الزمر
Az-Zumar
The Troops
1 - Az-Zumar (The Troops) - 001
تَنزِيلُ ٱلۡكِتَٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ
इस पुस्तक का उतारना अल्लाह की ओर से है, जो अत्यंत प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
2 - Az-Zumar (The Troops) - 002
إِنَّآ أَنزَلۡنَآ إِلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ فَٱعۡبُدِ ٱللَّهَ مُخۡلِصٗا لَّهُ ٱلدِّينَ
निःसंदेह हमने आपकी ओर यह पुस्तक सत्य के साथ उतारी है। अतः आप अल्लाह की इबादत इस तरह करें कि धर्म को उसी के लिए खालिस करने वाले हों।
3 - Az-Zumar (The Troops) - 003
أَلَا لِلَّهِ ٱلدِّينُ ٱلۡخَالِصُۚ وَٱلَّذِينَ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦٓ أَوۡلِيَآءَ مَا نَعۡبُدُهُمۡ إِلَّا لِيُقَرِّبُونَآ إِلَى ٱللَّهِ زُلۡفَىٰٓ إِنَّ ٱللَّهَ يَحۡكُمُ بَيۡنَهُمۡ فِي مَا هُمۡ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي مَنۡ هُوَ كَٰذِبٞ كَفَّارٞ
सुन लो! ख़ालिस (विशुद्ध) धर्म केवल अल्लाह ही के लिए है। तथा जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा अन्य संरक्षक बना रखे हैं (वे कहते हैं कि) हम उनकी पूजा केवल इसलिए करते हैं कि वे हमें अल्लाह से क़रीब[1] कर दें। निश्चय अल्लाह उनके बीच उसके बारे में निर्णय करेगा, जिसमें वे मतभेद कर रहे हैं। निःसंदेह अल्लाह उसे मार्गदर्शन नहीं करता, जो झूठा, बड़ा नाशुक्रा हो।
1. मक्का के काफ़िर यह मानते थे कि अल्लाह ही वास्तविक पूज्य है। परंतु वे यह समझते थे कि उसका दरबार बहुत ऊँचा है, इसलिए वे इन पूज्यों को माध्यम बनाते थे। ताकि इनके द्वारा उनकी प्रार्थनाएँ अल्लाह तक पहुँच जाएँ। यही बात साधारणतः मुश्रिक कहते आए हैं। इन तीन आयतों में उनके इसी कुविचार का खंडन किया गया है। फिर उनमें कुछ ऐसे थे जो समझते थे कि अल्लाह के संतान है। कुछ, फ़रिश्तों को अल्लाह की पुत्रियाँ कहते, और कुछ, नबियों (जैसे ईसा) को अल्लाह का पुत्र कहते थे। यहाँ इसी का खंडन किया गया है।
4 - Az-Zumar (The Troops) - 004
لَّوۡ أَرَادَ ٱللَّهُ أَن يَتَّخِذَ وَلَدٗا لَّٱصۡطَفَىٰ مِمَّا يَخۡلُقُ مَا يَشَآءُۚ سُبۡحَٰنَهُۥۖ هُوَ ٱللَّهُ ٱلۡوَٰحِدُ ٱلۡقَهَّارُ
यदि अल्लाह चाहता कि (किसी को) संतान बनाए, तो वह उनमें से जिन्हें वह पैदा करता है, जिसे चाहता अवश्य चुन लेता, वह पवित्र है! वह तो अल्लाह है, जो अकेला है, बहुत प्रभुत्व वाला है।
5 - Az-Zumar (The Troops) - 005
خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّۖ يُكَوِّرُ ٱلَّيۡلَ عَلَى ٱلنَّهَارِ وَيُكَوِّرُ ٱلنَّهَارَ عَلَى ٱلَّيۡلِۖ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ يَجۡرِي لِأَجَلٖ مُّسَمًّىۗ أَلَا هُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡغَفَّـٰرُ
उसने आकाशों तथा धरती को सत्य के साथ पैदा किया। वह रात को दिन पर लपेटता है तथा दिन को रात पर लपेटता है। तथा उसने सूर्य और चन्द्रमा को वशीभूत कर रखा है। प्रत्येक, एक नियत समय के लिए चल रहा है। सावधान! वही सब पर प्रभुत्वशाली, अत्यंत क्षमाशील है।
6 - Az-Zumar (The Troops) - 006
خَلَقَكُم مِّن نَّفۡسٖ وَٰحِدَةٖ ثُمَّ جَعَلَ مِنۡهَا زَوۡجَهَا وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ ٱلۡأَنۡعَٰمِ ثَمَٰنِيَةَ أَزۡوَٰجٖۚ يَخۡلُقُكُمۡ فِي بُطُونِ أُمَّهَٰتِكُمۡ خَلۡقٗا مِّنۢ بَعۡدِ خَلۡقٖ فِي ظُلُمَٰتٖ ثَلَٰثٖۚ ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ لَهُ ٱلۡمُلۡكُۖ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ فَأَنَّىٰ تُصۡرَفُونَ
उसने तुम्हें एक जान से पैदा किया, फिर उसी से उसका जोड़ा बनाया, तथा तुम्हारे लिए पशुओं में से आठ प्रकार (नर-मादा) उतारे। वह तुम्हें तुम्हारी माताओं के पेटों में, तीन अंधेरों में, एक रचना के बाद दूसरी रचना में, पैदा करता है। यही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है। उसी का राज्य है। उसके सिवा कोई (सच्चा) पूज्य नहीं। फिर तुम किस तरह फेरे जाते हो?
