فصلت
Fussilat
Explained in Detail
1 - Fussilat (Explained in Detail) - 001
حمٓ
ह़ा, मीम।
2 - Fussilat (Explained in Detail) - 002
تَنزِيلٞ مِّنَ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
(यह कुरआन) अत्यंत दयावान्, असीम दयालु की ओर से अवतरित हुआ है।
3 - Fussilat (Explained in Detail) - 003
كِتَٰبٞ فُصِّلَتۡ ءَايَٰتُهُۥ قُرۡءَانًا عَرَبِيّٗا لِّقَوۡمٖ يَعۡلَمُونَ
(यह ऐसी) पुस्तक है, जिसकी आयतें खोलकर बयान की गई हैं। (यह) क़ुरआन अरबी (भाषा में) है, उन लोगों के लिए जो ज्ञान रखते हैं।
4 - Fussilat (Explained in Detail) - 004
بَشِيرٗا وَنَذِيرٗا فَأَعۡرَضَ أَكۡثَرُهُمۡ فَهُمۡ لَا يَسۡمَعُونَ
वह शुभ सूचना देने वाला तथा सचेत करने वाला है। लेकिन उनमें से अधिकतर ने (उससे) मुँह फेर लिया, तो वे सुनते ही नहीं।
5 - Fussilat (Explained in Detail) - 005
وَقَالُواْ قُلُوبُنَا فِيٓ أَكِنَّةٖ مِّمَّا تَدۡعُونَآ إِلَيۡهِ وَفِيٓ ءَاذَانِنَا وَقۡرٞ وَمِنۢ بَيۡنِنَا وَبَيۡنِكَ حِجَابٞ فَٱعۡمَلۡ إِنَّنَا عَٰمِلُونَ
तथा उन्होंने[1] कहा : हमारे दिल उससे पर्दों में हैं, जिसकी ओर आप हमें बुला रहे हैं तथा हमारे कानों में बोझ (बहरापन) है तथा हमारे और आपके बीच एक ओट है। अतः आप अपना काम करें और हम अपना काम कर रहे हैं।
1. अर्थात मक्का के मुश्रिकों ने कहा कि यह एकेश्वरवाद की बात हमें समझ में नहीं आती। इसलिए आप हमें हमारे धर्म पर ही रहने दें।
6 - Fussilat (Explained in Detail) - 006
قُلۡ إِنَّمَآ أَنَا۠ بَشَرٞ مِّثۡلُكُمۡ يُوحَىٰٓ إِلَيَّ أَنَّمَآ إِلَٰهُكُمۡ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞ فَٱسۡتَقِيمُوٓاْ إِلَيۡهِ وَٱسۡتَغۡفِرُوهُۗ وَوَيۡلٞ لِّلۡمُشۡرِكِينَ
आप कह दें कि मैं तो तुम्हारे ही जैसा एक इनसान हूँ। मेरी ओर वह़्य की जाती है कि तुम्हारा पूज्य मात्र एक ही पूज्य है। अतः सीधे उसी की ओर एकाग्र रहो तथा उससे क्षमा माँगो और साझी ठहराने वालों के लिए बड़ा विनाश है।
7 - Fussilat (Explained in Detail) - 007
ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَهُم بِٱلۡأٓخِرَةِ هُمۡ كَٰفِرُونَ
जो ज़कात नहीं देते तथा वे आख़िरत का (भी) इनकार करते हैं।
8 - Fussilat (Explained in Detail) - 008
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ لَهُمۡ أَجۡرٌ غَيۡرُ مَمۡنُونٖ
निःसंदेह जो लोग ईमान लाए तथा अच्छे कर्म किए, उनके लिए समाप्त न होने वाला बदला है।
9 - Fussilat (Explained in Detail) - 009
۞قُلۡ أَئِنَّكُمۡ لَتَكۡفُرُونَ بِٱلَّذِي خَلَقَ ٱلۡأَرۡضَ فِي يَوۡمَيۡنِ وَتَجۡعَلُونَ لَهُۥٓ أَندَادٗاۚ ذَٰلِكَ رَبُّ ٱلۡعَٰلَمِينَ
आप कह दें कि क्या तुम उस अस्तित्व का इनकार करते हो, जिसने धरती को दो दिनों में पैदा किया और उसके समकक्ष ठहराते हो? वह तो समस्त संसार का पालनहार है।
10 - Fussilat (Explained in Detail) - 010
وَجَعَلَ فِيهَا رَوَٰسِيَ مِن فَوۡقِهَا وَبَٰرَكَ فِيهَا وَقَدَّرَ فِيهَآ أَقۡوَٰتَهَا فِيٓ أَرۡبَعَةِ أَيَّامٖ سَوَآءٗ لِّلسَّآئِلِينَ
तथा उस (धरती) में उसके ऊपर से पर्वत बनाए, तथा उसमें बरकत रख दी और उसमें उसके वासियों के आहार चार[2] दिनों में निर्धारित किए, समान रूप[3] से, प्रश्न करने वालों के लिए।
2. अर्थात धरती को पैदा करने और फैलाने के कुल चार दिन हुए। 3. अर्थात धरती के सभी जीवों के आहार के संसाधन की व्यवस्था कर दी। और यह बात बता दी ताकि कोई प्रश्न करे तो उसे इसका ज्ञान करा दिया जाए।
