الليل

 

Al-Layl

 

The Night

1 - Al-Layl (The Night) - 001

وَٱلَّيۡلِ إِذَا يَغۡشَىٰ
रात की क़सम, जब वह छा जाए।

2 - Al-Layl (The Night) - 002

وَٱلنَّهَارِ إِذَا تَجَلَّىٰ
और दिन की क़सम, जब वह रौशन हो जाए!

3 - Al-Layl (The Night) - 003

وَمَا خَلَقَ ٱلذَّكَرَ وَٱلۡأُنثَىٰٓ
तथा नर और मादा को पैदा करने की क़सम।

4 - Al-Layl (The Night) - 004

إِنَّ سَعۡيَكُمۡ لَشَتَّىٰ
निःसंदेह तुम्हारे प्रयास विविध हैं।[1]
1. (1-4) इन आयतों का भावार्थ यह है कि जिस प्रकार रात-दिन तथा नर-मादा (स्त्री-पुरुष) भिन्न हैं, और उनके लक्षण और प्रभाव भी भिन्न हैं, इसी प्रकार मानवजाति (इनसान) के विश्वास, कर्म भी दो भिन्न प्रकार के हैं। और दोनों के प्रभाव और परिणाम भी विभिन्न हैं।

5 - Al-Layl (The Night) - 005

فَأَمَّا مَنۡ أَعۡطَىٰ وَٱتَّقَىٰ
फिर जिसने (दान) दिया और (अवज्ञा से) बचा।

6 - Al-Layl (The Night) - 006

وَصَدَّقَ بِٱلۡحُسۡنَىٰ
और सबसे अच्छी बात को सत्य माना।

7 - Al-Layl (The Night) - 007

فَسَنُيَسِّرُهُۥ لِلۡيُسۡرَىٰ
तो निश्चय हम उसके लिए भलाई को आसान कर देंगे।

8 - Al-Layl (The Night) - 008

وَأَمَّا مَنۢ بَخِلَ وَٱسۡتَغۡنَىٰ
लेकिन वह (व्यक्ति) जिसने कंजूसी की और बेपरवाही बरती।

9 - Al-Layl (The Night) - 009

وَكَذَّبَ بِٱلۡحُسۡنَىٰ
और सबसे अच्छी बात को झुठलाया।

10 - Al-Layl (The Night) - 010

فَسَنُيَسِّرُهُۥ لِلۡعُسۡرَىٰ
तो हम उसके लिए कठिनाई (बुराई का मार्ग) आसान कर देंगे।[2]
2. (5-10) इन आयतों में दोनों भिन्न कर्मों के प्रभाव का वर्णन है कि कोई अपना धन भलाई में लगाता है तथा अल्लाह से डरता है और भलाई को मानता है। सत्य आस्था, स्वभाव और सत्कर्म का पालन करता है। जिसका प्रभाव यह होता है कि अल्लाह उसके लिए सत्कर्मों का मार्ग सरल कर देता है। और उसमें पाप करने तथा स्वार्थ के लिए अवैध धन अर्जन की भावना नहीं रह जाती। ऐसे व्यक्ति के लिए दोनों लोक में सुख है। दूसरा वह होता है जो धन का लोभी, तथा अल्लाह से निश्न्तचिंत होता है और भलाई को नहीं मानता। जिसका प्रभाव यह होता है कि उसका स्वभाव ऐसा बन जाता है कि उसे बुराई का मार्ग सरल लगने लगता है। तथा अपने स्वार्थ और मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रयास करता है। फिर इस बात को इस वाक्य पर समाप्त कर दिया गया है कि धन के लिए वह जान देता है, परंतु वह उसे अपने साथ लेकर नहीं जाएगा। फिर वह उसके किस काम आएगा?

