عبس
'Abasa
He Frowned
1 - 'Abasa (He Frowned) - 001
عَبَسَ وَتَوَلَّىٰٓ
उस (नबी) ने त्योरी चढ़ाई और मुँह फेर लिया।
2 - 'Abasa (He Frowned) - 002
أَن جَآءَهُ ٱلۡأَعۡمَىٰ
इस कारण कि उनके पास अंधा आया।
3 - 'Abasa (He Frowned) - 003
وَمَا يُدۡرِيكَ لَعَلَّهُۥ يَزَّكَّىٰٓ
और आपको क्या मालूम शायद वह पवित्रता प्राप्त कर ले।
4 - 'Abasa (He Frowned) - 004
أَوۡ يَذَّكَّرُ فَتَنفَعَهُ ٱلذِّكۡرَىٰٓ
या नसीहत ग्रहण करे, तो वह नसीहत उसे लाभ दे।
5 - 'Abasa (He Frowned) - 005
أَمَّا مَنِ ٱسۡتَغۡنَىٰ
लेकिन जो बेपरवाह हो गया।
6 - 'Abasa (He Frowned) - 006
فَأَنتَ لَهُۥ تَصَدَّىٰ
तो आप उसके पीछे पड़ रहे हैं।
7 - 'Abasa (He Frowned) - 007
وَمَا عَلَيۡكَ أَلَّا يَزَّكَّىٰ
हालाँकि आपपर कोई दोष नहीं कि वह पवित्रता ग्रहण नहीं करता।
8 - 'Abasa (He Frowned) - 008
وَأَمَّا مَن جَآءَكَ يَسۡعَىٰ
लेकिन जो व्यक्ति आपके पास दौड़ता हुआ आया।
9 - 'Abasa (He Frowned) - 009
وَهُوَ يَخۡشَىٰ
और वह डर (भी) रहा है।
10 - 'Abasa (He Frowned) - 010
فَأَنتَ عَنۡهُ تَلَهَّىٰ
तो आप उसकी ओर ध्यान नहीं देते।[1]
1. (1-10) भावार्थ यह है कि सत्य के प्रचारक का यह कर्तव्य है कि जो सत्य की खोज में हो, भले ही वह दरिद्र हो, उसी के सुधार पर ध्यान दे। और जो अभिमान के कारण सत्य की परवाह नहीं करते उनके पीछे समय न गवाँए। आपका यह दायित्व भी नहीं है कि उन्हें अपनी बात मनवा दें।
11 - 'Abasa (He Frowned) - 011
كَلَّآ إِنَّهَا تَذۡكِرَةٞ
ऐसा हरगिज़ नहीं चाहिए, यह (क़ुरआन) तो एक उपदेश है।
12 - 'Abasa (He Frowned) - 012
فَمَن شَآءَ ذَكَرَهُۥ
अतः जो चाहे, उसे याद करे।
13 - 'Abasa (He Frowned) - 013
فِي صُحُفٖ مُّكَرَّمَةٖ
(यह क़ुरआन) सम्मानित सहीफ़ों (ग्रंथों) में है।
14 - 'Abasa (He Frowned) - 014
مَّرۡفُوعَةٖ مُّطَهَّرَةِۭ
जो उच्च स्थान वाले तथा पवित्र हैं।
15 - 'Abasa (He Frowned) - 015
بِأَيۡدِي سَفَرَةٖ
ऐसे लिखने वालों (फ़रिश्तों) के हाथों में हैं।
16 - 'Abasa (He Frowned) - 016
كِرَامِۭ بَرَرَةٖ
जो माननीय और नेक हैं।[2]
2. (11-16) इनमें क़ुरआन की महानता को बताया गया है कि यह एक स्मृति (याद दहानी) है। किसी पर थोपने के लिए नहीं आया है। बल्कि वह तो फ़रिश्तों के हाथों में स्वर्ग में एक पवित्र शास्त्र के अंदर सुरक्षित है। और वहीं से वह (क़ुरआन) इस संसार में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतारा जा रहा है।
17 - 'Abasa (He Frowned) - 017
قُتِلَ ٱلۡإِنسَٰنُ مَآ أَكۡفَرَهُۥ
सर्वनाश हो मनुष्य का, वह कितना कृतघ्न (नाशुक्रा) है।
18 - 'Abasa (He Frowned) - 018
مِنۡ أَيِّ شَيۡءٍ خَلَقَهُۥ
(अल्लाह ने) उसे किस चीज़ से पैदा किया?