11 - Fussilat (Explained in Detail) - 011
ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰٓ إِلَى ٱلسَّمَآءِ وَهِيَ دُخَانٞ فَقَالَ لَهَا وَلِلۡأَرۡضِ ٱئۡتِيَا طَوۡعًا أَوۡ كَرۡهٗا قَالَتَآ أَتَيۡنَا طَآئِعِينَ
फिर उसने आकाश की ओर रुख़ किया, जबकि वह धुआँ था। तो उसने उससे और धरती से कहा : तुम दोनों आओ, स्वेच्छा से या मजबूरी से। दोनों ने कहा : हम स्वेच्छा से आ गए।
12 - Fussilat (Explained in Detail) - 012
فَقَضَىٰهُنَّ سَبۡعَ سَمَٰوَاتٖ فِي يَوۡمَيۡنِ وَأَوۡحَىٰ فِي كُلِّ سَمَآءٍ أَمۡرَهَاۚ وَزَيَّنَّا ٱلسَّمَآءَ ٱلدُّنۡيَا بِمَصَٰبِيحَ وَحِفۡظٗاۚ ذَٰلِكَ تَقۡدِيرُ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡعَلِيمِ
फिर उसने उन्हें दो दिनों में सात आकाश बना दिए और प्रत्येक आकाश में उससे संबंधित काम की वह़्य की। तथा हमने निकटतम (निचले) आकाश को दीपों (चमकदार सितारों) से सुशोभित किया, तथा (उनके द्वारा) उसको सुरक्षित कर दिया।[4] यह अत्यंत प्रभुत्वशाली, सब कुछ जानने वाले (अल्लाह) की योजना है।
4. अर्थात शैतानों से सुरक्षित कर दिया। (देखिए : सूरतुस-साफ़्फ़ात, आयत 7 से 10 तक)।
13 - Fussilat (Explained in Detail) - 013
فَإِنۡ أَعۡرَضُواْ فَقُلۡ أَنذَرۡتُكُمۡ صَٰعِقَةٗ مِّثۡلَ صَٰعِقَةِ عَادٖ وَثَمُودَ
फिर यदि वे विमुख हों, तो आप कह दें कि मैंने तुम्हें ऐसी कड़क (भयंकर यातना) से सावधान कर दिया है, जो आद और समूद की कड़क जैसी होगी।
14 - Fussilat (Explained in Detail) - 014
إِذۡ جَآءَتۡهُمُ ٱلرُّسُلُ مِنۢ بَيۡنِ أَيۡدِيهِمۡ وَمِنۡ خَلۡفِهِمۡ أَلَّا تَعۡبُدُوٓاْ إِلَّا ٱللَّهَۖ قَالُواْ لَوۡ شَآءَ رَبُّنَا لَأَنزَلَ مَلَـٰٓئِكَةٗ فَإِنَّا بِمَآ أُرۡسِلۡتُم بِهِۦ كَٰفِرُونَ
जब उनके पास रसूल उनके आगे से तथा उनके पीछे से आए[5] (और कहा) कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो। तो उन्होंने कहा : यदि हमारा पालनहार चाहता, तो किसी फ़रिश्ते को उतार देता।[6] अतः जिस बात के साथ तुम भेजे गए हो, हम उसका इनकार करते हैं।
5. अर्थात प्रत्येक प्रकार से समझाते रहे। 6. वे मनुष्य को रसूल मानने के लिए तैयार नहीं थे। (जिस प्रकार कुछ लोग जो रसूल को मानते हैं पर वे उन्हें मनुष्य मानने को तैयार नहीं हैं)। (देखिए : सूरतुल-अन्आम, आयत : 9-10, सूरतुल-मूमिनून, आयत : 24)
15 - Fussilat (Explained in Detail) - 015
فَأَمَّا عَادٞ فَٱسۡتَكۡبَرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ بِغَيۡرِ ٱلۡحَقِّ وَقَالُواْ مَنۡ أَشَدُّ مِنَّا قُوَّةًۖ أَوَلَمۡ يَرَوۡاْ أَنَّ ٱللَّهَ ٱلَّذِي خَلَقَهُمۡ هُوَ أَشَدُّ مِنۡهُمۡ قُوَّةٗۖ وَكَانُواْ بِـَٔايَٰتِنَا يَجۡحَدُونَ
फिर रहे आद समुदाय के लोग, तो उन्होंने धरती में नाहक़ अभिमान किया तथा कहने लगे : कौन शक्ति में हमसे बढ़कर है? क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह, जिसने उनको पैदा किया, वह शक्ति में उनसे बहुत बढ़कर है?! तथा वे हमारी आयतों का इनकार करते रहे।
16 - Fussilat (Explained in Detail) - 016
فَأَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ رِيحٗا صَرۡصَرٗا فِيٓ أَيَّامٖ نَّحِسَاتٖ لِّنُذِيقَهُمۡ عَذَابَ ٱلۡخِزۡيِ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡأٓخِرَةِ أَخۡزَىٰۖ وَهُمۡ لَا يُنصَرُونَ
