الأنبياء

 

Al-Anbya

 

The Prophets

1 - Al-Anbya (The Prophets) - 001

ٱقۡتَرَبَ لِلنَّاسِ حِسَابُهُمۡ وَهُمۡ فِي غَفۡلَةٖ مُّعۡرِضُونَ
लोगों के लिए उनका हिसाब[1] बहुत निकट आ गया और वे बड़ी लापरवाही में मुँह फेरने वाले हैं।
1. अर्थात प्रलय का समय, फिर भी लोग उससे अचेत माया मोह में लिप्त हैं।

2 - Al-Anbya (The Prophets) - 002

مَا يَأۡتِيهِم مِّن ذِكۡرٖ مِّن رَّبِّهِم مُّحۡدَثٍ إِلَّا ٱسۡتَمَعُوهُ وَهُمۡ يَلۡعَبُونَ
उनके पालनहार की ओर से उनके पास कोई नया उपदेश[2] नहीं आता, परंतु वे उसे हँसी-खेल करते हुए बड़ी कठिनाई से सुनते हैं।
2. अर्थात क़ुरआन की कोई आयत अवतरित होती है, तो उसमें चिंतन और विचार नहीं करते।

3 - Al-Anbya (The Prophets) - 003

لَاهِيَةٗ قُلُوبُهُمۡۗ وَأَسَرُّواْ ٱلنَّجۡوَى ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ هَلۡ هَٰذَآ إِلَّا بَشَرٞ مِّثۡلُكُمۡۖ أَفَتَأۡتُونَ ٱلسِّحۡرَ وَأَنتُمۡ تُبۡصِرُونَ
उनके दिल पूरी तरह ग़ाफ़िल होते हैं। और उन लोगों ने चुपके-चुपके कानाफूसी की जिन्होंने अत्याचार किया था, कि यह (नबी) तो तुम्हारे ही जैसा एक इनसान है, तो क्या तुम जादू के पास आते हो, हालाँकि तुम देख रहे हो?[3]
3. अर्थात यह कि वह तुम्हारे जैसा मनुष्य है। अतः इसका जो भी प्रभाव है, वह जादू के कारण है।

4 - Al-Anbya (The Prophets) - 004

قَالَ رَبِّي يَعۡلَمُ ٱلۡقَوۡلَ فِي ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِۖ وَهُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ
उस (रसूल) ने कहा : मेरा पालनहार आकाश और धरती की हर बात को जानता है और वही सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।

5 - Al-Anbya (The Prophets) - 005

بَلۡ قَالُوٓاْ أَضۡغَٰثُ أَحۡلَٰمِۭ بَلِ ٱفۡتَرَىٰهُ بَلۡ هُوَ شَاعِرٞ فَلۡيَأۡتِنَا بِـَٔايَةٖ كَمَآ أُرۡسِلَ ٱلۡأَوَّلُونَ
बल्कि उन्होंने (क़ुरआन के बारे में) कहा : यह[4] सपनों की उलझी हुई बातें हैं, बल्कि उसने इसे स्वयं गढ़ लिया है, बल्कि वह कवि है! अतः उसे चाहिए कि हमारे पास कोई निशानी लाए, जैसे पहले के रसूल (निशानियों के साथ) भेजे गए थे।
4. अर्थात क़ुरआन की आयतें।

6 - Al-Anbya (The Prophets) - 006

مَآ ءَامَنَتۡ قَبۡلَهُم مِّن قَرۡيَةٍ أَهۡلَكۡنَٰهَآۖ أَفَهُمۡ يُؤۡمِنُونَ
इनसे पहले कोई बस्ती, जिसे हमने विनष्ट किया, ईमान[5] नहीं लाई। तो क्या ये ईमान ले आएँगे?
5. अर्थात निशानियाँ देख कर भी ईमान नहीं लाई।

7 - Al-Anbya (The Prophets) - 007

وَمَآ أَرۡسَلۡنَا قَبۡلَكَ إِلَّا رِجَالٗا نُّوحِيٓ إِلَيۡهِمۡۖ فَسۡـَٔلُوٓاْ أَهۡلَ ٱلذِّكۡرِ إِن كُنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ
और (ऐ नबी!) हमने आपसे पहले पुरुषों ही को रसूल बनाकर भेजे, जिनकी ओर हम वह़्य (प्रकाशना) करते थे। अतः तुम ज़िक्र (किताब) वालों[6] से पूछ लो, यदि तुम (स्वयं) नहीं जानते हो।
6. अर्थात पिछली आकाशीय पुस्तकों के ज्ञानियों से।

8 - Al-Anbya (The Prophets) - 008

وَمَا جَعَلۡنَٰهُمۡ جَسَدٗا لَّا يَأۡكُلُونَ ٱلطَّعَامَ وَمَا كَانُواْ خَٰلِدِينَ
तथा हमने उन्हें ऐसे शरीर (वाले) नहीं बनाए थे, जो खाना न खाते हों और न वे हमेशा रहने वाले थे।[7]
7. अर्थात उनमें मनुष्य ही की सब विशेषताएँ थीं।

9 - Al-Anbya (The Prophets) - 009

ثُمَّ صَدَقۡنَٰهُمُ ٱلۡوَعۡدَ فَأَنجَيۡنَٰهُمۡ وَمَن نَّشَآءُ وَأَهۡلَكۡنَا ٱلۡمُسۡرِفِينَ
फिर हमने उनसे किए हुए वादे को सच कर दिखाया। तो हमने उन्हें बचा लिया और उसे भी जिसे हम चाहते थे। और हमने हद से बढ़ने वालों को नष्ट कर दिया।

10 - Al-Anbya (The Prophets) - 010

لَقَدۡ أَنزَلۡنَآ إِلَيۡكُمۡ كِتَٰبٗا فِيهِ ذِكۡرُكُمۡۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ
निःसंदेह हमने तुम्हारी ओर एक किताब (क़ुरआन) उतारी है, जिसमें तुम्हारा सम्मान है। तो क्या तुम नहीं समझते?

