النازعات

 

An-Nazi'at

 

Those who drag forth

1 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 001

وَٱلنَّـٰزِعَٰتِ غَرۡقٗا
क़सम है उन फ़रिश्तों की, जो डूबकर सख़्ती से (प्राण) खींचने वाले हैं!

2 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 002

وَٱلنَّـٰشِطَٰتِ نَشۡطٗا
और क़सम है उन फ़रिश्तों की, जो आसानी से (प्राण) निकालने वाले हैं!

3 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 003

وَٱلسَّـٰبِحَٰتِ سَبۡحٗا
और क़सम है उन फ़रिश्तों की, जो तेज़ी से तैरने वाले हैं!

4 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 004

فَٱلسَّـٰبِقَٰتِ سَبۡقٗا
फिर क़सम है उन फ़रिश्तों की, जो दौड़कर आगे बढ़ने वाले हैं!

5 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 005

فَٱلۡمُدَبِّرَٰتِ أَمۡرٗا
फिर क़सम है उन फ़रिश्तों की, जो आदेश को क्रियान्वित करने वाले हैं![1]
1. (1-5) यहाँ से बताया गया है कि प्रलय का आरंभ भारी भूकंप से होगा और दूसरे ही क्षण सब जीवित होकर धरती के ऊपर होंगे।

6 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 006

يَوۡمَ تَرۡجُفُ ٱلرَّاجِفَةُ
जिस दिन काँपने वाली (अर्थात् धरती) काँप उठेगी।

7 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 007

تَتۡبَعُهَا ٱلرَّادِفَةُ
उसके पीछे आएगी पीछे आने वाली।

8 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 008

قُلُوبٞ يَوۡمَئِذٖ وَاجِفَةٌ
उस दिन कई दिल धड़कने वाले होंगे।

9 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 009

أَبۡصَٰرُهَا خَٰشِعَةٞ
उनकी आँखें झुकी हुई होंगी।

10 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 010

يَقُولُونَ أَءِنَّا لَمَرۡدُودُونَ فِي ٱلۡحَافِرَةِ
वे कहते हैं : क्या हम निश्चय पहली स्थिति में लौटाए जाने वाले हैं?

11 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 011

أَءِذَا كُنَّا عِظَٰمٗا نَّخِرَةٗ
क्या जब हम सड़ी-गली हड्डियाँ हो जाएँगे?

12 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 012

قَالُواْ تِلۡكَ إِذٗا كَرَّةٌ خَاسِرَةٞ
उन्होंने कहा : यह तो उस समय घाटे वाला लौटना होगा।

13 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 013

فَإِنَّمَا هِيَ زَجۡرَةٞ وَٰحِدَةٞ
वह तो केवल एक डाँट होगी।

14 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 014

فَإِذَا هُم بِٱلسَّاهِرَةِ
फिर एकाएक वे (जीवित होकर) धरती के ऊपर होंगे।

15 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 015

هَلۡ أَتَىٰكَ حَدِيثُ مُوسَىٰٓ
(ऐ नबी!) क्या आपके पास मूसा की बात पहुँची है?[2]
2. (6-15) इन आयतों में प्रलय दिवस का चित्र पेश किया गया है। और काफ़िरों की स्थिति बताई गई है कि वे उस दिन किस प्रकार अपने आपको एक खुले मैदान में पाएँगे।

16 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 016

إِذۡ نَادَىٰهُ رَبُّهُۥ بِٱلۡوَادِ ٱلۡمُقَدَّسِ طُوًى
जब उसके पालनहार ने उसे पवित्र घाटी 'तुवा' में पुकारा।

17 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 017

ٱذۡهَبۡ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ إِنَّهُۥ طَغَىٰ
फ़िरऔन के पास जाओ, निश्चय वह हद से बढ़ गया है।

18 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 018

فَقُلۡ هَل لَّكَ إِلَىٰٓ أَن تَزَكَّىٰ
फिर उससे कहो : क्या तुझे इस बात की इच्छा है कि तू पवित्र हो जाए?

19 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 019

وَأَهۡدِيَكَ إِلَىٰ رَبِّكَ فَتَخۡشَىٰ
और मैं तेरे पालनहार की ओर तेरा मार्गदर्शन करूँ, तो तू डर जाए?

20 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 020

فَأَرَىٰهُ ٱلۡأٓيَةَ ٱلۡكُبۡرَىٰ
फिर उसे सबसे बड़ी निशानी (चमत्कार) दिखाई।

21 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 021

فَكَذَّبَ وَعَصَىٰ
तो उसने झुठला दिया और अवज्ञा की।

22 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 022

ثُمَّ أَدۡبَرَ يَسۡعَىٰ
फिर वह पलटा (मूसा अलैहिस्सलाम के विरोध का) प्रयास करते हुए।

23 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 023

فَحَشَرَ فَنَادَىٰ
फिर उसने (लोगों को) एकत्रित किया। फिर पुकारा।

24 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 024

فَقَالَ أَنَا۠ رَبُّكُمُ ٱلۡأَعۡلَىٰ
तो उसने कहा : मैं तुम्हारा सबसे ऊँचा पालनहार हूँ।

25 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 025

فَأَخَذَهُ ٱللَّهُ نَكَالَ ٱلۡأٓخِرَةِ وَٱلۡأُولَىٰٓ
तो अल्लाह ने उसे आख़िरत और दुनिया की यातना में पकड़ लिया।

26 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 026

إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَعِبۡرَةٗ لِّمَن يَخۡشَىٰٓ
निःसंदेह इसमें उस व्यक्ति के लिए शिक्षा है, जो डरता है।