अंततः, हमने कुछ अशुभ दिनों में उनपर प्रचंड वायु भेज दी। ताकि हम उन्हें सांसारिक जीवन में अपमानकारी यातना चखाएँ और आख़िरत (परलोक) की यातना तो और अधिक अपमानकारी है। तथा उन्हें कोई सहायता नहीं दी जाएगी।
17 - Fussilat (Explained in Detail) - 017
وَأَمَّا ثَمُودُ فَهَدَيۡنَٰهُمۡ فَٱسۡتَحَبُّواْ ٱلۡعَمَىٰ عَلَى ٱلۡهُدَىٰ فَأَخَذَتۡهُمۡ صَٰعِقَةُ ٱلۡعَذَابِ ٱلۡهُونِ بِمَا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ
और रहे समूद समुदाय के लोग, तो हमने उन्हें सीधा मार्ग दिखाया, परंतु उन्होंने मार्गदर्शन की अपेक्षा अंधेपन को पसंद किया। अंततः उन्हें अपमानकारी यातना की कड़क ने पकड़ लिया, उसके कारण जो वे कमा रहे थे।
18 - Fussilat (Explained in Detail) - 018
وَنَجَّيۡنَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَكَانُواْ يَتَّقُونَ
तथा हमने उन लोगों को बचा लिया, जो ईमान लाए और वे डरते थे।
19 - Fussilat (Explained in Detail) - 019
وَيَوۡمَ يُحۡشَرُ أَعۡدَآءُ ٱللَّهِ إِلَى ٱلنَّارِ فَهُمۡ يُوزَعُونَ
और जिस दिन अल्लाह के शत्रुओं को एकत्रित कर जहन्नम की ओर लाया जाएगा, तो उन्हें पंक्तिबद्ध कर दिया जाएगा।
20 - Fussilat (Explained in Detail) - 020
حَتَّىٰٓ إِذَا مَا جَآءُوهَا شَهِدَ عَلَيۡهِمۡ سَمۡعُهُمۡ وَأَبۡصَٰرُهُمۡ وَجُلُودُهُم بِمَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ
यहाँ तक कि जब वे उस (जहन्नम) के पास आ जाएँगे, तो उनके कान तथा उनकी आँखें और उनकी खालें उनके विरुद्ध उन कर्मों की गवाही देंगी, जो वे किया करते थे।
21 - Fussilat (Explained in Detail) - 021
وَقَالُواْ لِجُلُودِهِمۡ لِمَ شَهِدتُّمۡ عَلَيۡنَاۖ قَالُوٓاْ أَنطَقَنَا ٱللَّهُ ٱلَّذِيٓ أَنطَقَ كُلَّ شَيۡءٖۚ وَهُوَ خَلَقَكُمۡ أَوَّلَ مَرَّةٖ وَإِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ
और वे अपनी खालों से कहेंगे : तुमने हमारे विरुद्ध क्यों गवाही दी? तो वे उत्तर देंगी : हमें उसी अल्लाह ने बोलने की शक्ति प्रदान की, जिसने प्रत्येक वस्तु को बोलने की शक्ति दी है। तथा उसी ने तुम्हें प्रथम बार पैदा किया और तुम उसी की ओर लौटाए जाओगे।
22 - Fussilat (Explained in Detail) - 022
وَمَا كُنتُمۡ تَسۡتَتِرُونَ أَن يَشۡهَدَ عَلَيۡكُمۡ سَمۡعُكُمۡ وَلَآ أَبۡصَٰرُكُمۡ وَلَا جُلُودُكُمۡ وَلَٰكِن ظَنَنتُمۡ أَنَّ ٱللَّهَ لَا يَعۡلَمُ كَثِيرٗا مِّمَّا تَعۡمَلُونَ
तथा तुम (पाप करते समय) छिपते[7] भी नहीं थे कि कहीं तुम्हारे कान, तुम्हारी आँखें और तुम्हारी खालें तुम्हारे विरुद्ध गवाही न दे दें। बल्कि, तुम यह समझते रहे कि अल्लाह उनमें से अधिकतर बातों को जानता ही नहीं, जो तुम करते हो।
7. आदरणीय अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि ख़ाना काबा के पास एक घर में दो क़ुरैशी तथा एक सक़फ़ी अथवा दो सक़फ़ी और एक क़ुरैशी थे। तो एक ने दूसरे से कहा कि तुम समझते हो कि अल्लाह हमारी बातें सुन रहा है? किसी ने कहा : यदि कुछ सुनता है तो सब कुछ सुनता है। उसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4816, 4817, 7521)
23 - Fussilat (Explained in Detail) - 023
وَذَٰلِكُمۡ ظَنُّكُمُ ٱلَّذِي ظَنَنتُم بِرَبِّكُمۡ أَرۡدَىٰكُمۡ فَأَصۡبَحۡتُم مِّنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ
तुम्हारी इसी दुर्भावना ने, जो तुमने अपने पालनहार के प्रति रखा, तुम्हें विनष्ट कर दिया और तुम घाटा उठाने वालों में से हो गए।