11 - Al-Anbya (The Prophets) - 011

وَكَمۡ قَصَمۡنَا مِن قَرۡيَةٖ كَانَتۡ ظَالِمَةٗ وَأَنشَأۡنَا بَعۡدَهَا قَوۡمًا ءَاخَرِينَ
और हमने बहुत-सी बस्तियों को तोड़कर रख दिया, जो अत्याचारी थीं और हमने उनके बाद दूसरी जाति को पैदा कर दिया।

12 - Al-Anbya (The Prophets) - 012

فَلَمَّآ أَحَسُّواْ بَأۡسَنَآ إِذَا هُم مِّنۡهَا يَرۡكُضُونَ
फिर जब उन्होंने हमारे अज़ाब को देख लिया, तो वे तुरंत वहाँ से भागने लगे।

13 - Al-Anbya (The Prophets) - 013

لَا تَرۡكُضُواْ وَٱرۡجِعُوٓاْ إِلَىٰ مَآ أُتۡرِفۡتُمۡ فِيهِ وَمَسَٰكِنِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تُسۡـَٔلُونَ
(तो उनसे उपहास के तौर पर कहा जाएगा 🙂 भागो नहीं, और वापस चलो उन (जगहों) की ओर जिनमें तुम्हें खुशहाली दी गई थी और अपने घरों की ओर, ताकि तुमसे पूछा जाए।[8]
8. अर्थात यह कि यातना आने पर तुम्हारी क्या दशा हुई?

14 - Al-Anbya (The Prophets) - 014

قَالُواْ يَٰوَيۡلَنَآ إِنَّا كُنَّا ظَٰلِمِينَ
उन्होंने कहा : हाय हमारा विनाश! निश्चय हम अत्याचारी थे।

15 - Al-Anbya (The Prophets) - 015

فَمَا زَالَت تِّلۡكَ دَعۡوَىٰهُمۡ حَتَّىٰ جَعَلۡنَٰهُمۡ حَصِيدًا خَٰمِدِينَ
तो उनकी पुकार हमेशा यही रही, यहाँ तक कि हमने उन्हें कटे हुए, बुझे हुए बना दिया।

16 - Al-Anbya (The Prophets) - 016

وَمَا خَلَقۡنَا ٱلسَّمَآءَ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَيۡنَهُمَا لَٰعِبِينَ
तथा हमने आकाश और धरती को और जो कुछ उन दोनों के बीच है, खेलते हुए नहीं बनाया।

17 - Al-Anbya (The Prophets) - 017

لَوۡ أَرَدۡنَآ أَن نَّتَّخِذَ لَهۡوٗا لَّٱتَّخَذۡنَٰهُ مِن لَّدُنَّآ إِن كُنَّا فَٰعِلِينَ
यदि हम कोई खेल बनाना चाहते, तो निश्चय उसे अपने पास से बना[9] लेते। (परंतु) हम ऐसा करने वाले नहीं हैं।
9. अर्थात इस विशाल संसार को बनाने की आवश्यक्ता न थी। इस आयत में यह बताया जा रहा है कि इस संसार को खेल नहीं बनाया गया है। यहाँ एक साधारण नियम काम कर रहा है। और वह सत्य और असत्य के बीच संघर्ष का नियम है। अर्थात यहाँ जो कुछ होता है वह सत्य की विजय और असत्य की पराजय के लिए होता है। और सत्य के आगे असत्य समाप्त हो कर रह जाता है।

18 - Al-Anbya (The Prophets) - 018

بَلۡ نَقۡذِفُ بِٱلۡحَقِّ عَلَى ٱلۡبَٰطِلِ فَيَدۡمَغُهُۥ فَإِذَا هُوَ زَاهِقٞۚ وَلَكُمُ ٱلۡوَيۡلُ مِمَّا تَصِفُونَ
बल्कि हम सत्य को असत्य पर फेंक मारते हैं, तो वह उसका सिर कुचल देता है, तो एकाएक वह मिटने वाला होता है। और तुम्हारे लिए उसके कारण विनाश है, जो तुम बयान करते हो।

19 - Al-Anbya (The Prophets) - 019

وَلَهُۥ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَمَنۡ عِندَهُۥ لَا يَسۡتَكۡبِرُونَ عَنۡ عِبَادَتِهِۦ وَلَا يَسۡتَحۡسِرُونَ
और उसी का है, जो कोई आकाशों तथा धरती में है। और जो (फ़रिश्ते) उसके पास हैं, वे न उसकी इबादत से अभिमान करते हैं और न ज़रा भर थकते हैं।

20 - Al-Anbya (The Prophets) - 020

يُسَبِّحُونَ ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَ لَا يَفۡتُرُونَ
वे रात-दिन (अल्लाह की) पवित्रता का गान करते हैं, दम नहीं लेते।

21 - Al-Anbya (The Prophets) - 021

أَمِ ٱتَّخَذُوٓاْ ءَالِهَةٗ مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ هُمۡ يُنشِرُونَ
क्या उन्होंने धरती से ऐसे पूज्य बना लिए हैं, जो मरे हुए लोगों को ज़िंदा कर सकते हैं?