7 - Az-Zumar (The Troops) - 007
إِن تَكۡفُرُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَنِيٌّ عَنكُمۡۖ وَلَا يَرۡضَىٰ لِعِبَادِهِ ٱلۡكُفۡرَۖ وَإِن تَشۡكُرُواْ يَرۡضَهُ لَكُمۡۗ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٞ وِزۡرَ أُخۡرَىٰۚ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُم مَّرۡجِعُكُمۡ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَۚ إِنَّهُۥ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ
यदि तुम नाशुक्री करो, तो अल्लाह तुमसे बहुत बेनियाज़ है और वह अपने बंदों के लिए नाशुक्री पसंद नहीं करता, और यदि तुम शुक्रिया अदा करो, तो वह उसे तुम्हारे लिए पसंद करेगा। और कोई बोझ उठाने वाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। फिर तुम्हारा लौटना तुम्हारे पालनहार ही की ओर है। तो वह तुम्हें बतलाएगा जो कुछ तुम किया करते थे। निश्चय वह दिलों के भेदों को भली-भाँति जानने वाला है।
8 - Az-Zumar (The Troops) - 008
۞وَإِذَا مَسَّ ٱلۡإِنسَٰنَ ضُرّٞ دَعَا رَبَّهُۥ مُنِيبًا إِلَيۡهِ ثُمَّ إِذَا خَوَّلَهُۥ نِعۡمَةٗ مِّنۡهُ نَسِيَ مَا كَانَ يَدۡعُوٓاْ إِلَيۡهِ مِن قَبۡلُ وَجَعَلَ لِلَّهِ أَندَادٗا لِّيُضِلَّ عَن سَبِيلِهِۦۚ قُلۡ تَمَتَّعۡ بِكُفۡرِكَ قَلِيلًا إِنَّكَ مِنۡ أَصۡحَٰبِ ٱلنَّارِ
तथा जब मनुष्य को कोई कष्ट पहुँचता है, तो वह अपने पालनहार को पुकारता है, इस हाल में कि उसी की ओर एकाग्र, ध्यानमग्न होता है। फिर जब वह उसे अपनी ओर से कोई सुख प्रदान करता है, तो वह उसे भूल जाता है, जिसे वह इससे पहले पुकार रहा था, तथा वह अल्लाह का साझी बना लेता है, ताकि उसके मार्ग से गुमराह कर दे। आप कह दें कि अपने कुफ़्र का थोड़ा सा लाभ उठा लो। निश्चय तुम जहन्नमियों में से हो।
9 - Az-Zumar (The Troops) - 009
أَمَّنۡ هُوَ قَٰنِتٌ ءَانَآءَ ٱلَّيۡلِ سَاجِدٗا وَقَآئِمٗا يَحۡذَرُ ٱلۡأٓخِرَةَ وَيَرۡجُواْ رَحۡمَةَ رَبِّهِۦۗ قُلۡ هَلۡ يَسۡتَوِي ٱلَّذِينَ يَعۡلَمُونَ وَٱلَّذِينَ لَا يَعۡلَمُونَۗ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ
(क्या यह बेहतर) या वह व्यक्ति जो रात की घड़ियों में सजदा करते हुए तथा क़ियाम करते हुए इबादत करने वाला है। आख़िरत का भय रखता है तथा अपने पालनहार की दया की आशा रखता है? आप कह दें कि क्या समान हैं वे लोग जो ज्ञान रखते हों तथा वे जो ज्ञान नहीं रखते? उपदेश तो वही ग्रहण करते हैं, जो बुद्धि वाले हैं।
10 - Az-Zumar (The Troops) - 010
قُلۡ يَٰعِبَادِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ رَبَّكُمۡۚ لِلَّذِينَ أَحۡسَنُواْ فِي هَٰذِهِ ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٞۗ وَأَرۡضُ ٱللَّهِ وَٰسِعَةٌۗ إِنَّمَا يُوَفَّى ٱلصَّـٰبِرُونَ أَجۡرَهُم بِغَيۡرِ حِسَابٖ
(ऐ रसूल!) आप कह दें : ऐ मेरे बंदो, जो ईमान लाए हो! अपने पालनहार से डरो। उन लोगों के लिए जिन्होंने इस दुनिया में अच्छे कार्य किए, बड़ी भलाई है। तथा अल्लाह की धरती विस्तृत है। केवल सब्र करने वालों ही को उनका बदला बिना किसी हिसाब (शुमार) के दिया जाएगा।
11 - Az-Zumar (The Troops) - 011
قُلۡ إِنِّيٓ أُمِرۡتُ أَنۡ أَعۡبُدَ ٱللَّهَ مُخۡلِصٗا لَّهُ ٱلدِّينَ
आप कह दें : निःसंदेह मुझे आदेश दिया गया है कि मैं अल्लाह की इबादत करूँ, इस हाल में कि धर्म को उसी के लिए ख़ालिस (विशुद्ध) करने वाला हूँ।
12 - Az-Zumar (The Troops) - 012
وَأُمِرۡتُ لِأَنۡ أَكُونَ أَوَّلَ ٱلۡمُسۡلِمِينَ
तथा मुझे आदेश दिया गया है कि आज्ञाकारियों में से पहला मैं बनूँ।
13 - Az-Zumar (The Troops) - 013
قُلۡ إِنِّيٓ أَخَافُ إِنۡ عَصَيۡتُ رَبِّي عَذَابَ يَوۡمٍ عَظِيمٖ
आप कह दें : निःसंदेह मैं एक बहुत बड़े दिन की यातना से डरता हूँ, यदि मैं अपने पालनहार की अवज्ञा करूँ।
14 - Az-Zumar (The Troops) - 014
قُلِ ٱللَّهَ أَعۡبُدُ مُخۡلِصٗا لَّهُۥ دِينِي
आप कह दें : मैं अल्लाह ही की इबादत करता हूँ, इस हाल में कि उसी के लिए अपने धर्म को विशुद्ध (ख़ालिस) करने वाला हूँ।
15 - Az-Zumar (The Troops) - 015
فَٱعۡبُدُواْ مَا شِئۡتُم مِّن دُونِهِۦۗ قُلۡ إِنَّ ٱلۡخَٰسِرِينَ ٱلَّذِينَ خَسِرُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ وَأَهۡلِيهِمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۗ أَلَا ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡخُسۡرَانُ ٱلۡمُبِينُ