24 - Fussilat (Explained in Detail) - 024
فَإِن يَصۡبِرُواْ فَٱلنَّارُ مَثۡوٗى لَّهُمۡۖ وَإِن يَسۡتَعۡتِبُواْ فَمَا هُم مِّنَ ٱلۡمُعۡتَبِينَ
अब यदि वे धैर्य रखें, तो भी जहन्नम ही उनका ठिकाना है। और यदि वे क्षमा माँगें, तो भी वे क्षमा नहीं किए जाएँगे।
25 - Fussilat (Explained in Detail) - 025
۞وَقَيَّضۡنَا لَهُمۡ قُرَنَآءَ فَزَيَّنُواْ لَهُم مَّا بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ وَحَقَّ عَلَيۡهِمُ ٱلۡقَوۡلُ فِيٓ أُمَمٖ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِم مِّنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِۖ إِنَّهُمۡ كَانُواْ خَٰسِرِينَ
और हमने उनके लिए कुछ साथी नियुक्त कर दिए, तो उन्होंने उनके अगले और पिछले कामों को उनके लिए शोभित बनाकर पेश किया। तथा उनपर भी जिन्नों और इनसानों के उन समूहों के साथ, जो उनसे पहले गुज़र चुके थे, अल्लाह (की यातना) का वादा सिद्ध हो गया। निश्चय ही वे घाटा उठाने वाले थे।
26 - Fussilat (Explained in Detail) - 026
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَا تَسۡمَعُواْ لِهَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ وَٱلۡغَوۡاْ فِيهِ لَعَلَّكُمۡ تَغۡلِبُونَ
तथा काफ़िरों ने कहा[8] कि इस क़ुरआन को न सुनो और (जब पढ़ा जाए तो) इसमें शोर करो। ताकि तुम प्रभावशाली रहो।
8. मक्का के काफ़िरों ने जब देखा कि लोग क़ुरआन सुनकर प्रभावित हो रहे हैं, तो उन्होंने यह योजना बनाई।
27 - Fussilat (Explained in Detail) - 027
فَلَنُذِيقَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ عَذَابٗا شَدِيدٗا وَلَنَجۡزِيَنَّهُمۡ أَسۡوَأَ ٱلَّذِي كَانُواْ يَعۡمَلُونَ
अतः हम अवश्य ही उन लोगों को जो काफ़िर हो गए, कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे, तथा निश्चय ही हम उन्हें उन दुष्कर्मों का बदला अवश्य देंगे, जो वे किया करते थे।
28 - Fussilat (Explained in Detail) - 028
ذَٰلِكَ جَزَآءُ أَعۡدَآءِ ٱللَّهِ ٱلنَّارُۖ لَهُمۡ فِيهَا دَارُ ٱلۡخُلۡدِ جَزَآءَۢ بِمَا كَانُواْ بِـَٔايَٰتِنَا يَجۡحَدُونَ
यह अल्लाह के शत्रुओं का प्रतिकार जहन्नम है। उनके लिए उसी में स्थायी घर होगा। यह उसका बदला है, जो वे हमारी अयतों का इनकार किया करते थे।
29 - Fussilat (Explained in Detail) - 029
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ رَبَّنَآ أَرِنَا ٱلَّذَيۡنِ أَضَلَّانَا مِنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِ نَجۡعَلۡهُمَا تَحۡتَ أَقۡدَامِنَا لِيَكُونَا مِنَ ٱلۡأَسۡفَلِينَ
तथा जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे कहेंगे : ऐ हमारे पालनहर! हमें जिन्नों और इनसानों में से वे लोग दिखा दे, जिन्होंने हमें गुमराह किया था, हम उन्हें अपने पैरों तले रौंद डालें। ताकि वे सबसे निचले लोगों में से हो जाएँ।
30 - Fussilat (Explained in Detail) - 030
إِنَّ ٱلَّذِينَ قَالُواْ رَبُّنَا ٱللَّهُ ثُمَّ ٱسۡتَقَٰمُواْ تَتَنَزَّلُ عَلَيۡهِمُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ أَلَّا تَخَافُواْ وَلَا تَحۡزَنُواْ وَأَبۡشِرُواْ بِٱلۡجَنَّةِ ٱلَّتِي كُنتُمۡ تُوعَدُونَ
निःसंदेह जिन लोगों ने कहा : हमारा पालनहार केवल अल्लाह है, फिर उसपर मज़बूती से जमे रहे[9], उनपर फ़रिश्ते उतरते[10] हैं कि भय न करो और न शोकाकुल हो तथा उस जन्नत से खुश हो जाओ, जिसका तुमसे वादा किया जाता था।