22 - Al-Anbya (The Prophets) - 022

لَوۡ كَانَ فِيهِمَآ ءَالِهَةٌ إِلَّا ٱللَّهُ لَفَسَدَتَاۚ فَسُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ رَبِّ ٱلۡعَرۡشِ عَمَّا يَصِفُونَ
अगर उन दोनों में अल्लाह के सिवा कोई और पूज्य होते, तो वे दोनों अवश्य बिगड़[10] जाते। अतः पवित्र है अल्लाह जो अर्श (सिंहासन) का मालिक है, उन चीज़ों से जो वे बयान करते हैं।
10. क्योंकि दोनों अपनी-अपनी शक्ति का प्रयोग करते और उनके आपस के संघर्ष के कारण इस संसार की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाती। अतः इस संसार की व्यवस्था स्वयं बता रही है कि इसका स्वामी एक ही है। और वही अकेला पूज्य है।

23 - Al-Anbya (The Prophets) - 023

لَا يُسۡـَٔلُ عَمَّا يَفۡعَلُ وَهُمۡ يُسۡـَٔلُونَ
वह जो कुछ करता है, उससे (उसके बारे में) नहीं पूछा जाता, और उनसे पूछा जाता है।

24 - Al-Anbya (The Prophets) - 024

أَمِ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦٓ ءَالِهَةٗۖ قُلۡ هَاتُواْ بُرۡهَٰنَكُمۡۖ هَٰذَا ذِكۡرُ مَن مَّعِيَ وَذِكۡرُ مَن قَبۡلِيۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ٱلۡحَقَّۖ فَهُم مُّعۡرِضُونَ
क्या उन्होंने उसके सिवा और भी पूज्य बना लिए हैं? (ऐ नबी!) आप कह दें कि अपना प्रमाण लाओ। यह मेरे साथ वालों की किताब (क़ुरआन) है, और ये मुझसे पहले के लोगों पर उतरने वाली किताबें[11] हैं, (इनमें तुम्हारे लिए कोई प्रमाण नहीं है)। बल्कि उनमें से अधिकतर लोग सत्य का ज्ञान नहीं रखते। इसी कारण, वे मुँह फेरने वाले हैं।
11. आयत का भावार्थ यह है कि यह क़ुरआन है और ये तौरात तथा इंजील हैं। इनमें कोई प्रमाण दिखा दो कि अल्लाह के अन्य साझी और पूज्य हैं। बल्कि ये मिश्रणवादी निर्मूल बातें कर रहे हैं।

25 - Al-Anbya (The Prophets) - 025

وَمَآ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ مِن رَّسُولٍ إِلَّا نُوحِيٓ إِلَيۡهِ أَنَّهُۥ لَآ إِلَٰهَ إِلَّآ أَنَا۠ فَٱعۡبُدُونِ
और हमने आपसे पहले जो भी रसूल भेजा, उसकी ओर यही वह़्य (प्रकाशना) करते थे कि मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं है। अतः मेरी ही इबादत करो।

26 - Al-Anbya (The Prophets) - 026

وَقَالُواْ ٱتَّخَذَ ٱلرَّحۡمَٰنُ وَلَدٗاۗ سُبۡحَٰنَهُۥۚ بَلۡ عِبَادٞ مُّكۡرَمُونَ
और उन (मुश्रिकों) ने कहा कि 'रहमान' (अत्यंत दयावान्) ने कोई संतान बना रखी है। वह (इससे) पवित्र है। बल्कि वे (फ़रिश्ते)[12] सम्मानित बंदे हैं।
12. अर्थात अरब के मिश्रणवादी जिन फ़रिश्तों को अल्लाह की पुत्रियाँ कहते हैं, वास्तव में वे उसके बंदे तथा दास हैं।

27 - Al-Anbya (The Prophets) - 027

لَا يَسۡبِقُونَهُۥ بِٱلۡقَوۡلِ وَهُم بِأَمۡرِهِۦ يَعۡمَلُونَ
वे बात करने में उससे पहल नहीं करते और वे उसके आदेशानुसार ही काम करते हैं।

28 - Al-Anbya (The Prophets) - 028

يَعۡلَمُ مَا بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ وَلَا يَشۡفَعُونَ إِلَّا لِمَنِ ٱرۡتَضَىٰ وَهُم مِّنۡ خَشۡيَتِهِۦ مُشۡفِقُونَ
वह जानता है, जो उनके सामने है और जो उनके पीछे है। और वे सिफ़ारिश नहीं करते, परंतु उसी के लिए जिसे वह पसंद[13] करे। तथा वे उसी के भय से डरने वाले हैं।
13. अर्थात जो एकेश्वरवादी होंगे।

29 - Al-Anbya (The Prophets) - 029

۞وَمَن يَقُلۡ مِنۡهُمۡ إِنِّيٓ إِلَٰهٞ مِّن دُونِهِۦ فَذَٰلِكَ نَجۡزِيهِ جَهَنَّمَۚ كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلظَّـٰلِمِينَ
और उनमें से जो यह कहे कि मैं अल्लाह के सिवा पूज्य हूँ, तो यही है जिसे हम जहन्नम की सज़ा देंगे। ऐसे ही हम ज़ालिमों को सज़ा देते हैं।

30 - Al-Anbya (The Prophets) - 030

أَوَلَمۡ يَرَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَنَّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ كَانَتَا رَتۡقٗا فَفَتَقۡنَٰهُمَاۖ وَجَعَلۡنَا مِنَ ٱلۡمَآءِ كُلَّ شَيۡءٍ حَيٍّۚ أَفَلَا يُؤۡمِنُونَ
क्या जिन लोगों ने कुफ़्र किया यह नहीं देखा कि आकाश और धरती दोनों मिले हुए[14] थे, फिर हमने दोनों को अलग-अलग कर दिया, तथा हमने पानी से हर जीवित चीज़ को बनाया? तो क्या ये लोग ईमान नहीं लाते?
14. अर्थात अपनी उत्पत्ति के आरंभ में।

31 - Al-Anbya (The Prophets) - 031

وَجَعَلۡنَا فِي ٱلۡأَرۡضِ رَوَٰسِيَ أَن تَمِيدَ بِهِمۡ وَجَعَلۡنَا فِيهَا فِجَاجٗا سُبُلٗا لَّعَلَّهُمۡ يَهۡتَدُونَ
और हमने धरती में पर्वत बना दिए, ताकि वह उनके साथ हिलने-डुलने[15] न लगे और उसमें चौड़े रास्ते बना दिए, ताकि वे मार्ग पाएँ।
15. अर्थात ये पर्वत न होते तो धरती सदा हिलती रहती।