27 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 027

ءَأَنتُمۡ أَشَدُّ خَلۡقًا أَمِ ٱلسَّمَآءُۚ بَنَىٰهَا
क्या तुम्हें पैदा करना अधिक कठिन है या आकाश को, जिसे उसने बनाया।[3]
3. (16-27) यहाँ से प्रलय के होने और पुनः जीवित करने के तर्क आकाश तथा धरती की रचना से दिए जा रहे हैं कि जिस शक्ति ने यह सब बनाया और तुम्हारे जीवन रक्षा की व्यवस्था की है, प्रलय करना और फिर सब को जीवित करना उसके लिए असंभव कैसे हो सकता है? तुम स्वयं विचार करके निर्णय करो।

28 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 028

رَفَعَ سَمۡكَهَا فَسَوَّىٰهَا
उसकी छत को ऊँचा किया, फिर उसे बराबर किया।

29 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 029

وَأَغۡطَشَ لَيۡلَهَا وَأَخۡرَجَ ضُحَىٰهَا
और उसकी रात को अंधेरा कर दिया तथा उसके दिन के प्रकाश को प्रकट कर दिया।

30 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 030

وَٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ ذَٰلِكَ دَحَىٰهَآ
और उसके बाद धरती को बिछाया।

31 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 031

أَخۡرَجَ مِنۡهَا مَآءَهَا وَمَرۡعَىٰهَا
उससे उसका पानी और उसका चारा निकाला।

32 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 032

وَٱلۡجِبَالَ أَرۡسَىٰهَا
और पर्वतों को गाड़ दिया।

33 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 033

مَتَٰعٗا لَّكُمۡ وَلِأَنۡعَٰمِكُمۡ
तुम्हारे तथा तुम्हारे पशुओं के लाभ के लिए।

34 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 034

فَإِذَا جَآءَتِ ٱلطَّآمَّةُ ٱلۡكُبۡرَىٰ
फिर जब बड़ी आपदा (क़ियामत) आ जाएगी।[4]
4. (28-34) 'बड़ी आपदा' प्रलय को कहा गया है जो उसकी घोर स्थिति का चित्रण है।

35 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 035

يَوۡمَ يَتَذَكَّرُ ٱلۡإِنسَٰنُ مَا سَعَىٰ
जिस दिन इनसान अपने किए को याद करेगा।[5]
5. (35) यह प्रलय का तीसरा चरण होगा जबकि वह सामने होगी। उस दिन प्रत्येक व्यक्ति को अपने सांसारिक कर्म याद आएँगे और कर्मानुसार जिसने सत्य धर्म की शिक्षा का पालन किया होगा उसे स्वर्ग का सुख मिलेगा और जिसने सत्य धर्म और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को नकारा और मनमानी धर्म और कर्म किया होगा वह नरक का स्थायी दुःख भोगेगा।

36 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 036

وَبُرِّزَتِ ٱلۡجَحِيمُ لِمَن يَرَىٰ
और देखने वाले के लिए जहन्नम सामने कर दी जाएगी।

37 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 037

فَأَمَّا مَن طَغَىٰ
तो जो व्यक्ति हद से बढ़ गया।

38 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 038

وَءَاثَرَ ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَا
और उसने सांसारिक जीवन को वरीयता दी।

39 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 039

فَإِنَّ ٱلۡجَحِيمَ هِيَ ٱلۡمَأۡوَىٰ
तो निःसंदेह जहन्नम ही उसका ठिकाना है।

40 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 040

وَأَمَّا مَنۡ خَافَ مَقَامَ رَبِّهِۦ وَنَهَى ٱلنَّفۡسَ عَنِ ٱلۡهَوَىٰ
लेकिन जो अपने पालनहार के समक्ष खड़ा होने से डर गया तथा अपने मन को बुरी इच्छा से रोक लिया।

41 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 041

فَإِنَّ ٱلۡجَنَّةَ هِيَ ٱلۡمَأۡوَىٰ
तो निःसंदेह जन्नत ही उसका ठिकाना है।

42 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 042

يَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلسَّاعَةِ أَيَّانَ مُرۡسَىٰهَا
वे आपसे क़ियामत के बारे में पूछते हैं कि वह कब घटित होगी?[6]
6. (42) काफ़िरों का यह प्रश्न समय जानने के लिए नहीं, बल्कि हँसी उड़ाने के लिए था।

43 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 043

فِيمَ أَنتَ مِن ذِكۡرَىٰهَآ
आपका उसके उल्लेख करने से क्या संबंध है?

44 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 044

إِلَىٰ رَبِّكَ مُنتَهَىٰهَآ
उस (के ज्ञान) की अंतिमता तुम्हारे पालनहार ही की ओर है।

45 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 045

إِنَّمَآ أَنتَ مُنذِرُ مَن يَخۡشَىٰهَا
आप तो केवल उसे डराने वाले हैं, जो उससे डरता है।[7]
7. (45) इस आयत में कहा गया है कि (ऐ नबी!) सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आप का दायित्व मात्र उस दिन से सावधान करना है। धर्म बलपूर्वक मनवाने के लिए नहीं। जो नहीं मानेगा, उसे स्वयं उस दिन समझ में आ जाएगा कि उसने क्षण भर के सांसारिक जीवन के स्वार्थ के लिए अपना स्थायी सुख खो दिया। और उस समय पछतावे का कुछ लाभ नहीं होगा।

46 - An-Nazi'at (Those who drag forth) - 046

كَأَنَّهُمۡ يَوۡمَ يَرَوۡنَهَا لَمۡ يَلۡبَثُوٓاْ إِلَّا عَشِيَّةً أَوۡ ضُحَىٰهَا
जिस दिन वे उसे देखेंगे, तो (ऐसा लगेगा) मानो वे (दुनिया में) केवल एक शाम या उसकी सुबह ही ठहरे हैं।

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