9. अर्थात प्रत्येक दशा में आज्ञापालन तथा एकेश्वरवाद पर स्थिर रहे। 10. उनके मरण के समय।
31 - Fussilat (Explained in Detail) - 031
نَحۡنُ أَوۡلِيَآؤُكُمۡ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَفِي ٱلۡأٓخِرَةِۖ وَلَكُمۡ فِيهَا مَا تَشۡتَهِيٓ أَنفُسُكُمۡ وَلَكُمۡ فِيهَا مَا تَدَّعُونَ
हम सांसारिक जीवन में भी तुम्हारे सहायक हैं तथा आख़िरत में भी,और तुम्हारे लिए उस (जन्नत) में वह कुछ है, जो तुम्हारे दिल चाहेंगे तथा उसमें तुम्हारे लिए वह कुछ है, जिसकी तुम माँग करोगे।
32 - Fussilat (Explained in Detail) - 032
نُزُلٗا مِّنۡ غَفُورٖ رَّحِيمٖ
(यह) अति क्षमाशील, असीम दयावान् की ओर से आतिथ्य है।
33 - Fussilat (Explained in Detail) - 033
وَمَنۡ أَحۡسَنُ قَوۡلٗا مِّمَّن دَعَآ إِلَى ٱللَّهِ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا وَقَالَ إِنَّنِي مِنَ ٱلۡمُسۡلِمِينَ
और उस व्यक्ति से अच्छी बात किसकी हो सकती है, जिसने अल्लाह की ओर बुलाया तथा सत्कर्म किया और कहा : निःसंदेह मैं मुसलमानों (आज्ञाकारियों) में से हूँ।
34 - Fussilat (Explained in Detail) - 034
وَلَا تَسۡتَوِي ٱلۡحَسَنَةُ وَلَا ٱلسَّيِّئَةُۚ ٱدۡفَعۡ بِٱلَّتِي هِيَ أَحۡسَنُ فَإِذَا ٱلَّذِي بَيۡنَكَ وَبَيۡنَهُۥ عَدَٰوَةٞ كَأَنَّهُۥ وَلِيٌّ حَمِيمٞ
भलाई और बुराई बराबर नहीं हो सकते। आप बुराई को ऐसे तरीक़े से दूर करें जो सर्वोत्तम हो। तो सहसा वह व्यक्ति जिसके और आपके बीच बैर है, ऐसा हो जाएगा मानो वह हार्दिक मित्र है।[10]
10. इस आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को तथा आपके माध्यम से सर्वसाधारण मुसलमानों को यह निर्देश दिया गया है कि बुराई का बदला अच्छाई से तथा अपकार का बदला उपकार से दें। जिसका प्रभाव यह होगा कि अपना शत्रु भी हार्दिक मित्र बन जाएगा।
35 - Fussilat (Explained in Detail) - 035
وَمَا يُلَقَّىٰهَآ إِلَّا ٱلَّذِينَ صَبَرُواْ وَمَا يُلَقَّىٰهَآ إِلَّا ذُو حَظٍّ عَظِيمٖ
और यह गुण उन्हीं लोगों को प्राप्त होता है, जो धैर्य से काम लेते हैं तथा यह उसी को प्राप्त होता है, जो बड़ा भाग्यशाली हो।
36 - Fussilat (Explained in Detail) - 036
وَإِمَّا يَنزَغَنَّكَ مِنَ ٱلشَّيۡطَٰنِ نَزۡغٞ فَٱسۡتَعِذۡ بِٱللَّهِۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ
और यदि शैतान आपको उकसाए, तो अल्लाह से शरण माँगिए। निःसंदेह वह सब कुछ सुनने वाला, जानने वाला है।
37 - Fussilat (Explained in Detail) - 037
وَمِنۡ ءَايَٰتِهِ ٱلَّيۡلُ وَٱلنَّهَارُ وَٱلشَّمۡسُ وَٱلۡقَمَرُۚ لَا تَسۡجُدُواْ لِلشَّمۡسِ وَلَا لِلۡقَمَرِ وَٱسۡجُدُواْۤ لِلَّهِۤ ٱلَّذِي خَلَقَهُنَّ إِن كُنتُمۡ إِيَّاهُ تَعۡبُدُونَ
तथा उसकी निशानियों में से रात और दिन तथा सूरज और चाँद हैं। तुम न तो सूरज को सजदा करो और न चाँद को, और उस अल्लाह को सजदा करो, जिसने उन्हें पैदा किया है, यदि तुम उसी (अल्लाह) की इबादत करते हो।[11]
11. अर्थात सच्चा पूज्य अल्लाह के सिवा कोई नहीं है। ये सूर्य, चंद्रमा और अन्य आकाशीय ग्रहें अल्लाह के बनाए हुए हैं। और उसी के अधीन हैं। इसलिए इनको सजदा करना व्यर्थ है। और जो ऐसा करता है, वह अल्लाह के साथ उसकी बनाई हुई चीज़ को उसका साझी बनाता है, जो शिर्क और अक्षम्य पापा तथा अन्याय है। सजदा करना इबादत है, जो अल्लाह ही के लिए विशिष्ट है। इसीलिए कहा कि यदि अल्लाह ही की इबादत करते हो, तो सजदा भी उसी को करो। उसके सिवा कोई ऐसा नहीं जिसे सजदा करना उचित हो। क्योंकि सब अल्लाह के बनाए हुए हैं, सूर्य हो या कोई मनुष्य। सजदा आदर के लिए हो या इबादत (वंदना) के लिए। अल्लाह के सिवा किसी को भी सजदा करना अवैध तथा शिर्क है, जिसाका परिणाम सदैव के लिए नरक है। आयत 38 पूरी करके सजदा करें।