32 - Al-Anbya (The Prophets) - 032

وَجَعَلۡنَا ٱلسَّمَآءَ سَقۡفٗا مَّحۡفُوظٗاۖ وَهُمۡ عَنۡ ءَايَٰتِهَا مُعۡرِضُونَ
और हमने आकाश को एक संरक्षित छत बनाया। और वे उसकी निशानियों से मुँह फेरने वाले हैं।

33 - Al-Anbya (The Prophets) - 033

وَهُوَ ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَ وَٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ فِي فَلَكٖ يَسۡبَحُونَ
और वही है, जिसने रात और दिन, तथा सूरज और चाँद बनाए। सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं।[16]
16. क़ुरआन अपनी शिक्षा में संसार की व्यवस्था से एक ही पूज्य होने का प्रमाण प्रस्तुत करता है। यहाँ भी आयत : 30 से 33 तक एक अल्लाह के पूज्य होने का प्रमाण प्रस्तुत किया गया है।

34 - Al-Anbya (The Prophets) - 034

وَمَا جَعَلۡنَا لِبَشَرٖ مِّن قَبۡلِكَ ٱلۡخُلۡدَۖ أَفَإِيْن مِّتَّ فَهُمُ ٱلۡخَٰلِدُونَ
और (ऐ नबी!) हमने आपसे पहले किसी मनुष्य के लिए अमरता नहीं रखी। फिर क्या अगर आप मर[17] गए, तो ये सदैव रहने वाले हैं?
17. जब मनुष्य किसी का विरोधी बन जाता है, तो उसके मरण की कामना करता है। यही दशा मक्का के काफ़िरों की भी थी। वे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मरण की कामना कर रहे थे। फिर यह कहा गया है कि संसार के प्रत्येक जीव को मरना है। यह कोई बड़ी बात नहीं, बड़ी बात तो यह है कि अल्लाह इस संसार में सबके कर्मों की परीक्षा कर रहा है और फिर सबको अपने कर्मों का फल भी परलोक में मिलना है, तो कौन इस परीक्षा में सफल होता है?

35 - Al-Anbya (The Prophets) - 035

كُلُّ نَفۡسٖ ذَآئِقَةُ ٱلۡمَوۡتِۗ وَنَبۡلُوكُم بِٱلشَّرِّ وَٱلۡخَيۡرِ فِتۡنَةٗۖ وَإِلَيۡنَا تُرۡجَعُونَ
हर जीव को मौत का स्वाद चखना है। और हम अच्छी तथा बुरी परिस्थितियों से तुम्हारी परीक्षा करते हैं तथा तुम हमारी ही ओर लौटाए जाओगे।

36 - Al-Anbya (The Prophets) - 036

وَإِذَا رَءَاكَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِن يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَٰذَا ٱلَّذِي يَذۡكُرُ ءَالِهَتَكُمۡ وَهُم بِذِكۡرِ ٱلرَّحۡمَٰنِ هُمۡ كَٰفِرُونَ
तथा जब काफ़िर आपको देखते हैं, तो आपको उपहास बना लेते हैं। (वे कहते हैं 🙂 क्या यही है, जो तुम्हारे पूज्यों की चर्चा करता है? जबकि वे स्वयं 'रहमान' (अत्यंत दयावान्) के ज़िक्र[18] का इनकार करने वाले हैं।
18. अर्थात अल्लाह को नहीं मानते।

37 - Al-Anbya (The Prophets) - 037

خُلِقَ ٱلۡإِنسَٰنُ مِنۡ عَجَلٖۚ سَأُوْرِيكُمۡ ءَايَٰتِي فَلَا تَسۡتَعۡجِلُونِ
इनसान जन्मजात जल्दबाज़ है। मैं शीघ्र तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाऊँगा। अतः तुम मुझसे जल्दी की माँग न करो।

38 - Al-Anbya (The Prophets) - 038

وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا ٱلۡوَعۡدُ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ
तथा वे कहते हैं : यह वादा[19] कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?
19. अर्थात हमारे न मानने पर यातना आने की धमकी।

39 - Al-Anbya (The Prophets) - 039

لَوۡ يَعۡلَمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ حِينَ لَا يَكُفُّونَ عَن وُجُوهِهِمُ ٱلنَّارَ وَلَا عَن ظُهُورِهِمۡ وَلَا هُمۡ يُنصَرُونَ
यदि ये काफ़िर लोग उस समय को जान लें, जब वे न अपने चेहरों से आग को रोक सकेंगे और न अपनी पीठों से और न उनकी सहायता की जाएगी। (तो यातना के लिए जल्दी न मचाएँ)।

40 - Al-Anbya (The Prophets) - 040

بَلۡ تَأۡتِيهِم بَغۡتَةٗ فَتَبۡهَتُهُمۡ فَلَا يَسۡتَطِيعُونَ رَدَّهَا وَلَا هُمۡ يُنظَرُونَ
बल्कि वह उनपर अचानक आएगी, तो उन्हें आश्चर्यचकित कर देगी। फिर वे न उसे फेर सकेंगे और न उन्हें मोहलत दी जाएगी।

41 - Al-Anbya (The Prophets) - 041

وَلَقَدِ ٱسۡتُهۡزِئَ بِرُسُلٖ مِّن قَبۡلِكَ فَحَاقَ بِٱلَّذِينَ سَخِرُواْ مِنۡهُم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ
निःसंदेह आपसे पहले कई रसूलों का मज़ाक़ उड़ाया गया, तो उनमें से जिन लोगों ने मज़ाक उड़ाया, उन्हें उसी चीज़[20] ने घेर लिया, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाते थे।
20. अर्थात यातना ने।