11 - Al-Layl (The Night) - 011

وَمَا يُغۡنِي عَنۡهُ مَالُهُۥٓ إِذَا تَرَدَّىٰٓ
और जब वह (जहन्नम के गड्ढे में) गिरेगा, तो उसका धन उसके किसी काम नहीं आएगा।

12 - Al-Layl (The Night) - 012

إِنَّ عَلَيۡنَا لَلۡهُدَىٰ
निःसंदेह हमारा ही ज़िम्मे मार्ग दिखाना है।

13 - Al-Layl (The Night) - 013

وَإِنَّ لَنَا لَلۡأٓخِرَةَ وَٱلۡأُولَىٰ
निःसंदेह हमारे ही अधिकार में आख़िरत और दुनिया है।

14 - Al-Layl (The Night) - 014

فَأَنذَرۡتُكُمۡ نَارٗا تَلَظَّىٰ
अतः मैंने तुम्हें भड़कती आग से सावधान कर दिया है।[3]
3. (11-14) इन आयतों में मानवजाति (इनसान) को सावधान किया गया है कि अल्लाह का, दया और न्याय के कारण मात्र यह दायित्व था कि सत्य मार्ग दिखा दे। और क़ुरआन द्वारा उसने अपना यह दायित्व पूरा कर दिया। किसी को सत्य मार्ग पर लगा देना उसका दायित्व नहीं है। अब इस सीधी राह को अपनाओगे तो तुम्हारा ही भला होगा। अन्यथा याद रखो कि संसार और परलोक दोनों ही अल्लाह के अधिकार में हैं। न यहाँ कोई तुम्हें बचा सकता है, और न वहाँ कोई तुम्हारा सहायक होगा।

15 - Al-Layl (The Night) - 015

لَا يَصۡلَىٰهَآ إِلَّا ٱلۡأَشۡقَى
जिसमें केवल सबसे बड़ा अभागा ही प्रवेश करेगा।

16 - Al-Layl (The Night) - 016

ٱلَّذِي كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰ
जिसने झुठलाया तथा मुँह फेरा।

17 - Al-Layl (The Night) - 017

وَسَيُجَنَّبُهَا ٱلۡأَتۡقَى
और उससे उस व्यक्ति को बचा लिया जाएगा, जो सबसे ज़्यादा परहेज़गार है।

18 - Al-Layl (The Night) - 018

ٱلَّذِي يُؤۡتِي مَالَهُۥ يَتَزَكَّىٰ
जो अपना धन देता है, ताकि वह पवित्र हो जाए।

19 - Al-Layl (The Night) - 019

وَمَا لِأَحَدٍ عِندَهُۥ مِن نِّعۡمَةٖ تُجۡزَىٰٓ
और उसपर किसी का कोई उपकार नहीं है, जिसका बदला चुकाया जाए।

20 - Al-Layl (The Night) - 020

إِلَّا ٱبۡتِغَآءَ وَجۡهِ رَبِّهِ ٱلۡأَعۡلَىٰ
वह तो केवल अपने सर्वोच्च रब का चेहरा चाहता है।

21 - Al-Layl (The Night) - 021

وَلَسَوۡفَ يَرۡضَىٰ
और निश्चय वह (बंदा) प्रसन्न हो जाएगा।[4]
4. (15-21) इन आयतों में यह वर्णन किया गया है कि कौन से कुकर्मी नरक में पड़ेंगे और कौन सुकर्मी उससे सुरक्षित रखे जाएँगे। और उन्हें क्या फल मिलेगा। आयत संख्या 10 के बारे में यह बात याद रखने की है कि अल्लाह ने सभी वस्तुओं और कर्मों का अपने नियमानुसार स्वभाविक प्रभाव रखा है। और क़ुरआन इसीलिए सभी कर्मों के स्वभाविक प्रभाव और फल को अल्लाह से जोड़ता है। और यूँ कहता है कि अल्लाह ने उसके लिए बुराई की राह सरल कर दी। कभी कहता है कि उनके दिलों पर मुहर लगा दी, जिसका अर्थ यह होता है कि यह अल्लाह के बनाए हुए नियमों के विरोध का स्वभाविक फल है। (देखिए : उम्मुल किताब, मौलाना आज़ाद)

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