19 - 'Abasa (He Frowned) - 019
مِن نُّطۡفَةٍ خَلَقَهُۥ فَقَدَّرَهُۥ
एक नुत्फ़े (वीर्य) से उसे पैदा किया, फिर विभिन्न चरणों में उसकी रचना की।
20 - 'Abasa (He Frowned) - 020
ثُمَّ ٱلسَّبِيلَ يَسَّرَهُۥ
फिर उसके लिए रास्ता आसान कर दिया।
21 - 'Abasa (He Frowned) - 021
ثُمَّ أَمَاتَهُۥ فَأَقۡبَرَهُۥ
फिर उसे मृत्यु दी, फिर उसे क़ब्र में रखवाया।
22 - 'Abasa (He Frowned) - 022
ثُمَّ إِذَا شَآءَ أَنشَرَهُۥ
फिर जब वह चाहेगा, उसे उठाएगा।
23 - 'Abasa (He Frowned) - 023
كَلَّا لَمَّا يَقۡضِ مَآ أَمَرَهُۥ
हरगिज़ नहीं, अभी तक उसने उसे पूरा नहीं किया, जिसका अल्लाह ने उसे आदेश दिया था।[3]
3. (17-23) तक विश्वासहीनों पर धिक्कार है कि यदि वे अपने अस्तित्व पर विचार करें कि हमने कितनी तुच्छ वीर्य की बूँद से उसकी रचना की तथा अपनी दया से उसे चेतना और समझ दी। परंतु इन सब उपकारों को भूलकर कृतघ्न बना हुआ है, और उपासना अन्य की करता है।
24 - 'Abasa (He Frowned) - 024
فَلۡيَنظُرِ ٱلۡإِنسَٰنُ إِلَىٰ طَعَامِهِۦٓ
अतः इनसान को चाहिए कि अपने भोजन को देखे।
25 - 'Abasa (He Frowned) - 025
أَنَّا صَبَبۡنَا ٱلۡمَآءَ صَبّٗا
कि हमने ख़ूब पानी बरसाया।
26 - 'Abasa (He Frowned) - 026
ثُمَّ شَقَقۡنَا ٱلۡأَرۡضَ شَقّٗا
फिर हमने धरती को विशेष रूप से फाड़ा।
27 - 'Abasa (He Frowned) - 027
فَأَنۢبَتۡنَا فِيهَا حَبّٗا
फिर हमने उसमें अनाज उगाया।
28 - 'Abasa (He Frowned) - 028
وَعِنَبٗا وَقَضۡبٗا
तथा अंगूर और (मवेशियों का) चारा।
29 - 'Abasa (He Frowned) - 029
وَزَيۡتُونٗا وَنَخۡلٗا
तथा ज़ैतून और खजूर के पेड़।
30 - 'Abasa (He Frowned) - 030
وَحَدَآئِقَ غُلۡبٗا
तथा घने बाग़।
31 - 'Abasa (He Frowned) - 031
وَفَٰكِهَةٗ وَأَبّٗا
तथा फल और चारा।
32 - 'Abasa (He Frowned) - 032
مَّتَٰعٗا لَّكُمۡ وَلِأَنۡعَٰمِكُمۡ
तुम्हारे लिए तथा तुम्हारे पशुओं के लिए जीवन-सामग्री के रूप में।[4]
4. (24-32) इन आयतों में इनसान के जीवन साधनों को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो अल्लाह की अपार दया की परिचायक हैं। अतः जब सारी व्यवस्था वही करता है, तो फिर उसके इन उपकारों पर इनसान के लिए उचित था कि उसी की बात माने और उसी के आदेशों का पालन करे जो क़ुरआन के माध्यम से अंतिम नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्म) द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है। (दावतुल क़ुरआन)
33 - 'Abasa (He Frowned) - 033
فَإِذَا جَآءَتِ ٱلصَّآخَّةُ
तो जब कानों को बहरा कर देने वाली प्रचंड आवाज़ (क़ियामत) आ जाएगी।
34 - 'Abasa (He Frowned) - 034
يَوۡمَ يَفِرُّ ٱلۡمَرۡءُ مِنۡ أَخِيهِ
जिस दिन इनसान अपने भाई से भागेगा।
35 - 'Abasa (He Frowned) - 035
وَأُمِّهِۦ وَأَبِيهِ
तथा अपनी माता और अपने पिता (से)।
36 - 'Abasa (He Frowned) - 036
وَصَٰحِبَتِهِۦ وَبَنِيهِ
तथा अपनी पत्नी और अपने बेटों से।
37 - 'Abasa (He Frowned) - 037
لِكُلِّ ٱمۡرِيٕٖ مِّنۡهُمۡ يَوۡمَئِذٖ شَأۡنٞ يُغۡنِيهِ
उस दिन उनमें से प्रत्येक व्यक्ति की ऐसी स्थिति होगी, जो उसे (दूसरों से) बेपरवाह कर देगी।
38 - 'Abasa (He Frowned) - 038
وُجُوهٞ يَوۡمَئِذٖ مُّسۡفِرَةٞ
उस दिन कुछ चेहरे रौशन होंगे।
39 - 'Abasa (He Frowned) - 039
ضَاحِكَةٞ مُّسۡتَبۡشِرَةٞ
हँसते हुए, प्रसन्न होंगे।
40 - 'Abasa (He Frowned) - 040
وَوُجُوهٞ يَوۡمَئِذٍ عَلَيۡهَا غَبَرَةٞ
तथा कुछ चेहरों उस दिन धूल से ग्रस्त होंगे।
41 - 'Abasa (He Frowned) - 041
تَرۡهَقُهَا قَتَرَةٌ
उनपर कालिमा छाई होगी।
42 - 'Abasa (He Frowned) - 042