42 - Al-Anbya (The Prophets) - 042

قُلۡ مَن يَكۡلَؤُكُم بِٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ مِنَ ٱلرَّحۡمَٰنِۚ بَلۡ هُمۡ عَن ذِكۡرِ رَبِّهِم مُّعۡرِضُونَ
आप पूछिए कि कौन है जो रात और दिन में 'रहमान' से[21] तुम्हारी रक्षा करता है? बल्कि वे अपने पालनहार की याद से मुँह फेरने वाले हैं।
21. अर्थात उसकी यातना से।

43 - Al-Anbya (The Prophets) - 043

أَمۡ لَهُمۡ ءَالِهَةٞ تَمۡنَعُهُم مِّن دُونِنَاۚ لَا يَسۡتَطِيعُونَ نَصۡرَ أَنفُسِهِمۡ وَلَا هُم مِّنَّا يُصۡحَبُونَ
क्या उनके कुछ पूज्य हैं, जो उन्हें हमारी यातना से बचाते हैं? वे न तो खुद अपनी सहायता कर सकते हैं और न हमारी यातना से उन्हें बचाया जाता है।

44 - Al-Anbya (The Prophets) - 044

بَلۡ مَتَّعۡنَا هَـٰٓؤُلَآءِ وَءَابَآءَهُمۡ حَتَّىٰ طَالَ عَلَيۡهِمُ ٱلۡعُمُرُۗ أَفَلَا يَرَوۡنَ أَنَّا نَأۡتِي ٱلۡأَرۡضَ نَنقُصُهَا مِنۡ أَطۡرَافِهَآۚ أَفَهُمُ ٱلۡغَٰلِبُونَ
बल्कि हमने इन (काफ़िरों) को और इनके बाप-दादों को जीवन की सुख-सुविधाएँ प्रदान कीं, यहाँ तक कि उनपर लंबा समय बीत गया। तो क्या वे देखते नहीं कि हम धरती को उसके किनारों से कम करते आ रहे हैं? तो क्या वही प्रभावी रहने वाले हैं?[22]
22.अर्थ यह है कि वे मक्का के काफ़िर सुख-सुविधा मंद रहने के कारण अल्लाह से विमुख हो गए हैं, और सोचते हैं कि उनपर यातना नहीं आएगी और वही विजयी होंगे। जबकि दशा यह है कि उनके अधिकार का क्षेत्र कम होता जा रहा है और इस्लाम बराबर फैलता जा रहा है। फिर भी वे इस भ्रम में हैं कि वे प्रभुत्व प्राप्त कर लेंगे।

45 - Al-Anbya (The Prophets) - 045

قُلۡ إِنَّمَآ أُنذِرُكُم بِٱلۡوَحۡيِۚ وَلَا يَسۡمَعُ ٱلصُّمُّ ٱلدُّعَآءَ إِذَا مَا يُنذَرُونَ
(ऐ नबी!) आप कह दें कि मैं तो तुम्हें केवल वह़्य के साथ डराता हूँ। और बहरे पुकार को नहीं सुनते, जब कभी डराए जाते हैं।

46 - Al-Anbya (The Prophets) - 046

وَلَئِن مَّسَّتۡهُمۡ نَفۡحَةٞ مِّنۡ عَذَابِ رَبِّكَ لَيَقُولُنَّ يَٰوَيۡلَنَآ إِنَّا كُنَّا ظَٰلِمِينَ
और निश्चय यदि उन्हें आपके पालनहार की तनिक यातना भी छू जाए, तो अवश्य पुकार उठेंगे : हाय हमारा विनाश! निश्चय हम ही अत्याचारी[23] थे।
23. अर्थात अपने पापों को स्वीकार कर लेंगे।

47 - Al-Anbya (The Prophets) - 047

وَنَضَعُ ٱلۡمَوَٰزِينَ ٱلۡقِسۡطَ لِيَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ فَلَا تُظۡلَمُ نَفۡسٞ شَيۡـٔٗاۖ وَإِن كَانَ مِثۡقَالَ حَبَّةٖ مِّنۡ خَرۡدَلٍ أَتَيۡنَا بِهَاۗ وَكَفَىٰ بِنَا حَٰسِبِينَ
और हम क़ियामत के दिन न्याय के तराज़ू[24] रखेंगे। फिर किसी पर कुछ भी ज़ुल्म नहीं किया जाएगा। और अगर राई के एक दाने के बराबर (भी किसी का) कर्म होगा, तो हम उसे ले आएँगे। और हम हिसाब लेने वाले काफ़ी हैं।
24. अर्थात कर्मों को तौलने और ह़िसाब करने के लिए, ताकि प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मानुसार बदला दिया जाए।

48 - Al-Anbya (The Prophets) - 048

وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ ٱلۡفُرۡقَانَ وَضِيَآءٗ وَذِكۡرٗا لِّلۡمُتَّقِينَ
और निःसंदेह हमने मूसा तथा हारून को सत्य एवं असत्य के बीच अंतर करने वाली चीज़, तथा प्रकाश और तक़्वा वालों के लिए उपदेश प्रदान किया।

49 - Al-Anbya (The Prophets) - 049

ٱلَّذِينَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُم بِٱلۡغَيۡبِ وَهُم مِّنَ ٱلسَّاعَةِ مُشۡفِقُونَ
जो अपने पालनहार से बिन देखे डरते हैं और वे क़ियामत से भयभीत रहने वाले हैं।

50 - Al-Anbya (The Prophets) - 050

وَهَٰذَا ذِكۡرٞ مُّبَارَكٌ أَنزَلۡنَٰهُۚ أَفَأَنتُمۡ لَهُۥ مُنكِرُونَ
और यह (क़ुरआन) एक बरकत वाला उपदेश है, जिसे हमने उतारा है। तो क्या तुम इसके इनकारी हो?

