتۡ عَلَيۡهِ إِلَّا جَعَلَتۡهُ كَٱلرَّمِيمِ
वह जिस चीज़ पर से भी गुज़रती, उसे सड़ी हुई हड्डी की तरह कर देती थी।

43 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 043

وَفِي ثَمُودَ إِذۡ قِيلَ لَهُمۡ تَمَتَّعُواْ حَتَّىٰ حِينٖ
तथा समूद में, जब उनसे कहा गया कि एक समय तक के लिए लाभ उठा लो।

44 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 044

فَعَتَوۡاْ عَنۡ أَمۡرِ رَبِّهِمۡ فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلصَّـٰعِقَةُ وَهُمۡ يَنظُرُونَ
फिर उन्होंने अपने पालनहार के आदेश की अवज्ञा की, तो उन्हें कड़क ने पकड़ लिया और वे देख रहे थे।

45 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 045

فَمَا ٱسۡتَطَٰعُواْ مِن قِيَامٖ وَمَا كَانُواْ مُنتَصِرِينَ
फिर उनमें न तो खड़े होने की शक्ति थी और न ही वे प्रतिकार करने वाले थे।

46 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 046

وَقَوۡمَ نُوحٖ مِّن قَبۡلُۖ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَوۡمٗا فَٰسِقِينَ
तथा इससे पहले नूह़ की जाति को (विनष्ट कर दिया)। निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग थे।[12]
12. आयत 31 से 46 तक नबियों तथा विगत जातियों के परिणाम की ओर निरंतर संकेत करके सावधान किया गया है कि अल्लाह के बदले का नियम बराबर काम कर रहा है।

47 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 047

وَٱلسَّمَآءَ بَنَيۡنَٰهَا بِأَيۡيْدٖ وَإِنَّا لَمُوسِعُونَ
तथा आकाश को हमने शक्ति के साथ बनाया और निःसंदेह हम निश्चय विस्तार करने वाले हैं।

48 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 048

وَٱلۡأَرۡضَ فَرَشۡنَٰهَا فَنِعۡمَ ٱلۡمَٰهِدُونَ
तथा धरती को हमने बिछा दिया, तो हम क्या ही खूब बिछाने वाले हैं।

49 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 049

وَمِن كُلِّ شَيۡءٍ خَلَقۡنَا زَوۡجَيۡنِ لَعَلَّكُمۡ تَذَكَّرُونَ
तथा हमने हर चीज़ के दो प्रकार बनाए, ताकि तुम नसीहत ग्रहण करो।

50 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 050

فَفِرُّوٓاْ إِلَى ٱللَّهِۖ إِنِّي لَكُم مِّنۡهُ نَذِيرٞ مُّبِينٞ
अतः अल्लाह की ओर दौड़ो। निश्चय ही मैं तुम्हारे लिए उसकी ओर से स्पष्ट सचेतकर्ता हूँ।

51 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 051

وَلَا تَجۡعَلُواْ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَۖ إِنِّي لَكُم مِّنۡهُ نَذِيرٞ مُّبِينٞ
और अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य मत बनाओ। निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए उसकी ओर से खुला डराने वाला हूँ।

52 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 052

كَذَٰلِكَ مَآ أَتَى ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا قَالُواْ سَاحِرٌ أَوۡ مَجۡنُونٌ
इसी प्रकार, उन लोगों के पास जो इनसे पहले थे, जब भी कोई रसूल आया, तो उन्होंने कहा : यह जादूगर है, या पागल।

53 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 053

أَتَوَاصَوۡاْ بِهِۦۚ بَلۡ هُمۡ قَوۡمٞ طَاغُونَ
क्या उन्होंने एक-दूसरे को इस (बात) की वसीयत[13] की है? बल्कि वे (स्वयं ही) सरकश लोग हैं।
13. जब सभी ने एक ही बात कही, तो सवाल उठता है कि क्या ये सब एक-दूसरे को वसीयत कर गए हैं? यह संभव नहीं है कि उन्होंने एक-दूसरे को इसकी वसीयत की हो। इसलिए तथ्य यह है कि वे सरकश लोग हैं।

54 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 054

فَتَوَلَّ عَنۡهُمۡ فَمَآ أَنتَ بِمَلُومٖ
अतः आप उनसे मुँह फेर लें। क्योंकि आपपर कोई दोष नहीं है।

55 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 055

وَذَكِّرۡ فَإِنَّ ٱلذِّكۡرَىٰ تَنفَعُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ
तथा आप नसीहत करें। क्योंकि निश्चय नसीहत ईमानवालों को लाभ देताी है।

56 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 056

وَمَا خَلَقۡتُ ٱلۡجِنَّ وَٱلۡإِنسَ إِلَّا لِيَعۡبُدُونِ
और मैंने जिन्नों तथा मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी इबादत करें।

57 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 057

مَآ أُرِيدُ مِنۡهُم مِّن رِّزۡقٖ وَمَآ أُرِيدُ أَن يُطۡعِمُونِ
मैं उनसे कोई रोज़ी नहीं चाहता और न यह चाहता हूँ कि वे मुझे खिलाएँ।

58 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 058

إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلرَّزَّاقُ ذُو ٱلۡقُوَّةِ ٱلۡمَتِينُ
निःसंदेह अल्लाह ही बहुत रोज़ी देनेवाला, बड़ा शक्तिशाली, अत्यंत मज़बूत है।

59 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 059

فَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُواْ ذَنُوبٗا مِّثۡلَ ذَنُوبِ أَصۡحَٰبِهِمۡ فَلَا يَسۡتَعۡجِلُونِ
अतः निश्चय उन लोगों के लिए जिन्होंने अत्याचार किया, उनके साथियों के हिस्से की तरह (यातना का) एक हिस्सा है। सो वे मुझसे जल्दी न मचाएँ।

60 - Adh-Dhariyat (The Winnowing Winds) - 060

فَوَيۡلٞ لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ مِن يَوۡمِهِمُ ٱلَّذِي يُوعَدُونَ
अतः इनकार करने वालों के लिए उनके उस दिन[14] से बड़ा विनाश है, जिसका उनसे वादा किया जा रहा है।
14. अर्थात प्रलय के दिन।

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