38 - Fussilat (Explained in Detail) - 038
فَإِنِ ٱسۡتَكۡبَرُواْ فَٱلَّذِينَ عِندَ رَبِّكَ يُسَبِّحُونَ لَهُۥ بِٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَهُمۡ لَا يَسۡـَٔمُونَ۩
फिर यदि वे अभिमान करें, तो जो (फ़रिश्ते) आपके पालनहार के पास हैं, वे रात दिन उसकी पवित्रता का वर्णन करते रहते हैं, और वे थकते नहीं हैं।
39 - Fussilat (Explained in Detail) - 039
وَمِنۡ ءَايَٰتِهِۦٓ أَنَّكَ تَرَى ٱلۡأَرۡضَ خَٰشِعَةٗ فَإِذَآ أَنزَلۡنَا عَلَيۡهَا ٱلۡمَآءَ ٱهۡتَزَّتۡ وَرَبَتۡۚ إِنَّ ٱلَّذِيٓ أَحۡيَاهَا لَمُحۡيِ ٱلۡمَوۡتَىٰٓۚ إِنَّهُۥ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ
तथा उसकी निशानियों में से है कि आप धरती को सूखी हुई (बंजर) देखते हैं। फिर जब हम उसपर बारिश बरसाते हैं, तो वह हरित हो जाती है और बढ़ने लगती है। निःसंदेह जिस (अल्लाह) ने उसे जीवित किया, वह मुर्दों को अवश्य जीवित करने वाला है। निःसंदेह वह हर चीज़ पर समार्थ्यवान् है।
40 - Fussilat (Explained in Detail) - 040
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُلۡحِدُونَ فِيٓ ءَايَٰتِنَا لَا يَخۡفَوۡنَ عَلَيۡنَآۗ أَفَمَن يُلۡقَىٰ فِي ٱلنَّارِ خَيۡرٌ أَم مَّن يَأۡتِيٓ ءَامِنٗا يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ ٱعۡمَلُواْ مَا شِئۡتُمۡ إِنَّهُۥ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٌ
निःसंदेह जो लोग हमारी आयतों में टेढ़ापन अपनाते हैं, वे हमसे छिपे हुए नहीं हैं। तो क्या जो व्यक्ति आग में डाला जाएगा, वह उत्तम है अथवा जो क़ियामत के दिन निश्चिंत होकर आएगा? तुम जो चाहो करो। निःसंदेह, तुम जो कुछ करते हो, वह उसे ख़ूब देखने वाला है।[12]
12. अर्थात तुम्हारे मनमानी करने का कुफल तुम्हें अवश्य देगा।
41 - Fussilat (Explained in Detail) - 041
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِٱلذِّكۡرِ لَمَّا جَآءَهُمۡۖ وَإِنَّهُۥ لَكِتَٰبٌ عَزِيزٞ
निःसंदेह जिन लोगों ने इस ज़िक्र (क़ुरआन) का इनकार किया, जब वह उनके पास आया, (वे विनष्ट होने वाले हैं)। और निःसंदेह यह एक प्रभुत्वशाली पुस्तक है।
42 - Fussilat (Explained in Detail) - 042
لَّا يَأۡتِيهِ ٱلۡبَٰطِلُ مِنۢ بَيۡنِ يَدَيۡهِ وَلَا مِنۡ خَلۡفِهِۦۖ تَنزِيلٞ مِّنۡ حَكِيمٍ حَمِيدٖ
इसके पास झूठ न इसके आगे से आ सकता है और न इसके पीछे से। यह पूर्ण हिकमत वाले, सर्व प्रशंसित (अल्लाह) की ओर से अवतरित है।
43 - Fussilat (Explained in Detail) - 043
مَّا يُقَالُ لَكَ إِلَّا مَا قَدۡ قِيلَ لِلرُّسُلِ مِن قَبۡلِكَۚ إِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغۡفِرَةٖ وَذُو عِقَابٍ أَلِيمٖ
आपसे वही कहा जा रहा है, जो आपसे पहले के रसूलों से कहा जा चुका है।[13] निःसंदेह आपका पालनहार निश्चय बड़ी क्षमा वाला और बहुत दुःखदायी यातना वाला है।
13. अर्थात उन्हें जादूगर, झूठा तथा कवि इत्यादि कहा गया। (देखिए : सूरतुज़्-ज़ारियात, आयत : 52-53)
44 - Fussilat (Explained in Detail) - 044