51 - Al-Anbya (The Prophets) - 051

۞وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَآ إِبۡرَٰهِيمَ رُشۡدَهُۥ مِن قَبۡلُ وَكُنَّا بِهِۦ عَٰلِمِينَ
और निःसंदेह हमने इससे पहले इबराहीम को उसकी समझ-बूझ प्रदान की थी और हम उससे भली-भाँति अवगत थे।

52 - Al-Anbya (The Prophets) - 052

إِذۡ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوۡمِهِۦ مَا هَٰذِهِ ٱلتَّمَاثِيلُ ٱلَّتِيٓ أَنتُمۡ لَهَا عَٰكِفُونَ
जब उसने अपने बाप तथा अपनी जाति से कहा : ये प्रतिमाएँ (मूर्तियाँ) क्या हैं, जिनकी पूजा में तुम लगे हुए हो?

53 - Al-Anbya (The Prophets) - 053

قَالُواْ وَجَدۡنَآ ءَابَآءَنَا لَهَا عَٰبِدِينَ
उन्होंने कहा : हमने अपने बाप-दादा को इन्हीं की पूजा करने वाला पाया है।

54 - Al-Anbya (The Prophets) - 054

قَالَ لَقَدۡ كُنتُمۡ أَنتُمۡ وَءَابَآؤُكُمۡ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ
उस (इबराहीम) ने कहा : निश्चय तुम और तुम्हारे बाप-दादा खुली गुमराही में रहे हो।

55 - Al-Anbya (The Prophets) - 055

قَالُوٓاْ أَجِئۡتَنَا بِٱلۡحَقِّ أَمۡ أَنتَ مِنَ ٱللَّـٰعِبِينَ
उन्होंने कहा : क्या तुम हमारे पास सत्य लाए हो या (हमसे) दिल-लगी कर रहे हो?

56 - Al-Anbya (The Prophets) - 056

قَالَ بَل رَّبُّكُمۡ رَبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ ٱلَّذِي فَطَرَهُنَّ وَأَنَا۠ عَلَىٰ ذَٰلِكُم مِّنَ ٱلشَّـٰهِدِينَ
उसने कहा : बल्कि तुम्हारा पालनहार आकाशों तथा धरती का पालनहार है, जिसने उन्हें पैदा किया है और मैं इसकी गवाही देने वालों में से हूँ।

57 - Al-Anbya (The Prophets) - 057

وَتَٱللَّهِ لَأَكِيدَنَّ أَصۡنَٰمَكُم بَعۡدَ أَن تُوَلُّواْ مُدۡبِرِينَ
और अल्लाह की क़सम! मैं अवश्य ही तुम्हारी मूर्तियों का गुप्त उपाय करूँगा, इसके बाद कि तुम पीठ फेरकर चले जाओगे।

58 - Al-Anbya (The Prophets) - 058

فَجَعَلَهُمۡ جُذَٰذًا إِلَّا كَبِيرٗا لَّهُمۡ لَعَلَّهُمۡ إِلَيۡهِ يَرۡجِعُونَ
फिर उसने उन्हें टुकड़े-टुकड़े कर दिया, सिवाय उनके एक बड़े के, ताकि वे उसकी ओर लौटें।

59 - Al-Anbya (The Prophets) - 059

قَالُواْ مَن فَعَلَ هَٰذَا بِـَٔالِهَتِنَآ إِنَّهُۥ لَمِنَ ٱلظَّـٰلِمِينَ
उन्होंने कहा : हमारे पूज्यों के साथ यह किसने किया है? निःसंदेह वह निश्चय अत्याचारियों में से है!

60 - Al-Anbya (The Prophets) - 060

قَالُواْ سَمِعۡنَا فَتٗى يَذۡكُرُهُمۡ يُقَالُ لَهُۥٓ إِبۡرَٰهِيمُ
लोगों ने कहा : हमने एक नवयुवक को उनकी चर्चा करते हुए सुना है, जिसे इबराहीम कहा जाता है।

61 - Al-Anbya (The Prophets) - 061

قَالُواْ فَأۡتُواْ بِهِۦ عَلَىٰٓ أَعۡيُنِ ٱلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ يَشۡهَدُونَ
उन्होंने कहा : उसे लोगों की आँखों के सामने लाओ, ताकि वे गवाह हो जाएँ।

62 - Al-Anbya (The Prophets) - 062

قَالُوٓاْ ءَأَنتَ فَعَلۡتَ هَٰذَا بِـَٔالِهَتِنَا يَـٰٓإِبۡرَٰهِيمُ
उन्होंने पूछा : ऐ इबराहीम! क्या तूने ही हमारे पूज्यों के साथ यह किया है?

63 - Al-Anbya (The Prophets) - 063

قَالَ بَلۡ فَعَلَهُۥ كَبِيرُهُمۡ هَٰذَا فَسۡـَٔلُوهُمۡ إِن كَانُواْ يَنطِقُونَ
उसने कहा : बल्कि यह उनके इस बड़े ने किया है। अतः उन्हीं से पूछ लो, यदि वे बोलते हैं?[25]
25. यह बात इबराहीम अलैहिस्सलाम ने उन्हें उनके पूज्यों की विवशता दिखाने के लिए कही।

64 - Al-Anbya (The Prophets) - 064

فَرَجَعُوٓاْ إِلَىٰٓ أَنفُسِهِمۡ فَقَالُوٓاْ إِنَّكُمۡ أَنتُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ
फिर उन्होंने अपने मन में विचार किया और कहने लगे : निश्चय तुम खुद ही अत्याचारी हो।

65 - Al-Anbya (The Prophets) - 065

ثُمَّ نُكِسُواْ عَلَىٰ رُءُوسِهِمۡ لَقَدۡ عَلِمۡتَ مَا هَـٰٓؤُلَآءِ يَنطِقُونَ
फिर वे अपने सिरों के बल औंधे कर दिए गए[26], (और बोले 🙂 निःसंदेह तू जानता है कि ये बोलते नहीं।
26. अर्थात सत्य को स्वीकार करके उससे फिर गए और अपनी ज़िद पर लौट आए।

66 - Al-Anbya (The Prophets) - 066

قَالَ أَفَتَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَنفَعُكُمۡ شَيۡـٔٗا وَلَا يَضُرُّكُمۡ
(इबराहीम ने) कहा : फिर क्या तुम अल्लाह को छोड़ उस चीज़ की इबादत करते हो, जो न तुम्हें कुछ लाभ पहुँचाती है और न तुम्हें हानि पहुँचाती है?