अतः तुम उसके सिवा जिसकी चाहो इबादत करो। आप कह दें : निःसंदेह वास्तविक घाटे में पड़ने वाले तो वे हैं, जिन्होंने क़ियामत के दिन खुद को तथा अपने घर वालों को घाटे में डाला। सुन लो! यही खुला घाटा है।
16 - Az-Zumar (The Troops) - 016
لَهُم مِّن فَوۡقِهِمۡ ظُلَلٞ مِّنَ ٱلنَّارِ وَمِن تَحۡتِهِمۡ ظُلَلٞۚ ذَٰلِكَ يُخَوِّفُ ٱللَّهُ بِهِۦ عِبَادَهُۥۚ يَٰعِبَادِ فَٱتَّقُونِ
उनके लिए उनके ऊपर से आग के छत्र होंगे तथा उनके नीचे से भी छत्र होंगे। यही वह चीज़ है, जिससे अल्लाह अपने बंदों को डराता है। ऐ मेरे बंदो! अतः तुम मुझसे डरो।
17 - Az-Zumar (The Troops) - 017
وَٱلَّذِينَ ٱجۡتَنَبُواْ ٱلطَّـٰغُوتَ أَن يَعۡبُدُوهَا وَأَنَابُوٓاْ إِلَى ٱللَّهِ لَهُمُ ٱلۡبُشۡرَىٰۚ فَبَشِّرۡ عِبَادِ
तथा जो लोग 'ताग़ूत'[2] की पूजा करने से बचे रहे और अल्लाह की ओर ध्यानमग्न हो गए, उन्हीं के लिए शुभ सूचना है। अतः आप मेरे बंदों को शुभ सूचना सुना दें।
2. अल्लाह के अतिरिक्त मिथ्या पूज्यों से।
18 - Az-Zumar (The Troops) - 018
ٱلَّذِينَ يَسۡتَمِعُونَ ٱلۡقَوۡلَ فَيَتَّبِعُونَ أَحۡسَنَهُۥٓۚ أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ هَدَىٰهُمُ ٱللَّهُۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمۡ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ
वे जो ध्यान से बात सुनते हैं, फिर उसमें से सबसे अच्छी बात का अनुसरण करते हैं। यही लोग हैं, जिन्हें अल्लाह ने मार्गदर्श प्रदान किया है तथा यही बुद्धि वाले हैं।
19 - Az-Zumar (The Troops) - 019
أَفَمَنۡ حَقَّ عَلَيۡهِ كَلِمَةُ ٱلۡعَذَابِ أَفَأَنتَ تُنقِذُ مَن فِي ٱلنَّارِ
तो क्या वह व्यक्ति जिसपर यातना की बात सिद्ध हो चुकी, फिर क्या आप उसे बचा लेंगे, जो आग में है?
20 - Az-Zumar (The Troops) - 020
لَٰكِنِ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ رَبَّهُمۡ لَهُمۡ غُرَفٞ مِّن فَوۡقِهَا غُرَفٞ مَّبۡنِيَّةٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ وَعۡدَ ٱللَّهِ لَا يُخۡلِفُ ٱللَّهُ ٱلۡمِيعَادَ
किंतु जो लोग अपने पालनहार से डरते रहे, उनके लिए उच्च भवन हैं। जिनके ऊपर निर्मित भवन हैं। जिनके नीचे से नहरें प्रवाहित हैं। यह अल्लाह का वादा है और अल्लाह अपने वादे का उल्लंघन नहीं करता।
21 - Az-Zumar (The Troops) - 021
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَسَلَكَهُۥ يَنَٰبِيعَ فِي ٱلۡأَرۡضِ ثُمَّ يُخۡرِجُ بِهِۦ زَرۡعٗا مُّخۡتَلِفًا أَلۡوَٰنُهُۥ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَىٰهُ مُصۡفَرّٗا ثُمَّ يَجۡعَلُهُۥ حُطَٰمًاۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَذِكۡرَىٰ لِأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ
क्या तुमने नहीं देखा[3] कि अल्लाह ने आकाश से कुछ पानी उतारा। फिर उसे स्रोतों के रूप में धरती में चलाया। फिर वह उसके साथ विभिन्न रंगों की खेती निकालता है। फिर वह सूख जाती है, तो तुम उसे पीली देखते हो। फिर वह उसे चूरा-चूरा कर देता है। निःसंदेह इसमें बुद्धि वालों के लिए निश्चय बड़ी सीख है।
3. इस आयत में अल्लाह के एक नियम की ओर संकेत है जो सब में समान रूप से प्रचलित है। अर्थात वर्षा से खेती का उगना और अनेक स्थितियों से गुज़रकर नाश हो जाना। इसे मतिमानों के लिए शिक्षा कहा गया है। क्योंकि मनुष्य की भी यही दशा है। वह शिशु जन्म लेता है फिर युवक और बूढ़ा हो जाता है। और अंततः संसार से चला जाता है।
22 - Az-Zumar (The Troops) - 022
أَفَمَن شَرَحَ ٱللَّهُ صَدۡرَهُۥ لِلۡإِسۡلَٰمِ فَهُوَ عَلَىٰ نُورٖ مِّن رَّبِّهِۦۚ فَوَيۡلٞ لِّلۡقَٰسِيَةِ قُلُوبُهُم مِّن ذِكۡرِ ٱللَّهِۚ أُوْلَـٰٓئِكَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٍ
तो क्या वह व्यक्ति जिसका सीना अल्लाह ने इस्लाम के लिए खोल दिया है, तो वह अपने पालनहार की ओर से एक प्रकाश पर है (किसी कठोर हृदय काफ़िर के समान हो सकता है?) अतः उनके लिए विनाश है, जिनके दिल अल्लाह के स्मरण के प्रति कठोर हैं। ये लोग खुली गुमराही में हैं।
23 - Az-Zumar (The Troops) - 023
ٱللَّهُ نَزَّلَ أَحۡسَنَ ٱلۡحَدِيثِ كِتَٰبٗا مُّتَشَٰبِهٗا مَّثَانِيَ تَقۡشَعِرُّ مِنۡهُ جُلُودُ ٱلَّذِينَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُمۡ ثُمَّ تَلِينُ جُلُودُهُمۡ وَقُلُوبُهُمۡ إِلَىٰ ذِكۡرِ ٱللَّهِۚ ذَٰلِكَ هُدَى ٱللَّهِ يَهۡدِي بِهِۦ مَن يَشَآءُۚ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٍ
अल्लाह ने सबसे अच्छी बात (क़ुरआन) अवतरित की, ऐसी पुस्तक जो परस्पर मिलती-जुलती, (जिसकी आयतें) बार-बार दोहराई जाने वाली हैं। इससे उन लोगों की खालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, जो अपने पालनहार से डरते हैं। फिर उनकी खालें तथा उनके दिल अल्लाह के स्मरण की ओर कोमल हो जाते हैं। यह अल्लाह का मार्गदर्शन है, जिसके द्वारा वह जिसे चाहता है, संमार्ग पर लगा देता है, और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे, तो उसे कोई राह पर लाने वाला नहीं।
24 - Az-Zumar (The Troops) - 024
أَفَمَن يَتَّقِي بِوَجۡهِهِۦ سُوٓءَ ٱلۡعَذَابِ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ وَقِيلَ لِلظَّـٰلِمِينَ ذُوقُواْ مَا كُنتُمۡ تَكۡسِبُونَ
तो क्या जो व्यक्ति क़ियामत के दिन अपने चेहरे[4] के साथ, बुरी यातना से, अपनी रक्षा करेगा? तथा अत्याचारियों से कहा जाएगा : उसे चखो, जो तुम किया करते थे।
4. इसलिए कि उसके हाथ पीछे बंधे होंगे। वह अच्छा है या जो स्वर्ग के सुख में होगा वह अच्छा है?
25 - Az-Zumar (The Troops) - 025
كَذَّبَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَأَتَىٰهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِنۡ حَيۡثُ لَا يَشۡعُرُونَ
इनसे पहले के लोगों ने भी झुठलाया, तो उनपर वहाँ से यातना आई कि वे सोचते भी न थे।
26 - Az-Zumar (The Troops) - 026
فَأَذَاقَهُمُ ٱللَّهُ ٱلۡخِزۡيَ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡأٓخِرَةِ أَكۡبَرُۚ لَوۡ كَانُواْ يَعۡلَمُونَ
तो अल्लाह ने उन्हें सांसारिक जीवन में अपमान चखाया और निश्चय आख़िरत (परलोक) की यातना अत्यधिक बड़ी है। काश! वे जानते होते।
27 - Az-Zumar (The Troops) - 027
وَلَقَدۡ ضَرَبۡنَا لِلنَّاسِ فِي هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ مِن كُلِّ مَثَلٖ لَّعَلَّهُمۡ يَتَذَكَّرُونَ
और निःसंदेह हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए हर प्रकार के उदाहरण दिए हैं, ताकि वे उपदेश ग्रहण करें।
28 - Az-Zumar (The Troops) - 028
قُرۡءَانًا عَرَبِيًّا غَيۡرَ ذِي عِوَجٖ لَّعَلَّهُمۡ يَتَّقُونَ
अरबी भाषा में क़ुरआन, जिसमें कोई टेढ़ापन नहीं है, ताकि वे अल्लाह से डरें।
29 - Az-Zumar (The Troops) - 029
ضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلٗا رَّجُلٗا فِيهِ شُرَكَآءُ مُتَشَٰكِسُونَ وَرَجُلٗا سَلَمٗا لِّرَجُلٍ هَلۡ يَسۡتَوِيَانِ مَثَلًاۚ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ
अल्लाह ने एक व्यक्ति का उदाहरण दिया है, जिसमें कई परस्पर विरोधी साझी हैं तथा एक और व्यक्ति का, जो पूरा एक ही व्यक्ति का (दास) है। क्या दोनों की स्थिति समान हैं?[5] सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है। बल्कि उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते।
5. इस आयत में मिश्रणवादी और एकेश्वरवादी की दशा का वर्णन किया गया है कि मिश्रणवादी अनेक पूज्यों को प्रसन्न करने में व्याकुल रहता है। तथा एकेश्वरवादी शांत होकर केवल एक अल्लाह की इबादत करता है और एक ही को प्रसन्न करता है।
30 - Az-Zumar (The Troops) - 030
إِنَّكَ مَيِّتٞ وَإِنَّهُم مَّيِّتُونَ
(ऐ नबी!) निःसंदेह आप मरने वाले हैं तथा निःसंदेह वे भी मरने वाले हैंl[6]
6. इस आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की मौत को सिद्ध किया गया है। जिस प्रकार सूरत आले-इमरान, आयत : 144 में आपकी मौत का प्रमाण बताया गया है।
31 - Az-Zumar (The Troops) - 031
ثُمَّ إِنَّكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ عِندَ رَبِّكُمۡ تَخۡتَصِمُونَ
फिर निःसंदेह तुम क़ियामत के दिन अपने पालनहार के पास झगड़ोगे।
32 - Az-Zumar (The Troops) - 032
۞فَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن كَذَبَ عَلَى ٱللَّهِ وَكَذَّبَ بِٱلصِّدۡقِ إِذۡ جَآءَهُۥٓۚ أَلَيۡسَ فِي جَهَنَّمَ مَثۡوٗى لِّلۡكَٰفِرِينَ
तथा उससे अधिक अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह पर झूठ गढ़े या जब सच उसके पास आ जाए, तो उसे झुठलाए? तो क्या जहन्नम में काफ़िरों का आवास नहीं होगा?