وَلَوۡ جَعَلۡنَٰهُ قُرۡءَانًا أَعۡجَمِيّٗا لَّقَالُواْ لَوۡلَا فُصِّلَتۡ ءَايَٰتُهُۥٓۖ ءَا۬عۡجَمِيّٞ وَعَرَبِيّٞۗ قُلۡ هُوَ لِلَّذِينَ ءَامَنُواْ هُدٗى وَشِفَآءٞۚ وَٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ فِيٓ ءَاذَانِهِمۡ وَقۡرٞ وَهُوَ عَلَيۡهِمۡ عَمًىۚ أُوْلَـٰٓئِكَ يُنَادَوۡنَ مِن مَّكَانِۭ بَعِيدٖ
और यदि हम इसे ग़ैर अरबी क़ुरआन बनाते, तो वे अवश्य कहते कि इसकी आयतें क्यों नहीं खोलकर बयान की गईं? क्या (पुस्तक) ग़ैर अरबी है और (नबी) अरबी? आप कह दीजिए : वह उन लोगों के लिए जो ईमान लाए, मार्गदर्शन और आरोग्य है, तथा जो लोग ईमान नहीं लाते, उनके कानों में बोझ है और यह उनके हक़ में अंधेपन का कारण है। वे लोग ऐसे हैं जो दूर स्थान से पुकारे जा रहे हैं।[14]
14. अर्थात क़ुरआन से प्रभावित होने के लिए ईमान आवश्यक है। इसके बिना इसका कोई प्रभाव नहीं होता।
45 - Fussilat (Explained in Detail) - 045
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ فَٱخۡتُلِفَ فِيهِۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةٞ سَبَقَتۡ مِن رَّبِّكَ لَقُضِيَ بَيۡنَهُمۡۚ وَإِنَّهُمۡ لَفِي شَكّٖ مِّنۡهُ مُرِيبٖ
और हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की। तो उसमें मतभेद किया गया। और यदि आपके पालनहार की ओर से एक बात पहले ही से निर्धारित न होती[15], तो उनके बीच अवश्य निर्णय कर दिया गया होता। और निःसंदेह वे उस (कुरआन) के बारे में असमंजस में डाल देने वाले संदेह में पड़े हुए हैं।
15. अर्थात प्रलय के दिन निर्णय करने की, तो संसार ही में निर्णय कर दिया जाता और उन्हें कोई अवसर नहीं दिया जाता। (देखिए : सूरत फ़ातिर, आयत : 45)
46 - Fussilat (Explained in Detail) - 046
مَّنۡ عَمِلَ صَٰلِحٗا فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَنۡ أَسَآءَ فَعَلَيۡهَاۗ وَمَا رَبُّكَ بِظَلَّـٰمٖ لِّلۡعَبِيدِ
जो व्यक्ति अच्छा कर्म करेगा, तो वह अपने ही लाभ के लिए करेगा और जो बुरा कार्य करेगा, तो उसका दुष्परिणाम उसी पर होगा और आपका पालनहार बंदों पर तनिक भी अत्याचार करने वाला नहीं है।[16]
16. अर्थात किसी को बिना पाप के यातना नहीं देता।
47 - Fussilat (Explained in Detail) - 047
۞إِلَيۡهِ يُرَدُّ عِلۡمُ ٱلسَّاعَةِۚ وَمَا تَخۡرُجُ مِن ثَمَرَٰتٖ مِّنۡ أَكۡمَامِهَا وَمَا تَحۡمِلُ مِنۡ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلۡمِهِۦۚ وَيَوۡمَ يُنَادِيهِمۡ أَيۡنَ شُرَكَآءِي قَالُوٓاْ ءَاذَنَّـٰكَ مَامِنَّا مِن شَهِيدٖ
क़ियामत का ज्ञान उसी (अल्लाह) की ओर लौटाया जाता है। तथा जो भी फल अपने गाभों से निकलते हैं और जो भी मादा गर्भ धारण करती है और बच्चा जनती है, सबका उसे ज्ञान है। और जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा : कहाँ हैं मेरे साझी? वे कहेंगे : हमने तुझे स्पष्ट कर दिया है कि हममें से कोई (इसकी) गवाही देने वाला नहीं है।
48 - Fussilat (Explained in Detail) - 048
وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَدۡعُونَ مِن قَبۡلُۖ وَظَنُّواْ مَا لَهُم مِّن مَّحِيصٖ
और वे उनसे ग़ायब हो जाएँगे, जिन्हें वे इससे पूर्व पुकारते थे। तथा उन्हें यह विश्वास हो जाएगा कि उनके लिए भागने की कोई जगह नहीं है।
49 - Fussilat (Explained in Detail) - 049
لَّا يَسۡـَٔمُ ٱلۡإِنسَٰنُ مِن دُعَآءِ ٱلۡخَيۡرِ وَإِن مَّسَّهُ ٱلشَّرُّ فَيَـُٔوسٞ قَنُوطٞ
मनुष्य भलाई माँगने से नहीं थकता और यदि उसे कोई बुराई पहुँच जाए, तो हताश और निराश[17] हो जाता है।