67 - Al-Anbya (The Prophets) - 067

أُفّٖ لَّكُمۡ وَلِمَا تَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ
तुफ़ है तुमपर और उनपर जिनकी तुम अल्लाह को छोड़कर इबादत करते हो। तो क्या तुम समझते नहीं?

68 - Al-Anbya (The Prophets) - 068

قَالُواْ حَرِّقُوهُ وَٱنصُرُوٓاْ ءَالِهَتَكُمۡ إِن كُنتُمۡ فَٰعِلِينَ
उन्होंने कहा : इसे जला दो तथा अपने पूज्यों की सहायता करो, अगर तुम कुछ करने वाले हो।

69 - Al-Anbya (The Prophets) - 069

قُلۡنَا يَٰنَارُ كُونِي بَرۡدٗا وَسَلَٰمًا عَلَىٰٓ إِبۡرَٰهِيمَ
हमने कहा : ऐ आग! तू इबराहीम पर ठंडक और सुरक्षा सुरक्षा बन जा।

70 - Al-Anbya (The Prophets) - 070

وَأَرَادُواْ بِهِۦ كَيۡدٗا فَجَعَلۡنَٰهُمُ ٱلۡأَخۡسَرِينَ
और उन्होंने उसके साथ एक चाल का इरादा किया, तो हमने उन्हीं को अत्यंत घाटे वाला कर दिया।

71 - Al-Anbya (The Prophets) - 071

وَنَجَّيۡنَٰهُ وَلُوطًا إِلَى ٱلۡأَرۡضِ ٱلَّتِي بَٰرَكۡنَا فِيهَا لِلۡعَٰلَمِينَ
और हम उसे (इबराहीम को) और लूत[27] को बचाकर उस भूमि[28] की ओर ले गए, जिसमें हमने संसार वालों के लिए बरकत रखी।
27. लूत अलैहिस्सलाम इबराहीम अलैहिस्सलाम के भतीजे थे। 28. इससे अभिप्राय शाम देश है। और अर्थ यह है कि अल्लाह ने इबराहीम अलैहिस्सलाम की अग्नि से रक्षा करने के पश्चात् उन्हें शाम देश की ओर प्रस्तथान कर जाने का आदेश दिया। और वह शाम चले गए।

72 - Al-Anbya (The Prophets) - 072

وَوَهَبۡنَا لَهُۥٓ إِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ نَافِلَةٗۖ وَكُلّٗا جَعَلۡنَا صَٰلِحِينَ
और हमने उन्हें इसहाक़ प्रदान किया और उसके अतिरिक्त याक़ूब भी। और हमने हर एक को नेक बनाया।

73 - Al-Anbya (The Prophets) - 073

وَجَعَلۡنَٰهُمۡ أَئِمَّةٗ يَهۡدُونَ بِأَمۡرِنَا وَأَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡهِمۡ فِعۡلَ ٱلۡخَيۡرَٰتِ وَإِقَامَ ٱلصَّلَوٰةِ وَإِيتَآءَ ٱلزَّكَوٰةِۖ وَكَانُواْ لَنَا عَٰبِدِينَ
और हमने उन्हें ऐसे अग्रणी (पेशवा) बनाया, जो हमारे आदेशानुसार (लोगों को) सही राह दिखाते थे। और हमने उनकी ओर नेक कार्य करने, नमाज़ क़ायम करने और ज़कात देने की वह़्य (प्रकाशना) की। और वे केवल हमारी इबादत करने वाले थे।

74 - Al-Anbya (The Prophets) - 074

وَلُوطًا ءَاتَيۡنَٰهُ حُكۡمٗا وَعِلۡمٗا وَنَجَّيۡنَٰهُ مِنَ ٱلۡقَرۡيَةِ ٱلَّتِي كَانَت تَّعۡمَلُ ٱلۡخَبَـٰٓئِثَۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَوۡمَ سَوۡءٖ فَٰسِقِينَ
और लूत को हमने निर्णय शक्ति और ज्ञान दिया और उसे उस बस्ती से बचा लिया, जो गंदे काम किया करती थी। निश्चय वे बुरे, अवज्ञा करने वाले लोग थे।

75 - Al-Anbya (The Prophets) - 075

وَأَدۡخَلۡنَٰهُ فِي رَحۡمَتِنَآۖ إِنَّهُۥ مِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ
और हमने उन्हें अपनी दया में दाख़िल कर लिया। निःसंदेह वह सदाचारियों में से थे।

76 - Al-Anbya (The Prophets) - 076

وَنُوحًا إِذۡ نَادَىٰ مِن قَبۡلُ فَٱسۡتَجَبۡنَا لَهُۥ فَنَجَّيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥ مِنَ ٱلۡكَرۡبِ ٱلۡعَظِيمِ
तथा नूह को (याद करो) जब उन्होंने इससे पहले (अल्लाह को) पुकारा, तो हमने उनकी दुआ क़बूल कर ली, फिर उन्हें और उनके घर वालों को बड़े कष्ट से बचा लिया।

77 - Al-Anbya (The Prophets) - 077

وَنَصَرۡنَٰهُ مِنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَآۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَوۡمَ سَوۡءٖ فَأَغۡرَقۡنَٰهُمۡ أَجۡمَعِينَ
और हमने उन लोगों के विरुद्ध उनकी मदद की, जिन्होंने हमारी निशानियों को झुठलाया। निःसंदेह वे बुरे लोग थे। अतः हमने उन सभी को डुबो दिया।