33 - Az-Zumar (The Troops) - 033
وَٱلَّذِي جَآءَ بِٱلصِّدۡقِ وَصَدَّقَ بِهِۦٓ أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُتَّقُونَ
तथा जो सत्य लेकर आया[7] और जिसने उसे सच माना, तो वही (यातना से) सुरक्षित रहने वाले लोग हैं।
7. इससे अभिप्राय अंतिम नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं।
34 - Az-Zumar (The Troops) - 034
لَهُم مَّا يَشَآءُونَ عِندَ رَبِّهِمۡۚ ذَٰلِكَ جَزَآءُ ٱلۡمُحۡسِنِينَ
उनके लिए उनके पालनहार के यहाँ वह सब कुछ होगा, जो वे चाहेंगे। और यही सदाचारियों का प्रतिफल है।
35 - Az-Zumar (The Troops) - 035
لِيُكَفِّرَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ أَسۡوَأَ ٱلَّذِي عَمِلُواْ وَيَجۡزِيَهُمۡ أَجۡرَهُم بِأَحۡسَنِ ٱلَّذِي كَانُواْ يَعۡمَلُونَ
ताकि जो बुरे कर्म उन्होंने किए हैं, उन्हें अल्लाह क्षमा कर दे तथा उनके अच्छे कर्मों के बदले, जो वे कर रहे थे, उन्हें उनका प्रतिफल प्रदान करे।
36 - Az-Zumar (The Troops) - 036
أَلَيۡسَ ٱللَّهُ بِكَافٍ عَبۡدَهُۥۖ وَيُخَوِّفُونَكَ بِٱلَّذِينَ مِن دُونِهِۦۚ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٖ
क्या अल्लाह अपने बंदे के लिए काफ़ी नहीं है? तथा वे आपको उन (झूठे पूज्यों) से डराते हैं, जो उसके सिवा हैं। तथा जिसे अल्लाह राह से हटा दे, उसे कोई राह पर लाने वाला नहीं है।
37 - Az-Zumar (The Troops) - 037
وَمَن يَهۡدِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن مُّضِلٍّۗ أَلَيۡسَ ٱللَّهُ بِعَزِيزٖ ذِي ٱنتِقَامٖ
और जिसे अल्लाह सीधी राह पर लगा दे, उसे कोई राह से भटका नहीं सकता। क्या अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेने वाला नहीं है?
38 - Az-Zumar (The Troops) - 038
وَلَئِن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ لَيَقُولُنَّ ٱللَّهُۚ قُلۡ أَفَرَءَيۡتُم مَّا تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ إِنۡ أَرَادَنِيَ ٱللَّهُ بِضُرٍّ هَلۡ هُنَّ كَٰشِفَٰتُ ضُرِّهِۦٓ أَوۡ أَرَادَنِي بِرَحۡمَةٍ هَلۡ هُنَّ مُمۡسِكَٰتُ رَحۡمَتِهِۦۚ قُلۡ حَسۡبِيَ ٱللَّهُۖ عَلَيۡهِ يَتَوَكَّلُ ٱلۡمُتَوَكِّلُونَ
और यदि आप उनसे पूछें कि आकाशों तथा धरती को किसने पैदा किया है? तो वे अवश्य कहेंगे कि अल्लाह ने। आप कह दीजिए कि तुम बताओ कि जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, यदि अल्लाह मुझे कोई हानि पहुँचाना चाहे, तो क्या ये उसकी हानि दूर कर सकते हैं? या मेरे साथ दया करना चाहे, तो क्या ये उसकी दया को रोक सकते हैं? आप कह दें कि मेरे लिए अल्लाह ही काफ़ी है। उसीपर भरोसा करने वाले भरोसा करते हैं।
39 - Az-Zumar (The Troops) - 039
قُلۡ يَٰقَوۡمِ ٱعۡمَلُواْ عَلَىٰ مَكَانَتِكُمۡ إِنِّي عَٰمِلٞۖ فَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ
आप कह दें कि ऐ मेरी जाति के लोगो! तुम काम करो अपने स्थान पर, मैं भी काम कर रहा हूँ। फिर शीघ्र ही तुम्हें पता चल जाएगा।
40 - Az-Zumar (The Troops) - 040
مَن يَأۡتِيهِ عَذَابٞ يُخۡزِيهِ وَيَحِلُّ عَلَيۡهِ عَذَابٞ مُّقِيمٌ
कि कौन है वह व्यक्ति, जिसपर अपमानकारी यातना आएगी और उसपर स्थायी अज़ाब उतरेगा?