17. यह साधारण लोगों की दशा है। अन्यथा मुसलमान निराश नहीं होता।
50 - Fussilat (Explained in Detail) - 050
وَلَئِنۡ أَذَقۡنَٰهُ رَحۡمَةٗ مِّنَّا مِنۢ بَعۡدِ ضَرَّآءَ مَسَّتۡهُ لَيَقُولَنَّ هَٰذَا لِي وَمَآ أَظُنُّ ٱلسَّاعَةَ قَآئِمَةٗ وَلَئِن رُّجِعۡتُ إِلَىٰ رَبِّيٓ إِنَّ لِي عِندَهُۥ لَلۡحُسۡنَىٰۚ فَلَنُنَبِّئَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِمَا عَمِلُواْ وَلَنُذِيقَنَّهُم مِّنۡ عَذَابٍ غَلِيظٖ
और निश्चय यदि हम उसे, किसी तकलीफ़ के पश्चात् जो उसे पहुँची हो, अपनी रहमत का मज़ा चखाएँ, तो अवश्य कहेगा : यह मेरा हक़ है, और मैं नहीं समझता कि क़ियामत आने वाली है, और यदि मैं अपने पालनहार की ओर लौटाया गया, तो निश्चय ही मेरे लिए उसके पास अवश्य भलाई है। अतः हम निश्चय उन लोगों को जिन्होंने कुफ़्र किया अवश्य बता देंगे जो कुछ उन्होंने किया, तथा निश्चय हम उन्हें एक कठिन यातना अवश्य चखाएँगे।[18]
18. आयत का भावार्थ यह है कि काफ़िर की यह दशा होती है। उसे अल्लाह के यहाँ जाने का विश्वास नहीं होता। फिर यदि प्रलय का होना मान ले, तो भी इसी कुविचार में मग्न रहता है कि यदि अल्लाह ने मुझे संसार में सुख-सुविधा दी है, तो वहाँ भी अवश्य देगा। और यह नहीं समझता कि यहाँ उसे जो कुछ दिया गया है, वह परीक्षा के लिए दिया गया है। और प्रलय के दिन कर्मों के आधार पर प्रतिकार दिया जाएगा।
51 - Fussilat (Explained in Detail) - 051
وَإِذَآ أَنۡعَمۡنَا عَلَى ٱلۡإِنسَٰنِ أَعۡرَضَ وَنَـَٔا بِجَانِبِهِۦ وَإِذَا مَسَّهُ ٱلشَّرُّ فَذُو دُعَآءٍ عَرِيضٖ
और जब हम इनसान पर उपकार करते हैं, तो वह मुँह फेर लेता है और दूर हो जाता है। तथा जब उसे बुराई पहुँचती है, तो लंबी-चौड़ी दुआएँ करने वाला हो जाता है।
52 - Fussilat (Explained in Detail) - 052
قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ إِن كَانَ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ ثُمَّ كَفَرۡتُم بِهِۦ مَنۡ أَضَلُّ مِمَّنۡ هُوَ فِي شِقَاقِۭ بَعِيدٖ
आप कह दें : मुझे बतलाओ कि यदि यह (क़ुरआन) अल्लाह की ओर से हुआ, फ़िर तुमने उसका इनकार कर दिया, तो उससे अधिक भटका हुआ कौन होगा, जो बहुत दूर के विरोध में पड़ा हो?
53 - Fussilat (Explained in Detail) - 053
سَنُرِيهِمۡ ءَايَٰتِنَا فِي ٱلۡأٓفَاقِ وَفِيٓ أَنفُسِهِمۡ حَتَّىٰ يَتَبَيَّنَ لَهُمۡ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّۗ أَوَلَمۡ يَكۡفِ بِرَبِّكَ أَنَّهُۥ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ شَهِيدٌ
शीघ्र ही हम उन्हें अपनी निशानियाँ संसार के किनारों में तथा स्वयं उनके भीतर दिखाएँगे, यहाँ तक कि उनके लिए स्पष्ट हो जाए कि निश्चय यही सत्य है।[19] और क्या आपका पालनहार प्रयाप्त नहीं इस बात के लिए कि निःसंदेह वह चीज़ पर गवाह है?
19. अर्थात् क़ुरआन। और निशानियों से अभिप्राय वह विजय है जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा आपके पश्चात् मुसलमानों को प्राप्त होंगी। जिनसे उन्हें विश्वास हो जाएगा कि क़ुरआन ही सत्य है। इस आयत का एक दूसरा भावार्थ यह भी लिया गया है कि अल्लाह इस संसार में तथा स्वयं तुम्हारे भीतर ऐसी निशानियाँ दिखाएगा। और यह निशानियाँ निरंतर वैज्ञानिक आविष्कारों द्वारा सामने आ रहीं हैं। और प्रलय तक आती रहेंगी जिनसे क़ुरआन पाक का सत्य होना सिद्ध होता रहेगा।
54 - Fussilat (Explained in Detail) - 054