78 - Al-Anbya (The Prophets) - 078

وَدَاوُۥدَ وَسُلَيۡمَٰنَ إِذۡ يَحۡكُمَانِ فِي ٱلۡحَرۡثِ إِذۡ نَفَشَتۡ فِيهِ غَنَمُ ٱلۡقَوۡمِ وَكُنَّا لِحُكۡمِهِمۡ شَٰهِدِينَ
तथा दाऊद और सुलैमान को (याद करो), जब वे दोनों खेत के विषय में निर्णय कर रहे थे, जब रात के समय उसमें अन्य लोगों की बकरियाँ फैल गईं थीं, और हम उनके निर्णय के समय उपस्थित थे।

79 - Al-Anbya (The Prophets) - 079

فَفَهَّمۡنَٰهَا سُلَيۡمَٰنَۚ وَكُلًّا ءَاتَيۡنَا حُكۡمٗا وَعِلۡمٗاۚ وَسَخَّرۡنَا مَعَ دَاوُۥدَ ٱلۡجِبَالَ يُسَبِّحۡنَ وَٱلطَّيۡرَۚ وَكُنَّا فَٰعِلِينَ
तो हमने वह (निर्णय) सुलैमान[29] को समझा दिया। और हमने हर एक को हुक्म (नुबुव्वत या निर्णय-शक्ति) और ज्ञान प्रदान किया। और हमने पहाड़ों को दाऊद के अधीन कर दिया, जो (अल्लाह की) पवित्रता का गान करते थे, तथा पक्षियों को भी। और हम ही (इस कार्य के) करने वाले थे।
29. ह़दीस में वर्णित है कि दो नारियों के साथ शिशु थे। भेड़िया आया और एक को ले गया, तो एक ने दूसरे से कहा कि तुम्हारे शिशु को ले गया है और निर्णय के लिए दाऊद के पास गईं। उन्होंने बड़ी के लिए निर्णय कर दिया। फिर वे सुलैमान अलैहिस्सलाम के पास आयीं, उन्होंने कहा : छुरी लाओ, मैं तुम दोनों के लिए दो भाग कर दूँ। तो छोटी ने कहा : ऐसा न करें, अल्लाह आप पर दया करे, यह उसी का शिशु है। यह सुनकर उन्होंने छोटी के पक्ष में निर्णय कर दिया। ( बुख़ारी : 3427, मुस्लिम :1720)

80 - Al-Anbya (The Prophets) - 080

وَعَلَّمۡنَٰهُ صَنۡعَةَ لَبُوسٖ لَّكُمۡ لِتُحۡصِنَكُم مِّنۢ بَأۡسِكُمۡۖ فَهَلۡ أَنتُمۡ شَٰكِرُونَ
तथा हमने उन्हें (दाऊद को) तुम्हारे लिए कवच बनाना सिखाया, ताकि वह तुम्हारी लड़ाई से तुम्हारी रक्षा करे। तो क्या तुम शुक्रिया अदा करने वाले हो?

81 - Al-Anbya (The Prophets) - 081

وَلِسُلَيۡمَٰنَ ٱلرِّيحَ عَاصِفَةٗ تَجۡرِي بِأَمۡرِهِۦٓ إِلَى ٱلۡأَرۡضِ ٱلَّتِي بَٰرَكۡنَا فِيهَاۚ وَكُنَّا بِكُلِّ شَيۡءٍ عَٰلِمِينَ
और तेज़ चलने वाली हवा को सुलैमान के अधीन कर दिया, जो उसके आदेश[30] से उस धरती की ओर चलती थी, जिसमें हमने बरकत रखी और हम हर चीज़ को जानने वाले थे।
30. अर्थात वायु उनके सिंहासन को उनके राज्य में जहाँ चाहते क्षणों में पहुँचा देती थी।

82 - Al-Anbya (The Prophets) - 082

وَمِنَ ٱلشَّيَٰطِينِ مَن يَغُوصُونَ لَهُۥ وَيَعۡمَلُونَ عَمَلٗا دُونَ ذَٰلِكَۖ وَكُنَّا لَهُمۡ حَٰفِظِينَ
और कई शैतान (उनके अधीन कर दिए गए थे), जो उनके लिए ग़ोता लगाते[31] थे तथा इसके अलावा काम (भी) करते थे। और हम ही उनके निरीक्षक[32] थे।
31. अर्थात मोतियाँ तथा जवाहिरात निकालने के लिए। 32. ताकि शैतान उनको कोई हानि न पहुँचाए।

83 - Al-Anbya (The Prophets) - 083

۞وَأَيُّوبَ إِذۡ نَادَىٰ رَبَّهُۥٓ أَنِّي مَسَّنِيَ ٱلضُّرُّ وَأَنتَ أَرۡحَمُ ٱلرَّـٰحِمِينَ
तथा अय्यूब (की कहानी) को (याद करो), जब उन्होंने अपने पालनहार को पुकारा कि निःसंदेह मुझे कष्ट पहुँची है और तू दया करने वालों में सबसे अधिक दयावान् है।

84 - Al-Anbya (The Prophets) - 084

فَٱسۡتَجَبۡنَا لَهُۥ فَكَشَفۡنَا مَا بِهِۦ مِن ضُرّٖۖ وَءَاتَيۡنَٰهُ أَهۡلَهُۥ وَمِثۡلَهُم مَّعَهُمۡ رَحۡمَةٗ مِّنۡ عِندِنَا وَذِكۡرَىٰ لِلۡعَٰبِدِينَ
तो हमने उनकी दुआ क़बूल कर ली।[33] चुनाँचे उन्हें जो भी कष्ट था, उसे दूर कर दिया और हमने उन्हें उनके घर वाले तथा उनके साथ उनके समान (और) भी प्रदान किए। अपनी ओर से दया के रूप में और उन लोगों की याद-दहानी के लिए जो इबादत करने वाले हैं।
33. आदरणीय अय्यूब अलैहिस्सला

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