41 - Az-Zumar (The Troops) - 041
إِنَّآ أَنزَلۡنَا عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ لِلنَّاسِ بِٱلۡحَقِّۖ فَمَنِ ٱهۡتَدَىٰ فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيۡهَاۖ وَمَآ أَنتَ عَلَيۡهِم بِوَكِيلٍ
वास्तव में, हमने ही आपपर यह पुस्तक लोगों के लिए सत्य के साथ उतारी है। अब जिसने सीधा मार्ग ग्रहण किया, तो अपने लिए, तथा जो भटका, तो वह भटककर अपना नुकसान करता है। तथा आप उनके ज़िम्मेवार नहीं हैं।
42 - Az-Zumar (The Troops) - 042
ٱللَّهُ يَتَوَفَّى ٱلۡأَنفُسَ حِينَ مَوۡتِهَا وَٱلَّتِي لَمۡ تَمُتۡ فِي مَنَامِهَاۖ فَيُمۡسِكُ ٱلَّتِي قَضَىٰ عَلَيۡهَا ٱلۡمَوۡتَ وَيُرۡسِلُ ٱلۡأُخۡرَىٰٓ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمًّىۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ
अल्लाह ही प्राणों को उनकी मौत के समय क़ब्ज़ करता है, तथा जिसकी मौत का समय नहीं आया, उसकी नींद की अवस्था में। फिर (उसे) रोक लेता है, जिसके बारे में मौत का निर्णय कर दिया हो तथा अन्य को एक निर्धारित समय तक के लिए भेज देता है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय कई निशानियाँ हैं, जो मनन-चिंतन[8] करते हैं।
8. इस आयत में बताया जा रहा है कि मरण तथा जीवन अल्लाह के नियंत्रण में हैं। निद्रा में प्राणों को खींचने का अर्थ है, उनकी संवेदन शक्ति को समाप्त कर देना। अतः कोई इस निद्रा की दशा पर विचार करे, तो यह समझ सकता है कि अल्लाह मुर्दों को भी जीवित कर सकता है।
43 - Az-Zumar (The Troops) - 043
أَمِ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ شُفَعَآءَۚ قُلۡ أَوَلَوۡ كَانُواْ لَا يَمۡلِكُونَ شَيۡـٔٗا وَلَا يَعۡقِلُونَ
क्या उन्होंने अल्लाह के अतिरिक्त बहुत-से सिफ़ारिशी बना लिए हैं? आप कह दें: क्या यदि वे किसी चीज़ का अधिकार न रखते हों और न कुछ समझते हों तो भी (वे सिफ़ारिश करेंगे)?
44 - Az-Zumar (The Troops) - 044
قُل لِّلَّهِ ٱلشَّفَٰعَةُ جَمِيعٗاۖ لَّهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ ثُمَّ إِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ
आप कह दें कि सिफ़ारिश तो सब अल्लाह के अधिकार में है। उसी के लिए है आकाशों तथा धरती का राज्य। फिर उसी की ओर तुम लौटाए जाओगे।
45 - Az-Zumar (The Troops) - 045
وَإِذَا ذُكِرَ ٱللَّهُ وَحۡدَهُ ٱشۡمَأَزَّتۡ قُلُوبُ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِۖ وَإِذَا ذُكِرَ ٱلَّذِينَ مِن دُونِهِۦٓ إِذَا هُمۡ يَسۡتَبۡشِرُونَ
तथा जब अकेले अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है, तो उन लोगों के दिल संकीर्ण होने लगते हैं, जो आख़िरत[9] पर ईमान नहीं रखते तथा जब उसके सिवा अन्य पूज्यों का ज़िक्र आता है, तो वे सहसा प्रसन्न हो जाते हैं।
9. इसमें मुश्रिकों की दशा का वर्णन किया जा रहा है कि वे अल्लाह की महिमा और प्रेम को स्वीकार तो करते हैं, फिर भी जब अकेले अल्लाह की महिमा तथा प्रशंसा का वर्णन किया जाता है, तो प्रसन्न नहीं होते जब तक दूसरे पीरों-फ़क़ीरों तथा देवताओं के चमत्कार की चर्चा न की जाए।
46 - Az-Zumar (The Troops) - 046
قُلِ ٱللَّهُمَّ فَاطِرَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ عَٰلِمَ ٱلۡغَيۡبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ أَنتَ تَحۡكُمُ بَيۡنَ عِبَادِكَ فِي مَا كَانُواْ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَ
(ऐ नबी!) आप कह दें: ऐ अल्लाह, आकाशों तथा धरती के पैदा करने वाले, परोक्ष तथा प्रत्यक्ष के जानने वाले! तू ही अपने बंदों के बीच उस बात के बारे में निर्णय करेगा, जिसमें वे झगड़ रहे थे।
47 - Az-Zumar (The Troops) - 047
وَلَوۡ أَنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُواْ مَا فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا وَمِثۡلَهُۥ مَعَهُۥ لَٱفۡتَدَوۡاْ بِهِۦ مِن سُوٓءِ ٱلۡعَذَابِ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ وَبَدَا لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ مَا لَمۡ يَكُونُواْ يَحۡتَسِبُونَ
और जिन लोगों ने अत्याचार किया है, अगर धरती की सारी चीज़ें उनकी हो जाएँ, और उनके साथ उतना ही और भी, तो वे क़ियामत के दिन बुरी यातना से बचने के लिए इन सारी चीज़ों को फ़िदया में दे देंगे।[10] तथा अल्लाह की ओर से उनके लिए वह बात खुल जाएगी, जिसका वे गुमान भी न करते थे।
10. परंतु वह सब स्वीकार्य नहीं होगा। (देखिए : सूरतुल-बक़रा, आयत : 48, तथा सूरत आल-इमरान, आयत : 91)
48 - Az-Zumar (The Troops) - 048
وَبَدَا لَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ
और उनके कुकर्मों की बुराइयाँ उनके सामने आ जाएँगी और उन्हें वह यातना घेर लेगी, जिसका वे मज़ाक उड़ाया करते थे।
49 - Az-Zumar (The Troops) - 049
فَإِذَا مَسَّ ٱلۡإِنسَٰنَ ضُرّٞ دَعَانَا ثُمَّ إِذَا خَوَّلۡنَٰهُ نِعۡمَةٗ مِّنَّا قَالَ إِنَّمَآ أُوتِيتُهُۥ عَلَىٰ عِلۡمِۭۚ بَلۡ هِيَ فِتۡنَةٞ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ
और जब इनसान को कोई दुःख पहुँचाता है, तो हमें पुकारता है। फिर जब हम उसे अपनी ओर से कोई सुख प्रदान करते हैं, तो कहता हैः "यह तो मुझे ज्ञान के कारण प्राप्त हुआ है।" बल्कि, यह एक परीक्षा है। किन्तु, उनमें से अधिकतर लोग (इसे) नहीं जानते।
50 - Az-Zumar (The Troops) - 050
قَدۡ قَالَهَا ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَمَآ أَغۡنَىٰ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ
यही बात, उन लोगों ने भी कही थी, जो इनसे पूर्व थे। तो नहीं काम आया उनके, जो कुछ वे कमा रहे थे।
51 - Az-Zumar (The Troops) - 051
فَأَصَابَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْۚ وَٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ مِنۡ هَـٰٓؤُلَآءِ سَيُصِيبُهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْ وَمَا هُم بِمُعۡجِزِينَ
तो उनपर उनके कर्मों की बुराइयाँ आ पड़ीं। और इनमें से जिन लोगों ने अत्याचार किया, उनपर उनके कर्मों की बुराइयाँ आ पड़ेंगी। और वे (हमें) विवश करने वाले नहीं हैं।
52 - Az-Zumar (The Troops) - 052
أَوَلَمۡ يَعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقۡدِرُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ
क्या उन्हें मालूम नहीं कि अल्लाह जिसके लिए चाहता है, रोज़ी कुशादा कर देता है, और (जिसे चाहता है) नापकर देता है? निश्चय इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो ईमान लाते हैं।
53 - Az-Zumar (The Troops) - 053
۞قُلۡ يَٰعِبَادِيَ ٱلَّذِينَ أَسۡرَفُواْ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمۡ لَا تَقۡنَطُواْ مِن رَّحۡمَةِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ يَغۡفِرُ ٱلذُّنُوبَ جَمِيعًاۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِيمُ
(ऐ नबी!) आप मेरे उन बंदों से कह दें, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किए हैं कि तुम अल्लाह की दया से निराश न हो।[11] निःसंदेह अल्लाह सब पापों को क्षमा कर देता है। निःसंदेह वही तो अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
11. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास कुछ मुश्रिक आए जिन्होंने बहुत जानें मारीं और बहुत व्यभिचार किए थे। और कहा वास्तव में, आप जो कुछ कह रहे हैं वह बहुत अच्छा है। तो आप बताएँ कि हमने जो कुकर्म किए हैं उनके लिए कोई कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) है? उसी पर क़ुरआन की आयत 68 और यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4810)
54 - Az-Zumar (The Troops) - 054
وَأَنِيبُوٓاْ إِلَىٰ رَبِّكُمۡ وَأَسۡلِمُواْ لَهُۥ مِن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلۡعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنصَرُونَ
तथा अपने पालनहार की ओर झुक पड़ो और उसके आज्ञाकारी हो जाओ, इससे पहले कि तुमपर यातना आ जाए, फिर तुम्हारी सहायता न की जाए।
55 - Az-Zumar (The Troops) - 055
وَٱتَّبِعُوٓاْ أَحۡسَنَ مَآ أُنزِلَ إِلَيۡكُم مِّن رَّبِّكُم مِّن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلۡعَذَابُ بَغۡتَةٗ وَأَنتُمۡ لَا تَشۡعُرُونَ
तथा उस सबसे उत्तम वाणी का पालन करो, जो अल्लाह की ओर से तुम्हारी तरफ़ उतारी गई है, इससे पूर्व कि तुमपर यातना आ पड़े और तुम्हें एहसास तक न हो।
56 - Az-Zumar (The Troops) - 056
أَن تَقُولَ نَفۡسٞ يَٰحَسۡرَتَىٰ عَلَىٰ مَا فَرَّطتُ فِي جَنۢبِ ٱللَّهِ وَإِن كُنتُ لَمِنَ ٱلسَّـٰخِرِينَ
(ऐसा न हो कि) कोई व्यक्ति कहे कि अफ़सोस है उस कोताही पर, जो मैंने अल्लाह के हक में की तथा मैं उपहास करने वालों में रह गया।
57 - Az-Zumar (The Troops) - 057
أَوۡ تَقُولَ لَوۡ أَنَّ ٱللَّهَ هَدَىٰنِي لَكُنتُ مِنَ ٱلۡمُتَّقِينَ
या फिर कहे कि यदि अल्लाह मुझे सीधा रास्ता दिखाता, तो मैं डरने वालों में से हो जाता।
58 - Az-Zumar (The Troops) - 058
أَوۡ تَقُولَ حِينَ تَرَى ٱلۡعَذَابَ لَوۡ أَنَّ لِي كَرَّةٗ فَأَكُونَ مِنَ ٱلۡمُحۡسِنِينَ
या जब यातना को देख ले, तो कहने लगे कि अगर मुझे (संसार की ओर) वापस जाने का अवसर मिले, तो मैं अवश्य सदाचारियों में से हो जाऊँगा।
59 - Az-Zumar (The Troops) - 059
بَلَىٰ قَدۡ جَآءَتۡكَ ءَايَٰتِي فَكَذَّبۡتَ بِهَا وَٱسۡتَكۡبَرۡتَ وَكُنتَ مِنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ
हाँ, तुम्हारे पास मेरी निशानियाँ आईं, तो तुमने उन्हें झुठला दिया और अभिमान किया तथा तुम थे ही काफ़िरों में से।
60 - Az-Zumar (The Troops) - 060
وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ تَرَى ٱلَّذِينَ كَذَبُواْ عَلَى ٱللَّهِ وُجُوهُهُم مُّسۡوَدَّةٌۚ أَلَيۡسَ فِي جَهَنَّمَ مَثۡوٗى لِّلۡمُتَكَبِّرِينَ
और क़ियामत के दिन आप उन लोगों को देखेंगे, जिन्होंने अल्लाह पर झूठ बोला कि उनके चेहरे काले होंगे। तो क्या अभिमानियों का ठिकाना जहन्नम में नहीं है?
61 - Az-Zumar (The Troops) - 061
وَيُنَجِّي ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ بِمَفَازَتِهِمۡ لَا يَمَسُّهُمُ ٱلسُّوٓءُ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ
तथा अल्लाह उन लोगों को उनकी सफलता के साथ बचा लेगा, जो आज्ञाकारी रहे। न उन्हें कोई तकलीफ छुएगी और न वे शोकाकुल होंगे।
62 - Az-Zumar (The Troops) - 062
ٱللَّهُ خَٰلِقُ كُلِّ شَيۡءٖۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ وَكِيلٞ
अल्लाह ही प्रत्येक वस्तु का पैदा करने वाला है तथा वही प्रत्येक वस्तु का संरक्षक है।
63 - Az-Zumar (The Troops) - 063
لَّهُۥ مَقَالِيدُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ
आकाशों तथा धरती की कुंजियाँ[12] उसी के पास हैं तथा जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों का इनकार किया, वही लोग घाटा उठाने वाले हैं।
12. अर्थात सबका विधाता तथा स्वामी वही है। वही सबकी व्यवस्था करता है। और सब उसी के अधीन तथा अधिकार में हैं।
64 - Az-Zumar (The Troops) - 064
قُلۡ أَفَغَيۡرَ ٱللَّهِ تَأۡمُرُوٓنِّيٓ أَعۡبُدُ أَيُّهَا ٱلۡجَٰهِلُونَ
आप कह दें के ऐ अज्ञानो! क्या तुम मुझे आदेश देते हो कि मैं अल्लाह के सिवा किसी और की इबादत (वंदना) करूँ?
65 - Az-Zumar (The Troops) - 065
وَلَقَدۡ أُوحِيَ إِلَيۡكَ وَإِلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكَ لَئِنۡ أَشۡرَكۡتَ لَيَحۡبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ
और निःसंदेह तुम्हारी ओर एवं तुमसे पहले के नबियों की ओर वह़्य की गई है कि यदि तुमने शिर्क किया, तो निश्चय तुम्हारा कर्म अवश्य नष्ट हो जाएगा और तुम निश्चित रूप से हानि उठाने वालों में से हो जाओगे।[13]
13. इस आयत का भावार्थ यह है कि यदि मान लिया जाए कि आपके जीवन का अंत शिर्क पर हुआ, और क्षमा याचना नहीं की तो आपके भी कर्म नष्ट हो जाएँगे। ह़ालाँकि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और सभी नबी शिर्क से पाक थे। इसलिए कि उनका संदेश ही एकेश्वरवाद और शिर्क का खंडन है। फिर भी इसमें संबोधित नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को किया गया और यह साधारण नियम बताया गया कि शिर्क के साथ अल्लाह के हाँ कोई कर्म स्वीकार्य नहीं। तथा ऐसे सभी कर्म निष्फल होंगे जो एकेश्वरवाद की आस्था पर आधारित न हों। चाहे वह नबी हो या उसका अनुयायी हो।
66 - Az-Zumar (The Troops) - 066
بَلِ ٱللَّهَ فَٱعۡبُدۡ وَكُن مِّنَ ٱلشَّـٰكِرِينَ
बल्कि आप अल्लाह ही की इबादत (वंदना) करें तथा शुक्र करने वालों में से हो जाएँ।
67 - Az-Zumar (The Troops) - 067
وَمَا قَدَرُواْ ٱللَّهَ حَقَّ قَدۡرِهِۦ وَٱلۡأَرۡضُ جَمِيعٗا قَبۡضَتُهُۥ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَٱلسَّمَٰوَٰتُ مَطۡوِيَّـٰتُۢ بِيَمِينِهِۦۚ سُبۡحَٰنَهُۥ وَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشۡرِكُونَ
तथा उन्होंने अल्लाह का सम्मान नहीं किया, जैसे उसका सम्मान करना चाहिए था और क़ियामत के दिन पूरी धरती उसकी एक मुट्ठी में होगी, तथा आकाश उसके दाएँ हाथ[14] में लिपटे होंगे। वह उस शिर्क से पवित्र तथा उच्च है, जो वे कर रहे हैं।
14. ह़दीस में आता है कि एक यहूदी विद्वान नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहा : हम अल्लाह के विषय में (अपनी धर्म पुस्तकों में) यह पाते हैं कि प्रलय के दिन आकाशों को एक उँगली, तथा भूमि को एक उँगली पर और पेड़ों को एक उंँगली, जल तथा तरी को एक उंँगली पर और समस्त उत्पत्ति को एक उंँगली पर रख लेगा, तथा कहेगा : "मैं ही राजा हूँ।" यह सुनकर आप हँस पड़े और इसी आयत को पढ़ा। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस : 4812, 6519, 7382, 7413)
68 - Az-Zumar (The Troops) - 068